बढ़ता हुआ प्रदूषण और घुटती हुई आबादी

– डॉ. नवमीत

दीवाली के अगले दिन से ही भारत के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ज्‍़यादा हो गया है। हर जगह लोगों को प्रदूषण की वजह से साँस लेने में और रोज़मर्रा के काम करने में कठिनाई हो रही है। लेकिन यह सिर्फ़ दीवाली या भारत की बात नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया की बात है। हालाँकि दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित 10 शहरों में से 7 भारत में हैं लेकिन फिर भी यह पूरी दुनिया की समस्या है।

2012 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग सत्तर लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण मर जाते हैं। यह पूरी दुनिया में होने वाली मौतों का आठवाँ हिस्सा है। तो इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण इन्‍सान के लिए सबसे बड़ा वातावरणीय ख़तरा है। अगर हम वायु प्रदूषण को कम कर लें या नियंत्रित कर लें तो हम हर साल लाखों ज़िन्‍दगियों को बचा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 15 साल से कम आयु के 93% बच्चे ऐसी हवा में साँस लेते हैं जो उनके स्वास्थ्य और विकास के लिए गम्‍भीर ख़तरा बना रहता है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में प्रदूषण की वजह से होने वाले श्वास संक्रमणों से इसी आयु वर्ग के छह लाख बच्चों की मौत हो गयी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विकासशील देशों के बच्चों पर घर के अन्दर और बाहर के वायु प्रदूषण से होने वाले प्रभावों पर एक अन्य रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार अगर कोई गर्भवती महिला प्रदूषित हवा में साँस लेती है तो उनके बच्चों के समय से पहले पैदा होने की सम्‍भावना अधिक होती है, और बच्चे का वज़न सामान्य से कम होता है। जन्म के समय बच्चे का सामान्य से कम वज़न शैशव काल में होने वाली मौतों के सबसे बड़े कारणों में से एक होता है। इसके अलावा प्रदूषित हवा में साँस लेने वाले बच्चों का दिमाग़ी विकास बाधित रहता है और यहाँ तक कि कैंसर का कारण भी बन सकता है। ऐसे बच्चों में बड़ा होने के बाद भी गम्‍भीर बीमारियाँ, जैसे हृदय रोग, होने की सम्भावना भी ज्‍़यादा हो जाती है। इससे बच्चों के फेफड़ों की क्षमता भी प्रभावित होती है।

एक अध्ययन के अनुसार विकासशील देशों के 98 प्रतिशत बच्चे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से कहीं अधिक ख़राब हवा में साँस लेते हैं जबकि विकसित देशों में यह आँकड़ा 52 प्रतिशत का है। बच्चों के लिए वायु प्रदूषण ज्‍़यादा घातक इसलिए होता है क्योंकि एक तो बच्चे क़द छोटा होने की वजह से ज़मीन के नज़दीक होते हैं। ज़मीन के नज़दीक की वायु में वायु प्रदूषकों का संकेन्द्रण अधिक होता है। दूसरा यह कि बच्चे बड़ों की अपेक्षा ज्‍़यादा गति से साँस लेते हैं, जिसकी वजह से उनके शरीर में कम समय में ज़्यादा प्रदूषक चले जाते हैं। तीसरा यह कि बच्चों का रोग-प्रतिरोधक तंत्र भी इतने प्रदूषण को झेल नहीं पाता। कम आय वर्ग वाले देशों के बच्चे तो वैसे ही कुपोषित होते हैं। इन सब कारकों का बच्चों के स्वास्थ्य और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सिर्फ़ बच्चों पर ही नहीं बल्कि हर आयु वर्ग के लोगों के लिए प्रदूषण हानिकारक है। श्वास तंत्र के रोग, हृदय रोग, थकान, सरदर्द, बेचैनी, आँखों, नाक, कान और गले के रोग, प्रजनन तंत्र के रोग, लीवर व तिल्ली के रोग, रक्त सम्‍बन्‍धी विकार और तंत्रिका तंत्र के रोग। यानि कुल मिलाकर पूरे शरीर पर प्रदूषण के गम्‍भीर प्रभाव पड़ते हैं।

अब पड़ताल करते हैं इसके कारणों की। कुछ समय पहले दुनियाभर के पचास वैज्ञानिकों की एक टीम ने 24 देशों के 650 शहरों पर एक अध्ययन किया था और इस अध्ययन को “न्यू इंग्लैण्‍ड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन” नामक एक अन्‍तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका में छपवाया था। इस शोध के अनुसार यातायात के विभिन्न साधनों से, जीवाश्म ईंधन के जलने से, उद्योगों से, जंगलों की आग से पैदा होने वाला धुआँ और रेडिएशन प्रदूषण के सबसे बड़े कारण हैं। और इन कारणों के कारण क्या हैं? पूँजीवाद के भोंपू अक्सर इसका कारण बढ़ती हुई आबादी को बताते हैं। कुछ लिबरल तबक़े के लोग इसका कारण प्रौद्योगिकी के विकास को बताते हैं और वापस पाषाण युग में जाने की सलाह देते हैं। इनका कहना है कि मानवजाति विनाश की तरफ़ बढ़ रही है और अगर विनाश से बचना है तो आबादी को कम करना होगा और प्रौद्योगिकी के विकास को रोकना होगा। लेकिन क्या यह सही तर्क है? नहीं। यह ग़लत तर्क है। प्रदूषण के बढ़ने और अनियंत्रित होने का कारण प्रौद्योगिकी का विकास या बढ़ती हुई आबादी नहीं है, बल्कि मुनाफे़ पर टिकी हुई पूँजीवादी व्यवस्था है। इस व्यवस्था में कोई भी उत्पादन या निर्माण आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि मुनाफे़ के लिए होता है। यहाँ तक कि खाद्य पदार्थों का उत्पादन भी। तो ज़ाहिर है, इसके प्रदूषण के लिए जि़म्मेदार भी मुनाफे़ पर आधारित व्यवस्था है, न कि आबादी। और प्रदूषण को सबसे ज्‍़यादा झेलने वाली मेहनतकश आबादी तो क़तई नहीं। इसके लिए प्रौद्योगिकी जि़म्मेदार नहीं है। प्रौद्योगिकी का काम होता है मनुष्य के काम को आसान करना, मानवजाति की सेवा करना। लेकिन असल में प्रौद्योगिकी से काम क्या लिया जा रहा है? हाँ, आप सही समझे हैं। प्रौद्योगिकी की मदद से सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़ा बनाने का काम लिया जा रहा है। वरना प्रौद्योगिकी तो इतनी क़ाबिल है कि प्रदूषण को नियंत्रित भी कर सकती है। फिर आप पूछेंगे कि अगर यह सक्षम है तो ऐसा कर क्यों नहीं रही है? सही सवाल है। जवाब का अनुमान भी आपने सही लगाया है – मुनाफ़ा। प्रदूषण को कम करने में किसी तरह के मुनाफ़े की गुंजाइश नहीं होती। इसलिए पूँजीपति वर्ग इसके लिए पैसा लगाने को तैयार ही नहीं है। उसे तो यूँ ही हानिकारक गैसों और धुएँ का उत्पादन करते रहना है। अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता। न पूँजीपति वर्ग और न ही पूँजीपति वर्ग की मैनेजिंग कमेटी रूपी सरकारें इस दिशा में कोई क़दम उठाने वाली हैं। त्योहारों के पटाखे भी मुनाफे़ से जुड़े हुए हैं। कुल मिलाकर यह व्यवस्था वाक़ई में मानवजाति को विनाश की तरफ़ धकेल रही है। इसका समय रहते समाधान करना ज़रूरी है।

लेकिन सवाल यही है कि इस समस्या का समाधान क्या हो? समाधान एक ही है। मुनाफे़ पर टिकी हुई इस व्यवस्था यानि पूँजीवाद का ख़ात्मा। समाजवाद की स्थापना, जिसमें राजकाज और उत्पादन के तमाम साधनों पर मेहनतकश मज़दूर वर्ग का अधिकार हो। तब उत्पादन मुनाफे़ के लिए नहीं बल्कि जनता की ज़रूरतों के हिसाब से होगा। प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल मुनाफे़ के लिए नहीं बल्कि मानवजाति की ज़रूरतों के लिए किया जायेगा। केवल तभी मानवजाति को विनाश से बचाया जा सकता है। लेकिन यह भी जल्दी करना होगा। जिस दर से वातावरण का प्रदूषण और इसके दुष्प्रभाव बढ़ते जा रहे हैं, लगता नहीं है कि पूँजीवाद मानवता को बहुत समय देने वाला है।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments