लुधियाना के मज़दूर संघर्ष की राह पर

बिगुल संवाददाता

लुधियाना में टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में विभिन्न कारखानों के मज़दूर संघर्ष की राह पर हैं। पिछले दिनों में कई कारखानों के मज़दूरों ने एकजुट होकर मालिकों की धक्केशाहियों के ख़ि‍लाफ़ आवाज़ बुलन्द की और इसकी बदौलत कुछ अधिकार प्राप्त किए हैं। इस साल मई में राजकुमार रविन्दरकुमार टेक्सटाइल (इण्डस्ट्रीयल एरिया ए, नजदीक चीमा चौंक) व ओक्टेव क्लोथिंग (नज़दीक जालंधर बाईपास) के मज़दूरों की हड़तालों के बारे में ‘मज़दूर बिगुल’ के पिछले अंक में रिपोर्ट छपी थी। 30 जून को अनेकों कारखानों के मज़दूरों ने एक दिन की हड़ताल करके कारखानों में श्रम कानून लागू करवाने के लिए आवाज़ बुलन्द की। इस दौरान अशोक जैन शाल इम्पोरियम प्राईवेट लिमिटेड व सोहम टेक्सटाईल के मज़दूरों ने मालिकों द्वारा अन्याय के ख़ि‍लाफ़ हड़ताल का रास्ता अपनाया। लुधियाना के काकोवाल इलाके में स्थित अशौक जैन कारखाने के मज़दूरों ने अपने संघर्ष के ज़रिये वेतन वृद्धि, बोनस, ई.एस.आई व ई.पी.एफ. के लिए की जा रही नाजायज़ कटौतियों को बन्द करने और मालिक द्वारा अपना हिस्से की अदायगी करने की माँगें मनवाई हैं। उनकी हड़ताल दस दिन तक चली थी। मेहरबान में स्थित सोहम शाल कारखाने के मज़दूरों ने भारी ताना न उठाने की माँग मनवाने के लिए आठ दिन तक हड़ताल लड़ी। यहाँ पर भी मालिक को मज़दूरों की माँग माननी पड़ी।

यह रिपोर्ट लिखते समय जनता टेक्सटाईल, रामनाथ टेक्सटाईल (दोनों इण्डस्ट्रीयल एरिया-ए, नजदीक चीमा चौंक) व जनता उद्योग (फेस-4, फोकल प्वांइण्ट) में वेतन वृद्धि, बोनस, ई.एस.आई., ई.पी.एफ., वेतन पर्ची, सुरक्षा के इंतजाम, आदि माँगों के लिए हड़ताल पर हैं। जनता टेक्सटाईल के मज़दूरों ने 9 जुलाई को हड़ताल की थी। 11 जुलाई को अन्य दो कारखानों के मज़दूरों ने भी हड़ताल में शामिल होने का ऐलान कर दिया था।

पहले से ही भयानक ग़रीबी-बदहाली का जीवन जीने पर मज़बूर मज़दूरों का बढ़ी महँगाई ने और भी बुरा हाल कर दिया है। मालिक मंदी का बहाना बनाकर मज़दूरों के वेतन में वृद्धि करने को तैयार नहीं हैं। श्रम क़ानूनों के तहत अन्य अधिकार (बोनस, ई.एस.आई., ई.पी.एफ. आदि) भी जिन मज़दूरों को मिल भी रहे हैं वे भी छीने जा रहे हैं। ऐसे में मज़दूरों में पूँजीपतियों के ख़ि‍लाफ़ रोष का बढ़ना स्वाभाविक है। टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन मज़दूरों के बीच में लगातार यह प्रचार कर रही है कि मंदी का बोझ मज़दूरों पर लादे जाने के ख़ि‍लाफ़ मज़दूरों को लड़ना होगा। मन्दी है तो पूँजीपति अपने मुनाफ़ों में कटौती करें मज़दूरों के वेतन व अन्य न्यायपूर्ण सुविधाओं पर डकैती न डालें।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2016


 

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