महिला एवं बाल विकास विभाग में मोदी सरकार व केजरीवाल सरकार तथा विभाग की शह पर चल रहे महाघोटाले और भ्रष्टाचार का आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने दिल्ली में किया पर्दाफ़ाश!
सीसीटीवी कैमरे और ‘पोषण माह’ मनाने से नहीं बल्कि पोषाहार की गुणवत्ता व मात्रा सुधारने तथा महिलाकर्मियों को पक्का रोज़गार देने से ही होगा योजना में सुधार!
बिगुल संवाददाता
20 सितम्बर को ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ की ओर से समेकित बाल विकास परियोजना और उसके तहत काम करने वाले आँगनवाड़ी केन्द्रों में केन्द्र व राज्य सरकारों तथा विभाग की शह पर हो रहे भ्रष्टाचार और घोटाले का प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिये पर्दाफ़ाश किया गया। जिस देश का ग्लोबल हंगर इण्डेक्स में 119 देशों की सूची में 100वाँ स्थान हो, उस देश में समेकित बाल विकास जैसी परियोजना पर निश्चय ही सवाल खड़ा होगा! ऐसे में दिल्ली में आँगनवाड़ी केन्द्रों में सुधार के नाम पर सीसीटीवी कैमरे लगवाने की पहल करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार और ‘पोषण माह’ मनाने वाली केन्द्र की भाजपा सरकार की नीतियाँ आख़िर किस मक़सद से बनायी जा रही हैं। ऐसे में आँगनवाड़ी केन्द्रों में मिलने वाली सुविधाओं के स्तर और इस पूरी परियोजना में चल रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने की पहल ख़ुद तृणमूल स्तर पर इसी परियोजना में काम करने वाली महिलाकर्मियों ने की। हाल में ही दिल्ली के मण्डावली इलाक़े में तीन बच्चियों की भूख की वजह से मौत की ख़बर ने इस देश का ध्यानाकर्षित किया था। उस पूरे मसले में भी केन्द्र व राज्य सरकार ने एक-दूसरे के ऊपर इस घटना की ज़िम्मेदारी थोपते हुए सिर्फ़ ‘तू नंगा-तू नंगा’ का खेल खेला था। वहीं दिल्ली के हस्तसाल परियोजना में आँगनवाड़ी केन्द्र में बाँटे गये पोषाहार के सेवन के बाद 12 बच्चों समेत केन्द्र में कार्यरत सहायिका, रमा, की तबीयत बिगड़ने का मसला भी सामने आया था। ऐसे गम्भीर मसले के बाद भी महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा ज़िम्मेदार एनजीओ के खि़लाफ़ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। इसके बजाय पोषाहार में ‘छिपकली’ गिरी होने की सूचना देकर बच्चों की जान बचाने वाली सहायिका पर ही दण्डात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें बर्ख़ास्त कर दिया गया था। केन्द्र सरकार ने हाल में ही देश की 28 लाख आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की बात कही है, किन्तु चुनाव से पहले भाजपा द्वारा किये गये पक्के रोज़गार के वायदे का अब कोई ज़िक्र नहीं हो रहा है। साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा सितम्बर महीना ‘पोषण माह’ के तौर पर मनाया गया, लेकिन पोषण पर ख़र्च की जाने वाली राशि को साल दर साल घटाया ही गया है। यही नहीं, समेकित बाल विकास परियोजना में तमाम तरह के भ्रष्टाचार और घोटाले साफ़ नज़र आते हैं, जिनमें खाने की आपूर्ति का ठेका देना हो अथवा सहायिका, कार्यकर्ता अथवा सुपरवाइज़र के पद के लिए भर्ती हो।
दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन की अध्यक्ष शिवानी कौल ने मीडिया से मुख़ातिब होते हुए यह बताया कि किस तरह केन्द्र व राज्य सरकारें इस स्कीम से अपना पिण्ड छुड़ाकर इसे जल्द से जल्द निजी हाथों में सौंपने की कोशिशों में लगी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की बाल मृत्युदर अनुमान एजेंसी (यूएनआईजीएमई) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत शिशु मृत्युदर के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर है। यहाँ साल 2017 में 8,02,000 शिशु मौत का शिकार हुए। यानी हर दो मिनट में तीन बच्चों की मौत! ज़ाहिर है कि इसका कारण पोषाहार, स्वास्थ्य सेवाओं, पानी, सफ़ाई आदि की कमी ही है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही फ़ज़ीहत के कारण जिस स्कीम पर केन्द्र व राज्य सरकार को और भी ज़्यादा ध्यान देने की ज़रुरत है, उसमें भ्रष्टाचार और घोटाले का यह आलम है कि पोषाहार आपूर्ति करने वाले एनजीओ का दोष साफ़ तौर पर पाये जाने के बाद भी विभाग की ओर से उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती!
वहीं आम आदमी पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार विरोध की रट लगाकर सत्ता में आयी थी। किन्तु इस योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर बार-बार ध्यान दिलाये जाने पर भी इसने कोई कार्रवाई की ही नहीं है! लेकिन इनका भ्रष्टाचार पर रोक ना लगाना तो यही इशारा करता है कि तमाम एनजीओ के साथ आम आदमी पार्टी के सम्बन्ध हैं। दिल्ली की आँगनवाड़ियों में खाने की आपूर्ति ठेके पर दी जाती है। इसमें तथ्यों की बात करें तो खाना आपूर्ति का ठेका 22 अलग-अलग एनजीओ के पास है। इनमें सबसे ज़्यादा ठेका ‘स्त्री शक्ति’ के पास है और 25 जुलाई 2013 की ख़बर के अनुसार इस एनजीओ के ऊपर साफ़-सफ़ाई की कमी के लिए 54,789 रुपये का जुर्माना लगाया जा चुका है। यही नहीं खाने की आपूर्ति के टेण्डर धारक तीन एनजीओ ऐसे भी हैं, जिनका मिड-डे मील की स्कीम के लिए दिया गया टेण्डर रद्द कर दिया गया है। इनमें इण्डीकेयर ट्रस्ट, द पीपल वेलफे़यर सोसाइटी व एकता शक्ति फाउण्डेशन अब भी क्रमशः 6, 8 व 1 परियोजना में पोषाहार की आपूर्ति करने का काम कर रहे हैं। कुछ वर्षों पहले भी दिल्ली के निगम स्कूल में मिलने वाले मिड-डे मील में ‘चूहा’ होने की ख़बर देने वाले प्रिंसिपल को न सिर्फ़ रिटायरमेण्ट से पहले निलम्बित कर दिया गया, बल्कि उनकी पेंशन भी रोक दी गयी थी। यही हश्र आँगनवाड़ी केन्द्रों में पोषाहार की शिकायत करने वाली महिलाकर्मियों के साथ भी किया जाता है।
केन्द्र सरकार ने हाल में ही यह घोषणा की है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मानदेय में क्रमशः 1500 व 750 रुपये की बढ़ोत्तरी की जायेगी! वैसे तो इस देश में शिवाजी की मूर्ति पर 3600 करोड़ व पटेल की मूर्ति पर 3000 करोड़ ख़र्च कर दिये जा रहे हैं, जिसका सीधा मक़सद जातीय वोट बैंक को भुनाना है, उलजुलूल के कामों में अरबों रूपये पानी की तरह बहाये जाते हैं, किन्तु आँगनवाड़ियों में ज़मीनी स्तर पर मेहनत करने वाली कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को पक्का रोज़गार देने की बजाय या तब तक न्यूनतम वेतन के समान मेहनताना देने की बजाय भुलावे में रखने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार 28 लाख महिलाकर्मियों के वोटों का आने वाले चुनाव के लिए 1500 और 750 रुपये में मोल-भाव कर रही है!? लेकिन इस 1500 और 750 की बढ़ोत्तरी में भी झोल है! केन्द्र सरकार बढ़ायी गयी राशि में कार्यकर्ता व सहायिका को अपनी ओर से क्रमशः केवल 900 व 450 रुपये ही देगी, शेष राशि राज्य सरकार की ओर से दी जायेगी। ‘पोषण माह’ की बात करने वाली सरकार के अगर बजट की ओर रुख किया जाये तो यह साफ़ पता चल जायेगा कि पोषण पर असल में सरकार की ख़र्च करने की मंशा है ही कितनी। 2015-16 में पोषण के लिए 14,403 करोड़ रुपये आवण्टित किये गये थे, किन्तु 2016-17 में इस राशि को 6 प्रतिशत कम करते हुए 13,514 करोड़ रुपये कर दिया गया। और यह स्थिति तब है जब भारत शिशु मृत्युदर में सबसे आगे है। नीति आयोग की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में चलने वाली 41 फ़ीसदी आँगनवाड़ियाँ अपर्याप्त और छोटी जगहों पर चलायी जाती हैं, 13.7 फ़ीसदी आँगनवाड़ी केन्द्रों में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था नहीं है, 66.72 फ़ीसदी आँगनवाड़ियाँ तय संख्या से अधिक को सेवाएँ प्रदान करती हैं।
केन्द्र व राज्य सरकार इस बेहद महत्वपूर्ण योजना के प्रबन्ध को बेहतर करने के बदले इसे निजी हाथों में सौंपने के लिए मौक़े की तलाश में बैठी हैं। इस योजना की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी पोषाहार है, और यदि आम जनता ने पोषाहार की ‘गुणवत्ता’ देखकर इस योजना का लाभ लेना बन्द कर दिया तो सरकार के लिए इसे चलाने की ज़रूरत ही क्या बचेगी।
हस्तसाल प्रोजेक्ट से बर्ख़ास्त की गयी सहायिका रमा ने अपना अनुभव रखते हुए बड़े अधिकारियों की उदासीनता के रुख के बारे में बताया। सुपरवाइज़र और सीडीपीओ ऐसे किसी भी मसले पर कोई ध्यान ही नहीं देते हैं, जब उन्हें पोषाहार की गुणवत्ता की शिकायत की जाती है। हस्तसाल वाले मसले पर भी न तो बच्चों को ही समय पर कोई चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करवायी गयी और न ही सम्बन्धित हेल्पर को। रमा को बयान वापस लेने के लिए भी दबाव बनाया जाता रहा और जब इसका कोई असर नहीं हुआ तो उन्हे ही दोषी करार कर टर्मिनेट कर दिया गया।
कई प्रोजेक्टों में भी अक्सर ही आने वाले खाने की गुणवत्ता बेहद ख़राब होती है। उदाहरण के लिए मिलने वाली पंजीरी पर उत्पादन तिथि होती ही नहीं, बस यह लिखा होता है कि एक महीने के अन्दर ही उपयोग कर लिया जाये, परन्तु इसके पैक होने की कोई तिथि नहीं डाली जाती। इसके खि़लाफ़ शिकायत दर्ज करने पर कार्यकर्ताओं को बड़ी बेबाक़ी से ‘अपने काम से मतलब’ रखने की ही नसीहत दे दी जाती है। आँगनवाड़ी की निहाल विहार परियोजना में कार्यरत सहायिका मनीषा ने आँगनवाड़ी में भर्तियों में होने वाली तमाम तरह की धाँधलेबाज़ी के सम्बन्ध में बात राखी। वैसे तो विभाग के दिशानिर्देश के अनुसार 25 फ़ीसदी सहायिका को कार्यकर्ता व कार्यकर्ता को सुपरवाइज़र बनाने का प्रावधान है, परन्तु इसे कभी लागू नहीं किया जाता। ख़ाली पड़े पदों में नयी भर्ती ही की जाती है और कई बार तो उम्मीदवारों से सीधी रिश्वत माँगी जाती है। हाल में दिल्ली में कार्यकर्ता के पदों में होने वाली बहाली के लिए ग़ैर-जनवादी नियम लागू किये गये जिनके अनुसार कार्यकर्ता की बहाली के लिए उम्र सीमा 35 की गयी है, जबकी सहायिकाओं को इसमें छूट दी जानी चाहिए और प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
शिवानी कौल ने अन्त में बताया कि किस तरह समेकित बाल विकास योजना पूरी तरह से भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, घोटालों और ग़ैर-ज़िम्मेदारी का शिकार है। तमाम पार्टियाँ, एनजीओ और अफ़सरशाही इस कुव्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार हैं। जनता द्वारा जुटाये गये अप्रत्यक्ष करों के पैसे से भरे सरकारी ख़ज़ाने को लुटाया जा रहा है। यदि समेकित बाल विकास परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगायी जाती तो आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में आँगनवाड़ी महिलाकर्मी और उनके परिवार भाजपा और आम आदनी पार्टी का पूर्ण बहिष्कार करेंगे। उन्होंने कहा कि आँगनवाड़ी महिलाकर्मी और उनके परिवार वाले उस पार्टी को ही अपने वोट देंगे जो आँगनवाड़ियों में मिलने वाले पोषाहार की मात्रा समुचित करे, इसकी गुणवत्ता बढ़ाये और काम करने वाली महिलाकर्मियों को पक्का रोज़गार दे। यूनियन भविष्य में भी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार और घपलों का भण्डाफोड़ करती रहेगी। प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्ट भी दिल्ली के तमाम अख़बारों व सोशल मीडिया चैनलों पर प्रकाशित की गयीं।
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