बेटी बचाओ, भाजपाइयों से!
भाजपा नेताओं के कुकर्मों की शिकार हुई एक और बेटी
–रूपा
‘बेटी के सम्मान में, भाजपा मैदान में’ और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे लुभावने नारों के शोरगुल के बीच इस देश की बेटियों के साथ लगातार होने वाली बर्बरता को छिपाने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन 6 सालों में हुए स्त्री-विरोधी अपराध के आँकड़े चीख-चीख कर ये बता रहे हैं कि भाजपा सरकार के खोखले नारे महज़ वोट बटोरने की नौटंकी हैं। कठुआ और उन्नाव जैसी बर्बर,मानवद्रोही, स्त्री-विरोधी घटनाओं की याद अभी ताज़ी ही है कि एक नया प्रकरण हमारे सामने है।
यह घटना शाहजहाँपुर की है जहाँ सन्त समाज से आने वाले और भाजपा के पूर्व केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानन्द पर कानून की छात्रा के साथ बलात्कार का आरोप है। चिन्मयानन्द पर यह आरोप पहली बार नहीं लगा है, इससे पहले भी उसके आश्रम में कई महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न की खबरें आती रही हैं। 2011 में भी एक साध्वी ने उस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उस मामले में उसके ख़िलाफ़ चार्जशीट भी दायर हुई थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ महाराज की कृपा से पिछले साल वह बरी हो गया था। चिन्मयानन्द और योगी आदित्यनाथ क़रीबी रिश्तों का एक लम्बा इतिहास है। 1980 के दशक में राम मन्दिर आन्दोलन के दौरान चिन्मयानन्द ने योगी आदित्यनाथ के गुरू महंत अवैद्यनाथ के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम किया था। दोनो ने मिलकर ‘राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति’ की स्थापना की थी। आगे चलकर चिन्मयानन्द ने योगी के भगवे दस्ते ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ का काम शाहजहाँपुर में ही शुरू किया था।
कठुआ और उन्नाव काण्ड में इन फ़ासिस्टों ने जिस तरीके से अपराधियों को बचाने, उनके कुकर्म को ग़लत साबित करने का रवैया अपनाया, उससे कौन नहीं वाक़िफ़ होगा। लेकिन इसके बावजूद शाहजहाँपुर की ये बहादुर लड़की अपने साथ हुए बर्बरता के खिलाफ़ आवाज़ उठाती है। लेकिन उसका अंजाम क्या होता है? शिकायत दर्ज कराने के बाद भी चिन्मयानन्द की गिरफ़्तारी नहीं हुई, जबकि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि बलात्कार जैसे मामलों में शिकायत के तुरन्त बाद गिरफ़्तारी होनी चाहिए। उसके बाद वह लड़की अपना वीडियों वायरल करती है, यहाँ तक कि सामने आकर प्रेस कान्फ्रेंस करती है, आत्मदाह करने की बात करती है तब जाकर कहीं चिन्मयानन्द की गिरफ़्तारी होती है, लेकिन बलात्कार की धारा के तहत मुक़दमा दर्ज़ नहीं किया जाता है। इस तरह से उस लड़की के हिम्मत को तोड़ने की कोशिश की जाती है, लेकिन वो हार नहीं मानती है।
चिन्मयानन्द ख़ुद ये स्वीकार भी कर चुका है कि उसने ऐसा कुकर्म किया, फिर भी उसपर बलात्कार की धारा नहीं लगायी जाती है, उसको पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी अपनी कार में बैठाकर अस्पताल ले जाता है। दूसरी तरफ़ जब लड़की को धमकाने के मक़सद से उसपर स्वामी चिन्मयानन्द से पैसा माँगने का फ़र्जी आरोप लगता है, तब पुलिस उसे घसीटकर घर से ले जाती है, उसे ढंग से कपड़ा पहनने तक का मौक़ा नहीं दिया जाता है। पुलिस प्रशासन का घिनौना चेहरा यही बेनक़ाब हो जाता है। पुलिस प्रशासन का ये दोहरा बरताव यह दिखाता है कि वह वास्तव में किसकी सेवा करता है। एक तरफ़ एक बलात्कारी अस्पताल में मौज कर रहा है, दूसरी तरफ़ पीड़िता जेल की सलाखों के पीछे पहुँचा दी जाती है। तुरन्त मीडिया के सुर भी बदल जाते हैं। मीडिया में ख़ूब मिर्च-मसाला लगाकर इस ख़बर को बढ़ा-चढ़ा के पेश किया जाता है, और चिन्मयानन्द के अपराध को कम कर के दिखाने की कोशिश की जाती है।
उन्नाव और कठुआ में भी यही हुआ था। उन्नाव के भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की गिरफ़्तारी घटना से 13 महीने बाद हुई। पहले पीड़िता के पिता को जेल में पीट-पीट कर मार डाला गया। उसके बाद उसके पूरे परिवार को सड़क दुर्घटना में जान से मारने की कोशिश की गई और उत्तर प्रदेश की फ़ासिस्ट सरकार चुपचाप देखती रही। कठुआ के काण्ड को अभी बहुत ज़्यादा दिन नहीं हुए, जिसमें इन फ़ासिस्टों ने तिरंगा लेकर अपराधियों के समर्थन में रैलियाँ निकाली थी। मुँह में राम का नाम लेना और असलियत में अपराधियों, बलात्कारियों को शह देना इनके लिए बड़ी बात नहीं है।
पिछले साल देवरिया, मुज़फ़्फ़रपुर के बालिका संरक्षण गृहों में बच्चियों के साथ हुए दुष्कर्म मामले में कई भाजपा नेताओं का नाम आया। अभी हाल ही में एक भाजपा नेता सेक्स रैकेट में पकड़ा गया है। इतने सारे उदाहरण हमारे सामने हैं जो साबित करते है कि फ़ासीवादी भाजपा सरकार के लिए इस देश की बेटियों की सुरक्षा कोई मायने नहीं रखती। सुरक्षा तो दूर ये ख़ुद ही लड़कियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (एडीआर) के एक अध्ययन ने यह साफ़ दिखाया था कि देशभर में महिलाओं के ख़िलाफ़ जघन्य अपराधों में भाजपा के सांसद और विधायक अव्वल नंबर पर हैं।
दरअसल ऐसे अपराधियों, बलात्कारियों को शह देने, उनके अपराधों की लीपापोती करने का काम फ़ासिस्टों का अभी का नहीं है, इसका एक पूरा इतिहास है। ग़ौरतलब है कि हिन्दुत्व के विचारक सावरकर ने भी अपनी किताब ‘भारतीय इतिहास के छह गौरवशाली युग’ में, हिन्दू मर्दों द्वारा मुस्लिम औरतों के बलात्कार को न्याय संगत ठहराया था। दिल्ली में जब निर्भया काण्ड हुआ था तब मोहन भागवत से लेकर भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने घटिया बयान दिया था जो हर तरह से ऐसे कुकर्मों के लिए लड़की को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहा था और औरतों को घर-गृहस्थी की चहारदीवारी में क़ैद करने की वकालत करता था।
अगर आप सोच रहे हैं कि अब भी आपकी बेटियाँ सुरक्षित हैं तो इस मुग़ालते में मत रहिये क्योंकि फ़ासिस्ट कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। जब संसद और विधान सभा की शोभा बढ़ाने वाले संसद में बैठकर पोर्न मूवी देखते हुए पकड़े जाते हैं, तब उनसे महिला सुरक्षा की उम्मीद करना ख़ुद को धोखे में रखना है। ‘बेटी के सम्मान में भाजपा मैदान में’ इस नारे की असलियत इसी बात से लगाया जा सकता है कि ‘निर्भया फण्ड’ के लिए जो राशि आवण्टित की गई थी उसका एक-तिहाई हिस्सा भी अभी तक सरकार ख़र्च नहीं कर पायी। जबकि ऐसी घटनायें दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ रहीं हैं।
हिन्दुत्व के ये ठेकेदार, जो औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन और पुरूषों की दासी समझते हैं, उनसे भला ये उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे बेटियों की सुरक्षा के पक्के इन्तज़ाम करेंगे? बेटियों के सुरक्षा का नारा तो सिर्फ़ वोट बटोरने की नौटंकी भर है। इनकी राजनीति समाज में घोर स्त्री-विरोधी पुरूष वर्चस्ववादी सोच को ही बढ़ावा देने का काम करती है और इनकी बीमार मानसिकता को दिखाती है। आज ज़रूरी है कि हम हर ऐसी घटना के प्रतिरोध में सड़कों पर उतरें और हर स्त्री-विरोधी सोच को चुनौती दें। क्योंकि अगर आज हम नहीं जागे तो ये बर्बर फ़ासिस्ट अपने हर कुकर्म को जायज़ ठहराने में क़ामयाब हो जायेंगे।
मज़दूर बिगुल, अक्तूबर 2019
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