जागो दुनिया के मज़दूर!
बब्बन भक्त (वरिष्ठ खण्ड अभियन्ता, उत्तर रेलवे प्रयाग)
सेवा और मेहनत की मूर्ति,
शोषित होना है दस्तूर।
गुस्सा कभी जीवन में न आया,
भूल के कभी न किया गुरूर।
अब चेतने का समय आ गया,
जागो दुनिया के मज़दूर।
विश्व प्रगति से क़दम मिलाकर
उन्नति ख़ातिर अपने को खपाकर
अमीरों को हर सुख पहुँचाया,
अपने बच्चों को भूखा सुलाकर।
जीवन को तुमने हवन कर दिया,
रहे सुविधा से कोसों दूर।
अब चेतने का समय आ गया,
जागो दुनिया के मज़दूर।
बिना खाये फ़ुटपाथ पर सोया,
लेकिन सुन्दर नगर बनाया।
पगडण्डी है तेरी आज भी नंगी,
लेकिन अमीरों की पक्की डगर बनाया।
उजड़े गाँवों से लाकर जवानी,
बड़े लोगों का शहर बनाया।
रेगिस्तान जो बना चुनौती,
वहाँ भी तुमने नहर बनाया।
आज भी पूँजीपति वर्ग है,
तेरे प्रति बहुत ही क्रूर।
अब चेतने का समय आ गया,
जागो दुनिया के मज़दूर।
विश्व चमन जो हुआ है पुष्पित,
सींचा है तुमने देकर ख़ून।
अतिशय ठण्डक या भीषण गर्मी,
रहे जनवरी या हो जून।
चौदह लुंगियाँ फट जाती हैं,
तब बनती है एक पतलून।
ईंट ईंट से महल बनाया,
वाशिंगटन हो जा रंगून।
मज़दूरी बस एक धर्म है,
मेहनत ही तेरा है सुरूर।
अब चेतने का समय आ गया,
जागो दुनिया के मज़दूर।
स्वर्ण चतुर्भुज सड़क योजना,
या हावड़ा का हो जूट मिल।
नींव की ईंट मज़दूर बनेगा,
तब दुनिया देखेगी मंज़िल।
जीवन को खाद जब तुम हो बनाते,
अमीरों की जाती कलियाँ खिल।
श्रम की नैया जीवन भर खेकर,
पाते तुम न कभी साहिल।
सारे सपने हो जाते हैं,
देखते-देखते चकनाचूर।
अब चेतने का समय आ गया,
जागो दुनिया के मज़दूर।
पूस की रात के तुम हो हलकू,
और गोदान के होरी तुम।
मन में व्यथा और दिल में दर्द है,
जुबाँ फिर भी रखते गुमसुम।
कोयले की खादानें चौड़ी करके,
हो जाते तुम उसी में गुम।
अनेकों पीढ़ियाँ हो गयीं,
फिर भी ख़ुशियों से रहे महरूम।
ख़ुद मोमबत्ती बनकर जला है,
ताकि मिले औरों को नूर।
अब चेतने का समय आ गया,
जागो दुनिया के मज़दूर।
तेरे पसीने से जुड़े हुए हैं,
ताजमहल के संगमरमर।
पेंटागन तुमने था बनाया,
आधा खाकर नंगे रहकर।
मिस्र की पिरामिड देन है तेरी,
जो है इतिहास की धरोहर।
अपमान का तोहफ़ा, पग-पग पर मिला है,
जवानी और जीवन खोकर।
बहुत हो चुका है संगठित हो जाओ,
ताकि तेरा अभिषेक हो।
जाति केवल ‘मज़दूर’ है तेरी,
चाहे क्षेत्र अनेक हों।
दुनिया भर के मज़दूरों,
एक हो, एक हो।
मज़दूर बिगुल, मई 2018
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