निजीकरण के खिलाफ उत्तरांचल के विद्युत कर्मियों–अधिकारियों के संयुक्त संघर्ष का ऐलान
बिगुल संवाददाता
उत्तरांचल सरकार द्वारा राज्य के विद्युत विभाग का निजीकरण करने की कोशिशों के खिलाफ प्रदेश भर के विद्युत अभियन्ता एवं कर्मचारी एक बार फिर लामबंद हो गये हैं। विभाग की ज्यादातर यूनियनों ने संघर्ष का एक साझा मंच–“उत्तरांचल विद्युत कर्मचारी– अधिकारी संयुक्त संघर्ष समिति” बनाकर 9 फरवरी 2004 से चरणबद्ध संघर्ष की घोषणा कर दी है।
समिति ने अपने छह सूत्री मांग पत्रक के तहत उत्तरांचल पावर कारपोरेशन का विघटन/कम्पनीकरण तथा उत्तरांचल जल विद्युत निगम का निजीकरण रोकने, दोनों निगमों में पहले हुए समझौतों को लागू करने, संयुक्त प्रबन्ध समितियों को मजबूत बनाने व जे.एम.सी. की सिफारिशों पर कार्रवाई करने, जी.पी.एफ.ट्रस्ट में 200 करोड़ रुपये जमा कराने, रिटायरमेंट की उम्र 60 वर्ष करने व सभी कैटेगरी का राज्य स्तरीय कॉमन कैडर बनाकर पांच पदोन्नतियां देने की मांग की है।
चरणबद्ध आंदोलन के तहत समिति ने 9 फरवरी, 2004 को राज्य के सभी मण्डलों/खण्ड मुख्यालयों पर मशाल जुलूस निकालकर प्रदर्शन करने, 24 फरवरी को रैली व विधान सभा पर प्रदर्शन और उसी दिन हड़ताल की घोषणा का आह्वान किया है।
दरअसल, उदारीकरण के इस दौर में विभिन्न विभागों में निजीकरण की जो आंधी पूरे देश के पैमाने पर चल रही है, उसकी चपेट में विद्युत विभाग भी आ चुका है। पूरे देश के विभिन्न राज्यों में विद्युत परिषदों को तोड़कर निगम बनाने, फिर इन निगमों को भी उत्पादन, वितरण, व पारेषण (ट्रांसमिशन) के रूप में तोड़ने, किस्तों में उन्हें निजी हाथों में देने की प्रक्रिया लगातार चल रही है। दिल्ली विद्युत वितरण का निजीकरण हो चुका है। उत्तर प्रदेश में भी कुछ–कुछ हिस्से निजी हाथों में सौंपे जा चुके हैं और वहां रिलायंस, बिड़ला आदि का कब्जा भी होने लगा है। जगह–जगह विद्युत नियामक आयोग गठित हो चुके हैं।
उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तरांचल में भी विद्युत परिषद को निगम में तब्दील करके पॉवर कारपोरेशन व उत्पादन निगम के रूप में उसके दो हिस्से किये जा चुके हैं। अब विद्युत अधिनियम–2003 के तहत विद्युत वितरण के लिए अलग कम्पनी बनाने की प्रक्रिया भी लगभग पूरी हो चुकी हैं। इसके लिए 9 जून तक की समय सीमा भी निर्धारित हो चुकी है। इसके साथ ही उत्तरांचल पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड भी दो हिस्से में टूट जायेगा। फिर छोटे टुकड़ों का निजीकरण आसान होगा।
वैसे विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में अति मुनाफे वाले उत्तरांचल राज्य की कई महत्वपूर्ण जल विद्युत परियोजनाएं देशी व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंपी भी जा चुकी हैं और यह प्रक्रिया लगातार जारी है। यही नहीं, राज्य में नई विद्युत लाइनों व नये ट्रांसफार्मर आदि बैठाने का काम भी अब निजी कम्पनियों को सौंपा जा रहा है। यही कम्पनियां लगाये गये नये ट्रांसफार्मर क्षेत्र में मेंटेनेंस व पैसा वसूली का काम भी करेंगी।
अस्तित्व के ऐसे संकट के दौर में विभिन्न खण्डों में बंटी यूनियनों की एक साझा संघर्ष के लिए आगे आना एक स्वागत योग्य कदम है। होना तो यह चाहिए था कि विद्युत विभाग के निजीकरण के खिलाफ एक बैनर तले देश भर के विद्युत कर्मियों का एकजुट संघर्ष चलता। यही नहीं, चूंकि निजीकरण की यह बयार पूरे देश में चल रही है, लिहाजा पूरे देश के पैमाने पर मजदूरों–कर्मचारियों को सरकारी–निजी, संगठित–असंगठित व अलग–अलग विभागों–सेक्टरों के बंटवारे की दीवारों को तोड़कर तैयारी के साथ संघर्ष के लिए उतरना चाहिए।
लेकिन निजी स्वार्थों में लिप्त मठाधीश ट्रेड यूनियन नेताओं ने बंटवारे की इतनी दीवारें खड़ी कर रखी है और संघर्ष की धार को इस कदर कुंद कर रखा है कि वास्तविक आंदोलन पीछे छूट गया है। इन नेताओं की बार–बार की गद्दारियों ने मजदूर आंदोलन की कमर तोड़कर रख दी है। जाहिरा तौर पर इस परिस्थिति से ही हड़ताल पर प्रतिबंध लगाने, लम्बे संघर्षों के दौरान प्राप्त अधिकारों को छीनने, निजीकरण–छंटनी–तालाबंदी का दौर चलाने के लिए लुटेरों की सरपरस्त सरकारों और उनके अंगों–उपांगों को उचित अवसर मिला है।
केवल विद्युत विभाग को ही देखें तो उत्तर प्रदेश में 67 यूनियनें हैं और छोटे से उत्तरांचल में एक दर्जन से ज्यादा यूनियनें कार्यरत हैं। ऐसे में साझे संघर्ष की यह एक नयी शुरुआत मजदूरों में एक नयी ऊर्जा का संचार कर सकती है, बशर्ते कि नेतृत्व ईमानदारी और सच्ची भावना से संघर्ष की रणनीति पर अमल करे। इसके साथ ही उन्हें अपने इस आंदोलन को अन्य क्षेत्र के मजदूर आंदोलनों के साथ जोड़ते हुए इसे जनान्दोलन बनाने का भी प्रयास करना होगा।
बिगुल, फरवरी 2004
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