क्रान्तिकारी मार्क्सवाद से भयाक्रान्त चीन के नकली कम्युनिस्ट शासक
सत्यम
चीन में तेज़ होते मज़दूर आन्दोलनों और जनता में बढ़ते असन्तोष के दौर में वहाँ के पूँजीवादी शासक समाजवाद के नाम पर चल रही अपनी शोषक सत्ता की वैधता साबित करने के लिए आजकल नये सिरे से मार्क्सवाद की दुहाई देने में लगे हुए हैं। पिछली मई में, कार्ल मार्क्स के 200वें जन्मदिन पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों से फिर से मार्क्स की कृतियों, ख़ासकर ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का अध्ययन करने के लिए कहा। एक टीवी शो ‘मार्क्स ने सही कहा था’ के ज़रिए आम जनता को भी मार्क्सवाद का पाठ पढ़ाया जाता है। लेकिन शी और चीनी पार्टी की प्रचार मशीनरी जिस मार्क्सवाद को प्रस्तुत कर रहे हैं वह दरअसल मार्क्सवाद की क्रान्तिकारी आत्मा को निकालकर विचारों की एक ऐसी घुट्टी है जिसे पीने के बाद लोगों को ‘’चीनी विशेषताओं वाला बाज़ार समाजवाद’’ ही असली समाजवाद लगने लगे; ऐसा समाजवाद जिसमें करोड़ों के बर्बर शोषण और दमन के बूते देशी-विदेशी लुटेरी कम्पनियों के मुनाफ़े बढ़ते जायें और जिसमें मज़दूरों का ख़ून चूसने वाले खरबपति जोंक भी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बनने के लिए आमन्त्रित किये जाते हों!
लेकिन शी जिनपिंग और उसके गुर्गों के मार्क्स प्रेम की असलियत चीन की जनता समझने लगी है। जो नौजवान और बुद्धिजीवी वास्तव में मार्क्स की क्रान्तिकारी शिक्षाओं को समझकर उन्हें जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं उन पर राज्यसत्ता का दमनतंत्र पूरी ताक़त से टूट पड़ता है। चीन में छात्रों द्वारा चलायी जा रहे अनेक मार्क्सवादी अध्ययन मण्डलों पर छापे मारकर उन्हें बन्द कराया जा रहा है और चीनी क्रान्ति के नेता माओ त्से-तुङ को याद करने पर लोगों को क़ैद किया जा रहा है।
पिछले 26 दिसम्बर को चीन के प्रतिष्ठित बीजिंग विश्वविद्यालय में मार्क्सिस्ट सोसायटी के प्रमुख क्यू झानचुआन को अगवा कर लिया गया और वह अब तक लापता हैं। क्यू का अपहरण हाल के महीनों में लापता हुए अनेक मार्क्सवादी छात्र नेताओं की कड़ी में सबसे हाल की घटना है। क्यू माओ त्से-तुङ के 125वें जन्मदिवस के मौक़े पर आयोजित एक समारोह में भाग लेने जा रहे थे जब सादे कपड़ों में आठ लोगों ने उन्हें पकड़कर एक कार में ठूँस दिया और कहीं ले गये। इस घटना से पहले क्यू चीनी मज़दूरों के आन्दोलनों के पक्ष में आवाज़ उठा रहे थे और माओ का जन्मदिवस मनाने का आह्वान किया था।
इससे पहले, सितम्बर में छात्रों द्वारा चलायी जा रही एक मार्क्सिस्ट सोसायटी ने सोशल मीडिया पर घोषणा की थी कि अधिकारियों के दबाव में उसे बन्द करना पड़ रहा है। अगले ही दिन, नानजिङ विश्वविद्यालय में युवा मार्क्सवादियों के एक समूह ने कहा कि उनके सामने भी तरह-तरह की दिक़्क़तें खड़ी की जा रही हैं। बीजिङ के एक और विश्वविद्यालय में एक मार्क्सिस्ट सोसायटी ने कहा कि उसे भी परेशान किया जा रहा है। पिछले नवम्बर में बीजिङ युनिवर्सिटी के पूर्व छात्र झाङ युनफुन को ग्वाङझाऊ शहर के एक विश्वविद्यालय में उसके द्वारा आयोजित मार्क्सवादी अध्ययन सत्र के बीच से ही गिरफ़्तार कर लिया गया। सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने के आरोप में उसे छह महीने की जेल की सज़ा सुनायी गयी।
पिछले वर्ष अगस्त से अब तक चीन के विभिन्न स्थानों पर कम से कम 10 युवा मार्क्सवादी कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया गया है। महज़ पर्चे बाँटने पर भी लोगों को पीटा और गिरफ़्तार किया जा सकता है। कई छात्रों का कहना है कि पूरा बीजिङ विश्वविद्यालय जैसे श्वेत आतंक के साये में है। नवम्बर में बीजिङ विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा कि उसने कैम्पस की मार्क्सिस्ट सोसायटी के भीतर एक ”अवैध संगठन” का पता लगाकर उसे ख़त्म कर दिया है। प्रशासन ने कहा कि इस ग्रुप का मकसद राज्यसत्ता के विरुद्ध षड्यंत्र करना था।
दरअसल, 1976 में चीन में हुई पूँजीवाद की पुनर्स्थापना के बाद से ही वहाँ के शासक चीन में क्रान्तिकारी मार्क्सवाद और माओ की क्रान्तिकारी विरासत के पुनरुत्थान की सम्भावना से भयाक्रान्त रहे हैं। हाल के वर्षों में एक ओर चीन एक नयी साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में उभर रहा है, दूसरी ओर चीन में दुनिया का सबसे विशाल औद्योगिक सर्वहारा वर्ग तैयार हुआ है जिसकी राजनीतिक चेतना और जुझारूपन लगातार बढ़ रहे हैं। बढ़ती ग़ैर-बराबरी, शोषण-दमन, ग़रीबी, बेरोज़गारी और अमीरों की कुत्सित ऐयाशियों के रूप में ”बाज़ार समाजवाद” की असलियत जैसे-जैसे लोगों के सामने आती जा रही है, वैसे-वैसे चीन के छात्रों-युवाओं में क्रान्तिकारी मार्क्सवाद को जानने-समझने और उसे मज़दूरों के बीच लेकर जानने के प्रयासों में भी तेज़ी आ रही है। इस बात से चीन के नये शासक ख़ौफ़ज़दा हैं और ऐसी तमाम कोशिशों को कुचल देने पर आमादा हैं।
पिछले वर्ष अनेक विश्वविद्यालयों के सैकड़ों छात्रों ने उन मज़दूरों के साथ एकजुटता ज़ाहिर की थी जिन्होंने औद्योगिक नगर शेनझेन में अपनी फ़ैक्ट्री में यूनियन बनाने की कोशिश की थी। उनकी मदद करने के लिए शेनझेन पहुँचे अनेक छात्रों को अगस्त में गिरफ़्तार कर लिया गया था। इनमें से कई ऐसे थे जो विभिन्न मार्क्सवादी अध्ययन मण्डलों से जुड़े थे। बीजिङ विश्वविद्यालय की मार्क्सिस्ट सोसायटी की ओर से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में इशारा किया गया था कि उन पर होने वाले दमन का सम्बन्ध शेनझेन की घटनाओं से था।
इसकी शुरुआत पिछले जून में दक्षिणी चीन में हुई जब शेनझेन की जेसिक टेक्नोलॉजी कारख़ाने के मज़दूरों ने यूनियन बनाने की शुरुआत की। सरकार ने उन्हें इजाज़त देने से मना कर दिया लेकिन मज़दूर आवेदन करते रहे। जुलाई में, दर्जनों मज़दूरों को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया और कई मज़दूरों को सिक्योरिटी गार्डों ने बुरी तरह पीटा। जुलाई के अन्तिम सप्ताह में, ख़ुद को माओवादी बताने वाले वामपंथी छात्रों का एक समूह देश के अलग-अलग हिस्सों से यात्रा करते हुए मज़दूरों के विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए पहुँचा। इस घटना ने पूरे देश का ध्यान खींचा। बीजिंङ विश्वविद्यालय के एक छात्र, युई जिन ने चीन के तमाम विश्वविद्यालयों के छात्रों के नाम जारी खुले पत्र में मज़दूरों का साथ देने और एक याचिका पर दस्तख़त करने का आह्वान किया। इन विरोध प्रदर्शनों में जनता की दिलचस्पी बढ़ते देख सरकार फ़ौरन इसके दमन पर उतर आयी। अगले कुछ महीनों के दौरान युई सहित कई छात्रों को अज्ञात लोगों द्वारा अगवा कर लिया गया।
दमन के बावजूद सोशल मीडिया और सड़कों पर लोगों के व्यापक समर्थन को देखते हुए सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासनों को क़दम कुछ पीछे हटाने पड़े हैं। लेकिन मार्क्सवाद का अध्ययन करने वाले समूहों पर कड़ी नज़र रखी जा रही है। चीन की शासक नकली कम्युनिस्ट पार्टी सच्चे मार्क्सवादियों से डरी हुई है। उसका डर वाजिब भी है। उसके नेता पार्टी की क्रान्तिकारी विरासत को तो भूल ही गये हैं लेकिन उन्हें यह बात ज़रूर याद होगी कि जब कुछ मार्क्सवादियों ने एक शताब्दी पहले पीकिङ विश्वविद्यालय में एक अध्ययन मण्डल शुरू किया था तो उसमें आने वाले युवाओं में से एक का नाम था माओ त्से-तुङ।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2019
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