उ.प्र. में सरकार बदली पर पुलिसिया राज बदस्तूर कायम है!
भवानीपुर कांड : सीआईडी जांच में खाकी वर्दी वाले हत्यारे साफ बचे
कार्यालय संवाददाता
लखनऊ। सीआईडी जांच में मिर्जापुर जिले के उन खाकी वर्दी वाले हत्यारों को बेगुनाह करार दे दिया गया है जिन्होंने आज से लगभग ढाई साल पहले भवानीपुर गांव में दिनदहाड़े 16 नौजवानों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी थी। इन हत्यारों की बेगुनाही के लिए सीआईडी को सिर्फ यह साबित करना पड़ा कि मारे गये नौजवान नक्सली थे। सीआईडी ने शासन को सौंपी गयी इस रिपोर्ट में कहा है कि दिन में हुई इस मुठभेड़ पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
पिछले साल के दिसम्बर माह के आखिरी हफ्ते में शासन को सौंपी गयी इस रिपोर्ट के तमाम बुर्जुआ अखबारों में बीच के पन्नों पर खो गयी। बहुत कम लोगों की निगाह इस पर गयी होगी। जबकि आज से ढाई साल पहले जब यह जघन्य हत्याकाण्ड हुआ था तो व्यापक जनविरोध को देखते हुए मीडिया ने इस घटना को अहमियत के साथ छापा था।
मिर्जापुर जिले के मड़िहान थाना क्षेत्र के भवानीपुर गांव में दिनदहाड़े यह फर्जी मुठभेड़ 9 मार्च 2001 को हुई थी। उस दिन इस गांव के लालबहादुर हरिजन के घर बहूभोज था। मड़िहान थाने की पुलिस ने कथित रूप से इस पारिवारिक आयोजन में नक्सलियों के शामिल होने की सूचना मिलने पर घेरेबन्दी कर 16 नौजवानों की ठंडी हत्या कर दी थी। बाद में इसे नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के रूप में प्रचारित किया गया। लेकिन विभिन्न जनतांत्रिक अधिकार संगठनों और क्रान्तिकारी जनसंगठनों के व्यापक विरोध के कारण प्रदेश सरकार को सीआईडी जांच बिठानी पड़ गयी थी।
घटना की सूचना मिलने पर अगले दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह अपने लाव–लश्कर समेत भवानीपुर गांव पहुंचे थे और मुठभेड़ में शामिल सभी पुलिसकर्मियों को आउट आफ टर्न प्रोन्नति की घोषणा कर दी थी। और अब सीआईडी ने इन पुलिसकर्मियों को क्लीनचिट दे दी है।
सीआईडी की इस रिपोर्ट ने उन सभी स्वतंत्र जांच रिपोर्टों केो झूठा करार दे दिया है जिन्होंने इस सच्चाई की तस्दीक की थी कि पुलिस वालों ने दिनदहाड़े उन नौजवानों को भून डाला और बाद में उसे नक्सलियों से मुठभेड़ करार दिया। पीयूडीआर ने भी अपनी रिपोर्ट में यही नतीजा निकाला था। लेकिन उत्तर प्रदेश में जारी पुलिसिया राज ऐसी सारी रिपोर्टों को पचा जाता है और डकार भी नहीं लेता। प्रदेश में पिछले तीन सालों में तीन सरकारें बदल चुकी हैं लेकिन पुलिसिया राज बदस्तूर कायम है। प्रदेश में पुलिस के जंगलराज की सच्चाई खुद प्रदेश के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष ए. पी मिश्र ने पिछले दिनों एक बयान में स्वीकार की। उन्होंने स्वीकार किया कि मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में उत्तर प्रदेश पहले नम्बर पर है। उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को साल भर में एक लाख से ऊपर शिकायतें मिलती हें, जिनमें लगभग पचास हजार उत्तर प्रदेश से होती हैं।
उत्तर प्रदेश में हालात कितने संगीन हैं, इसका अनुमान केवल इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अकेले सोनभद्र जिले में पिछले साल 28 लोगों को आतंकवाद निरोधक कानून (पोटा) के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। इन पर नक्सली गतिविधियों में शरीक होने का आरोप लगाया गया था और नक्सलवाद विरोधी अभियान के नाम पर इन्हें गिरफ्तार किया गया था। इनमें से कई की उम्र बीस साल से कम थी और सब के सब गरीब दलित और आदिवासी थे। हालांकि इस साल के शुरू में इन पर से पोटा हटा लिया गया पर वे अभी भी अन्य आपराधिक मामलों में जेल में बन्द हैं। इस मामले में एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इनमें से चार लोगों को पुलिस पिछली 21 अप्रैल को फर्जी मुठभेड़ में मार चुकी है।
उत्तर प्रदेश में नक्सलवाद को खत्म करने के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के समय से ही पुलिसिया मुहिम जारी है। राजनाथ सरकार ने राज्य के तीन पूर्वी जिलों–चन्दौली, मिर्जापुर और सोनभद्र को नक्सलवाद प्रभावित घोषित कर रखा था। मई 2002 में मायावती के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में बसपा–भाजपा गठबंधन सरकार बनी तो तीन अन्य पूर्वी जिलों–गाजीपुर, मऊ और बलिया को भी इस सूची में शामिल कर लिया गया। अब राज्य में समाजवाद के ढिंढोरची मुलायम सिंह यादव की सरकार है लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। सरकार का ‘नक्सवाद’ विरोधी अभियान जारी है। पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मार डालने और दूसरे तरह की गम्भीर पुलिस ज्यादतियों की खबरें अक्सर आती रहती हैं।
देश में भूमण्डलीकरण की नीतियों से मेहनतकश अवाम की जिन्दगी में कोहराम मचा हुआ है। हालत यह है कि एक गरीब रिक्शा चालक भूख मिटाने के लिए अपनी दस माह की बच्ची को दस रुपये में बेचने पर मजबूर हो जाता है। लेकिन सरकारें भुखमरी मिटाने के बजाय जिन्दा रहने के लिए उठी आवाजों को कुचलने के लिए अपनी दमन–मशीनरी को अधिक से अधिक चाक–चैबन्द करती जा रही हैं।
बीते साल दिसम्बर के पहले हफ्ते में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने, जो गृहमंत्री भी हैं, लोकसभा को बताया कि कई राज्यों में ‘नक्सलवादी संकट’ का मुकाबला करने के मकसद से देश में पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए हर साल दस अरब रुपये की रकम दी जायेगी।
पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों का आधुनिकीकरण करने, नयी–नयी जेलों को बनाने, खुफिया तंत्र को अधिकाधिक हाईटेक बनाने आदि की कवायदें भविष्य में उठ खड़े होने वाले जनसंघर्षों से निबटने की तैयारियां हैं। जाहिर है हुक्मरान भयभीत हैं। बहरहाल वे लाख कोशिशें कर लें लेकिन वे इतिहास के इस सच को नहीं बदल सकते कि दमन–उत्पीड़न के किसी भी हथकण्डे से जनता की आजादी और एक इंसानी जिन्दगी जीने की चाहतों को नहीं कुचला जा सकता।
बिगुल, फरवरी 2004
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