मध्य प्रदेश में प्रगतिशील पत्रिकाओं पर सरकारी डण्डा
मेहनतकश अवाम का एकजुट संघर्ष ही मनबढ़ फासिस्ट ताकतों का माकूल जवाब हो सकता है!
कार्यालय संवाददाता
लखनऊ। जीवन के सभी ऐशो–आराम का जमकर भोग करने वाली तथाकथित साध्वी उमा भारमी की भगवा सरकार ने मध्यप्रदश में सत्ता संभालते ही फासिस्ट तेवर दिखाने शुरू कर दिये हैं।
कांग्रेसी शासन के दस साल के निकम्मेपन से उकताई जनता की नाराजगी का फायदा उठाकर और सड़कों और बिजली की खस्ता हालत का मुद्दा उछालकर सत्ता में आई भाजपा ने पिछले दो महीने में हिन्दूवादी भावनाएं उभाड़ने की कार्रवाइयों के अलावा और कुछ नहीं किया है। मुख्यमंत्री को गोवंश और गोशालाओं से ऊपर उठकर इंसानों की सुध लेने की फुरसत ही नहीं है।
दूसरी ओर साध्वी के आशीर्वाद से उनके मंत्रियों ने संघ परिवार की किसी भी आलोचना का मुंह बन्द करने के लिए सरकारी डण्डा भांजना शुरू कर दिया है। पिछले महीने मध्यप्रदेश के संस्कृति मंत्री अनूप मिश्र, जो प्रधानमंत्री के भांजे भी हैं, ने हिन्दी की दो प्रगतिशील पत्रिकाओं ‘उद्भावना’ और ‘समयान्तर’ पर रोक लगाने की कार्रवाई शुरू कर दी। सारा मामला साजिशाना ढंग से अंजाम दिया गया।
मध्यप्रदेश साहित्य परिषद और भारत भवन के स्टाल पर बिक रही इन पत्रिकाओं को आरएसएस का एक कार्यकर्ता खरीदकर मंत्री के पास ले गया। इसके बाद मंत्री ने फौरन इन स्टालों से इन पत्रिकाओं की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया और परिषद के सचिव पूर्णचन्द रथ और भारत भवन के अधिकारी मदन सोनी को निलम्बित करने का आदेश जारी कर दिया। ये दोनों हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक हैं।
इन पत्रिकाओं का गुनाह यही था कि इनमें संघ परिवार की साम्प्रदायिक राजनीति की आलोचना की जाती रही है। मंत्री ने यह भी दंभपूर्ण घोषणा की कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की आलोचना करने वाली किसी भी पुस्तक या पत्रिका को वह राज्य सरकार की संस्थाओं से बिकने नहीं देंगे। एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने यह भी कह डाला कि सरकार प्रदेश में इन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर भी विचार कर सकती है।
फासिस्ट सत्ताएं कभी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं क्योंकि सारे फासिस्ट भीतर से कायर होते हैं। खासकर कला–साहित्य–संस्कृति से तो उनकी जानी दुश्मनी है। हिटलर का प्रचार मंत्री गोयबेल्स कहता था, ‘‘जब मैं संस्कृति शब्द सुनता हूं तो मेरा हाथ अपनी पिस्तौल पर चला जाता है।’’ हिटलर की भारतीय औलादें भी अपने बाप–दादों की इस गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।
आज सवाल यह नहीं है कि साम्प्रदायिक ताकतें क्या और क्यों कर रही हैं। सवाल यह है कि उनका जवाब कैसे दिया जाये। वे अपने काम में बदस्तूर लगी हुई है। लेकिन प्रतिरोध की ताकतें कुछ रस्मी कार्रवाइयों से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। कुछ अखबारी बयान, कुछ निंदा प्रस्ताव, कुछेक धरनों और गोष्ठियों से भगवा ब्रिगेड को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। जब तक साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई को आम मेहनतकश जनता के बीच नहीं ले जाया जायेगा, तब तक भगवा आक्रमण को असरदार जवाब नहीं दिया जा सकेगा। मध्यप्रदेश में नये फासिस्ट हमले ने एक बार फिर यह चुनौती हमारे सामने रख दी है।
बिगुल, फरवरी 2004
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