ऑमैक्स के संघर्षरत मज़दूरों का संघर्ष ज़िंदाबाद !

बिगुल प्रतिनिधि

धारूहेड़ा की ऑमैक्स कम्पनी में पिछले 15-20 सालों से काम कर रहे श्रमिकों को प्रबन्धन ने एक फ़रवरी को अचानक बिना किसी नोटिस के काम से निकाल दिया। कम्पनी प्रबन्धन ने बिना कोई कारण बताये या नोटिस दिये 344 श्रमिकों को एक साथ काम से बाहर कर दिया। यह घटना अपने आप में ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए कोई नयी बात नहीं है, आये दिन किसी न किसी फ़ैक्टरी-कारख़ाने के मालिक अपने मुनाफ़े को बढ़ाने और मज़दूरों के अधिकारों को कुचलने के लिए मनमर्जी से काम पर रखने और निकालने की चाल अपना रहे हैं। लेकिन ऑमैक्स के मज़दूरों ने चुपचाप बैठकर इस अन्याय को सहने की बजाए इसके ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल फूँक दिया है। साथ ही उन्होंने प्रबन्धन के सामने यह भी साफ़ कर दिया है कि जब तक उनकी माँगें नहीं मानी जातीं तब तक वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे। निकाले गये लगभग 400 मज़दूरों ने डीसी रेवाड़ी के दफ़्तर के आगे प्रदर्शन किया और श्रम एवं समझौता अधिकारी के कार्यालय तक रैली निकाली। कम्पनी प्रबन्धन काम न होने की दुहाई देकर मज़दूरों को काम से निकालने की बात को जायज़ ठहरा रहा है। उन सभी ठेकेदारों का कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म किया जा रहा है जिन ठेकेदारों के ज़रिये श्रमिक नियुक्त किये गये थे। जबकि असली मामला कुछ और ही है। श्रमिकों का कहना है कि प्रबन्धन उन्हें इसलिए निकाल रहा है क्योंकि आगामी अप्रैल में सेटलमेण्ट के वक़्त कम्पनी को इन सभी मज़दूरों को स्थायी करना पड़ता। क्योंकि 15 सालों से ठेके पर होने के बावजूद ये लोग मुख्य उत्पादन पट्टी पर कार्यरत होने के कारण स्थाई किये जाने के दावेदार हो जाते। कम्पनी प्रबन्धन ने बड़ी चालाकी से मज़दूरों को स्थायी करने से बचने के लिए यह सब किया।

पूरे सेक्टर में मज़दूरों का ठेकेदारी प्रथा के नाम पर भयंकर शोषण जारी है। तक़रीबन हर कारख़ाने में मज़दूरों से स्थायी प्रकृति का काम मुख्य उत्पादन पट्टी पर करवाया जाता है किन्तु उनकी नियुक्ति ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है और उन्हें एक स्थायी मज़दूर को मिलने वाले तमाम हक़-अधिकारों से वंचित रखा जाता है। ऑमैक्स प्रबन्धन ने सेक्टर में मौजूद किसी भी दूसरे प्रबन्धन की ही तरह तमाम श्रम क़ानूनों को ताक पर रखकर मज़दूरों को हरियाणा सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन (जोकि पहले से भी बहुत कम है) न देने की प्रथा को जारी रखा है। इसके ख़िलाफ़ मज़दूरों ने कोर्ट में अपील दायर की जिसकी कार्यवाही के तहत 30 जनवरी को प्रबन्धन को पिछले 1 जुलाई से बकाया समेत भुगतान करने का नोटिस दिया। इसके पहले भी मज़दूरों ने इस अन्याय के ख़िलाफ़ 10 फ़रवरी 2016 को एक दिन की हड़ताल की थी। इसमें उनके समर्थन में ऑमैक्स ग्रुप के ही अन्य कारख़ानों के मज़दूरों ने साथ दिया था। ऑमैक्स कम्पनी से निकाले गये मज़दूरों ने 8 फ़रवरी को फ़ैक्टरी गेट से 100 मीटर दूर अपनी सभा चलायी और फ़ैक्टरी के भीतर काम कर रहे मज़दूर साथियों से भी उनके संघर्ष का समर्थन करने का आह्वान किया। जो आज फ़ैक्टरी गेट के बाहर खड़े मज़दूरों के साथ हो रहा है वो कल को फ़ैक्टरी के भीतर काम कर रहे श्रमिकों से साथ भी होगा। और यह हालात सिर्फ़ ऑमैक्स की फ़ैक्टरी के मज़दूरों तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे गुडगाँव-धारूहेड़ा-बवाल औद्योगिक पट्टी में काम कर रहे हर मज़दूर की यही कहानी है। ठेके पर सालों साल खटने के बाद जब स्थायी करने और बढ़ा हुआ वेतन और बाक़ी सब सहूलतें देने का समय आता है तो फ़ैक्टरी प्रबन्धन बड़ी आसानी से ठेका प्रथा का फ़ायदा उठाते हुए मज़दूरों के प्रति अपनी सारी ज़िम्मेदारियों से हाथ धो लेते हैं।

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2017


 

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