शिक्षा के अधिकार के लिए देशभर में छात्र सड़कों पर!

जेएनयू समेत विभिन्न विश्वविद्यालयों में फ़ीस बढ़ोत्तरी के ख़िलाफ़ छात्रों के जुझारू आन्दोलनों पर सरकारी दमन और झूठा संघी प्रचार

यह रिपोर्ट लिखे जाने तक जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय), बीएचयू (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय), डीयू (दिल्ली विश्वविद्यालय) और उत्तराखण्ड के मेडिकल कॉलेजों के छात्रों के धरने-प्रदर्शन-विरोध जुलूस ज़ोर-शोर से जारी हैं। पुलिस-प्रशासन के लाठी चार्ज, पानी की बौछारों, आँसू गैस, झूठे मुक़दमों इत्यादि के रूप में दमनकारी रवैया छात्रों के हौसलों को तोड़ने में नाकामयाब साबित हो रहा है। जेएनयू में दो बार बर्बर लाठी चार्ज हो चुका है तथा बीएचयू में एक बार।

जेएनयू का घटनाक्रम ज़्यादा सुर्ख़ियों में है इसलिए सबसे पहले इसी पर बात करते हैं। यहाँ छात्रावासों की फ़ीसों को 2,700 रुपये सालाना से बढ़ाकर 30,100 रुपये कर दिया गया है। यही नहीं, इसपर बिजली और पानी का बिल अलग से देना होगा। छात्रावास की ज़मानत राशि को भी 5,500 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये कर दिया गया तथा फ़ीसों में हर वर्ष 10% बढ़ोत्तरी का प्रावधान कर दिया गया। कुल मिलाकर देखें तो एक छात्र को अपनी पढ़ाई पूरी करने के दौरान लाखों रुपये केवल अपने रहने पर ख़र्च करने पड़ेंगे। आँकड़ों के अनुसार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 40 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जिनकी पारिवारिक आय 12,000 रुपये से भी कम है। ऐसे में क्या ये छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख पायेंगे? नहीं। ये छात्र सस्ती शिक्षा के अपने जायज़ अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन प्रशासन और मोदी सरकार दमन पर उतारू हैं तथा दलाल-भाण्ड मीडिया और संघी दुष्प्रचार तंत्र छात्रों को बदनाम करने में लग गया है। ज्ञात हो कि जेएनयू के छात्र 28 अक्टूबर से ही अपनी कक्षाओं का बहिष्कार करके हॉस्टल फ़ीस में बेतहाशा वृद्धि और थोपे जा रहे कई वाहियात नियमों के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं। दुनिया के सभी व‍िकसित देशों में विश्वविद्यालयों के पुस्तकालय रातभर खुले रहते हैं। जे.एन.यू. में भी बड़ी संख्या में छात्र देर रात तक लायब्रेरी में पढ़ाई करते हैं। अब प्रशासन 11.30 बजे लायब्रेरी बन्द कर देने का आदेश ले आया है। छात्रों को हॉस्टल में स्कूली बच्चों की तरह यूनिफ़ॉर्म पहनकर रहने का भी बेहूदा नियम लागू किया जा रहा है। इन सभी बदलावों के विरुद्ध छात्र आन्दोलन कर रहे थे लेकिन भोंपू मीडिया लोगों को सिर्फ़ यह झूठ बता रहा है कि हॉस्टल फ़ीस 10 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये महीना करने पर ही छात्र हंगामा कर रहे हैं। 18 नवम्बर को जे.एन.यू. के छात्रों ने संसद मार्च का आह्वान किया था लेकिन शान्तिपूर्ण मार्च निकाल रहे छात्रों पर फिर दो-दो बार बर्बर लाठीचार्ज किया गया जिसमें दर्जनों छात्र गम्भीर रूप से घायल हुए और 150 से अधिक छात्र-छात्राओं को गिरफ़्तार कर लिया गया। शाम को जब छात्र अपना प्रदर्शन ख़त्म कर रहे थे, तब सड़क की बत्तियाँ बन्द करवाकर उन पर सैकड़ों पुलिसवालों ने हमला किया और छात्र-छात्राओं को बुरी तरह पीटा। यहाँ तक कि एक नेत्रहीन छात्र को कई पुलिसवालों ने गिराकर पीटा और उसके सीने पर बूट से ठोकरें मारीं।

बात सिर्फ़ जे.एन.यू. तक की नहीं है बल्कि कई जगह फ़ीस बढ़ोत्तरी और शिक्षा के मूलभूत अधिकार जैसे मुद्दों को लेकर छात्र सड़कों पर हैं। उत्तराखण्ड में मेडिकल शिक्षा की फ़ीस को 80,000 रुपये से बढ़ाकर 2,15,000 रुपये कर दिया गया है। इसके ख़िलाफ़ छात्र पिछले क़रीब 50 दिनों से संघर्ष कर रहे हैं। बीएचयू के छात्र पुस्तकालय और अन्य सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इन पर भी पुलिस ने झगड़े का बहाना बनाकर बर्बर लाठीचार्ज किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र छात्रावास की माँग को लेकर धरना दे रहे हैं।

पिछले दिनों ही एमटेक की फ़ीस 50,000 से सीधे 2 लाख बढ़ा दी गयी! साथ ही गेट (GATE) में मिलने वाली छात्रवृत्ति को ख़त्म कर दिया गया है! फ़ीस में बढ़ोत्तरी का मतलब यही है कि सरकार शिक्षा को आम मेहनतकश आबादी के छात्रों की पहुँच से दूर करना चाहती है! सच्चाई यह है कि फ़ासीवादी भाजपा सरकार देश के अन्य सरकारी विभागों की तरह बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से उच्च शिक्षा को भी निजी हाथों में सौंपने में जुटी हुई है। उच्च शिक्षा से लगातार निवेश हटाया जा रहा है! 2012-13 में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.1% लग रहा था जोकि 2017-18 में 2.7% हो गया! हद तो यह है कि माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा कोष के लिए सेस (उपकर) लगाकर इकट्ठा किया गया 94,000 करोड़ रुपया इस कोष में दिया ही नहीं गया है। दूसरी तरफ़ मोदी सरकार ने 2016 में ही उच्च शिक्षा को आम छात्रों की पहुँच से दूर करने के लिए एक ख़तरनाक क़दम उठाया है! पहले उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा अनुदान दिया जाता था लेकिन अब हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी के तहत लाकर इन संस्थानों को अनुदान नहीं बल्कि ऋण दिया जायेगा और हर 10 साल के अन्दर इन संस्थानों को दिये गये ऋण की एक राशि चुकानी होगी! यह 2017 से लागू हो चुका है और इस क़दम का साफ़ मतलब है कि सरकारी उच्च शिक्षण संस्थान अपनी फ़ीस बढ़ायेंगे ताकि सरकार को ऋण की राशि चुकायी जा सके! इसका सीधा असर हमें देखने को मिल ही रहा है। अब आई.आई.टी., मेडिकल कॉलेज और विभिन्न विश्वविद्यालय फ़ीसों में और भी बढ़ोत्तरी करेंगे! सोचे-समझे तरीक़े से फ़ीस बढ़ाकर आम जनता के बेटे-बेटियों को उच्च शिक्षा से दूर किया जा रहा है! सरकार अच्छे संस्थानों की पढ़ाई को महँगा कर शिक्षा को बस अमीरज़ादों का विशेषाधिकार बना देना चाहती है। मेहनतकशों के नज़रिये से देखा जाये तो निःशुल्क व समान शिक्षा सबका जन्मसिद्ध अधिकार है और इसके लिए संघर्ष ज़रूरी और जायज़ है!

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019


 

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