ऑटोमैक्स में तालाबंदी के ख़िलाफ़ आन्दोलन
बिगुल संवाददाता
24 जून को कम्पनी ने गेट पर एकाएक तालाबंदी का नोटिस चिपका दिया और करीब 320 श्रमिकों को एक झटके में बिना किसी नोटिस के सड़क पर ला दिया। ये श्रमिक पिछले 25-30 साल से स्थायी तौर पर काम कर रहे थे। जब गुड़गाँव से कम्पनी को बिनौला में शिफ्ट किया था उसी वक़्त इन श्रमिकों को भी शिफ्ट किया गया था। तालाबंदी के बारे में न तो कम्पनी की यूनियन (ऑटोमैक्स कर्मचारी यूनियन जो एच.एम.एस. से संबद्ध है) को पता था और और न ही किसी मज़दूर को पता था। ऑटोमैक्स लिमिटेड (औमेक्स ऑटो लिमिटेड की यूनिट) गुड़गाँव से जयपुर रोड पर बिनौला में स्थित ऑटोपार्ट्स कम्पनी है।
तालाबन्दी की नोटिस लगने पर यूनियन के लोग गेट पर बैठ गये और मशीन और जरूरी उपकरण को कम्पनी से बाहर जाने से रोकने लगे। यूनियन बार-बार तालाबंदी के क़ानूनी दस्तावेज़ की दिखाने की माँग करती रही। प्रबन्धन ने सुरक्षा के बहाने पुलिस को बुलाया और फिर से पुलिस से मिलीभुगत करके अपनी मशीनों-उपकरणों को निकलवाने की कोशिश करने लगी लेकिन श्रमिक भी डटे रहे। पुलिस ने 200 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के धरने-प्रदर्शन न करने के स्टे-आर्डर की बात करते हुए अपनी पुरानी चाल चली। लेकिन जब स्टे-आर्डर की कॉपी पुलिस से माँगी गयी तो पुलिस कुछ भी नहीं दिखा पायी। थाने में जाने पर पहले तो पुलिसवालों ने यह कहा कि मशीन-उपकरण आदि तो कम्पनी की प्रापर्टी है, वह जब चाहे इसे निकाल सकती है। यूनियन ने ग़ैर-क़ानूनी तालाबंदी के बारे में जाँच करने के लिए कहा। प्रबन्धन द्वारा तालाबंदी के किसी क़ानूनी नोटिस की कॉपी, तालाबंदी के लिए प्रार्थना-पत्र की कॉपी, किसी भी तरह से तालाबंदी के लिए हानि-लाभ का ब्यौरे की कॉपी पेश नहीं कर पायी। यूनियन डी.सी. से मिली और उनको झूठे स्टे-आर्डर तथा ग़ैर-क़ानूनी तालाबंदी के बारे में बताया और यही बात श्रम विभाग को बतायी। दोनों ही एक दूसरे पर टालते रहे। यानि न तो पुलिस किसी स्टे–आर्डर की कॉपी और न ही प्रबन्धन तालाबंदी के लिए का़नूनी सबूत पेश कर पाये और न ही श्रम विभाग द्वारा कोई ठोस कदम कम्पनी के ख़िलाफ़ उठाया गया जबकि श्रम विभाग खुद मान रहा है कि कम्पनी के पास कोई क़ानूनी तालाबंदी का दस्तावेज़ नहीं है। श्रमिक धरने-प्रदर्शन की कार्रवाई में डटे हुए हैं। डी.सी. ने त्रिपक्षीय वार्ता के लिए कम्पनी प्रबन्धन तथा यूनियन को 18 जुलाई को दोबारा बुलाया है।
इस चीज की चर्चा करना भी जरूरी है कि इस कम्पनी में पिछले 20-25 सालों में 30-40 श्रमिकों के हाथ कटे हैं और किसी का हाथ, बाजू, अंगूठा और कुछ श्रमिकों का तो एक बार ज़्यादा कटा है और कई श्रमिकों के तो पैर कटे हैं। आज तक किसी को कोई उचित मुआवजा नहीं मिला।
14 जुलाई को ऑटोमैक्स यूनियन के अलावा अन्य कई यूनियनों – मीनाक्षी पॉलीमर्स प्रा. लि., मेट्रो आर्टम, मार्क एग्जास्ट द्वारा गुड़गाँव के ज़िला प्रशासन के ऑफ़िस पर रोष प्रदर्शन किया गया और श्रमायुक्त को ज्ञापन दिया गया जिसमें ऑटोमैक्स कम्पनी के श्रमिकों को गै़र-क़ानूनी तरीक़े से तालाबंदी करके निकालने के अलावा मेट्रो आर्टम से निकाले गये 45 स्थायी व 120 अस्थायी श्रमिकों को काम पर वापिस लेने, मार्क एग्जास्ट द्वारा कई वर्षों से कार्यरत ठेका श्रमिकों को ग़ैर-क़ानूनी ढंग से नौकरी से निकालने और मीनाक्षी पॉलीमर्स के श्रमिकों का मुद्दा भी रखा गया।
फिलहाल किसी भी कम्पनी का मुद्दा श्रम विभाग-प्रशासन-सरकार द्वारा हल होता नहीं आ रहा है। आज महज ज्ञापनों धरने-प्रदर्शनों से मालिकपरस्त विभागों व सरकारों को कोई असर नहीं पड़ रहा है। ज़रूरत है गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी-खुशखेड़ा-नीमराना तक ऑटो सेक्टर के सभी मज़दूरों की फौलादी एकता कायम की जाये और व्यापक स्तर पर जुझारू आन्दोलन खड़ा किया जाये।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2017
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