बढ़ते आर्थिक अन्तर
सिकंदर
स्विट्जरलैंड के एक बैंक क्रेडिट स्विस की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में अमीर-गरीब के बीच का अन्तर लगातार बढ़ रहा है। यह अन्तर इतिहास के किसी भी दौर से अब अधिक हो चुका है, जहाँ ऊपर की 1% आबादी की कुल संपत्ति बाकी 99% आबादी की संपत्ति के बराबर हो चुकी है। इस रिपोर्ट के अनुसार ऊपर की 1% आबादी के पास संसार की कुल सम्पदा का लगभग 50% हिस्सा है, जबकि नीचे की 50% आबादी के पास इसका 1% भी नहीं बनता| ऊपर की 10% आबादी के पास संसार की 87.7% संपत्ति इकट्ठी हो चुकी है, जबकि नीचे की 90% आबादी के पास केवल 12.3% हिस्सा है।
संसार की कुल आबादी का यह ऊपरी 10% हिस्सा केवल बैंकों और वित्तीय पूँजी पर ही नियंत्रण नहीं करता, बल्कि सरकारों को भी अपनी मुट्ठी में रखता है। अपने मुनाफ़े की हवस में ये पूँजीपति युद्ध तक करवा देते हैं। 2008 से जारी विश्वव्यापी मंदी के बाद इन आर्थिक अन्तरों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इस मंदी के चलते एक ओर जहाँ ऊपरी आबादी अधिक अमीर होती गई है, वहीं दूसरी ओर सरकारी सुविधाओं में लगातार की जाने वाली कटौतियों के चलते आम लोगों की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है।
कल्याणकारी राज्य का पूरा नक़ाब उतार कर अब दुनिया भर की बूर्जुआ राज्यसत्ताएँ अपनी डूबती नैया को बचाने के लिए फ़ासीवाद का सहारा ले रही हैं। अपनी उम्र भोग चुका यह पूंजीवादी ढाँचा अब बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी को केवल बेरहम, मौत जैसी ज़िन्दगी ही दे सकता है, जबकि मुट्ठीभर निठल्ले और परजीवी लोग ऐश-पस्ती की ज़िन्दगी बिताते हैं। इस मुनाफ़ाखोर ढाँचे को उखाड़ कर नया प्रबंध कायम करने का सवाल आज हमारे दरवाज़ों पर दस्तक दे रहा है | इस मुनाफ़ाखोर ढाँचे का एक मात्र विकल्प सामाजिक मालिकाने पर आधारित समाजवादी प्रबंध ही हो सकता है, जहाँ समस्याओं की जड़, यानी निजी सम्पत्ति ही समाप्त कर दी जाती है |
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2016
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