सरकार की कठोर पूँजीवादी नीतियों के खिलाफ़ फ्रांस के लाखों मज़दूर, नौजवान, छात्र सड़कों पर
लखविन्दर
पेरिस कम्यून की धरती फ्रांस में शोषणकारी हुक़्मरानों के खिलाफ़ जनान्दोलनों की एक शानदार परम्परा रही है। समय-समय पर फ्रांसीसी जनता हुक़्मरानों की जनविरोधी नीतियों का जबरदस्त विरोध करती रही है। पिछले दिनों मार्च-अप्रैल महीनों के दौरान भी फ्रांस के मज़ूदूरों, नौजवानों व छात्रों द्वारा मज़दूर विरोधी श्रम सुधारों, जनता से सरकारी सहूलतें छीनने आदि के खिलाफ़ फ्रांस भर में बड़े पैमाने पर जबरदस्त प्रदर्शन हुए हैं। पहली मई को भी फ्रांस में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए हैं। इन प्रदर्शनों में दस लाख से अधिक मज़दूरों, नौजवानों, छात्रों ने शमूलीयत की है। इस दौरान लोगों की पुलीस के साथ जबरदस्त झड़पें हुई हैं। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने जमकर लाठियाँ बरसाई, आँसू गैस के गोले फेंके, बड़ी संख्या प्रदर्शनकारियों को गिरफतार किया लेकिन हाकिमों का दमन जनाक्रोश को शांत नहीं कर पाया है। सबसे जबरदस्त प्रदर्शन फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुए हैं।
फ्रांस में इस समय बेरोज़गारी बहुत बड़े स्तर पर फैली हुई है। फ्रांस के करीब 25 प्रतिशत नौजवान बेरोजगार हैं। बहुत मज़दूरों और नौजवानों को बहुत कम तनखाहों पर और कठोर शर्तों पर गुजारे के लिए निजी कम्पनियों को अपना कीमती श्रम बेचना पड़ता है। छात्रों को अपने भविष्य की चिन्ता सता रही है। बेहतरी के लिए बदलाव की उम्मीद में फ्रांस की साधारण जनता ने खुद को वामपन्थी कहने वाली पार्टियों को वोट दी। नतीजे के तौर पर मार्च 2014 में समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में तथाकथित वामपन्थी गठजोड़ की सरकार बनी थी। लेकिन सरकार बनने के बाद तथाकथित वामपन्थियों का पूँजीपरस्त वास्तविक चेहरा जनता के सामने आया जब इन्होंने पूँजीपतियों के पक्ष में जनता के अधिकारों पर बड़े स्तर पर कटौती के सिलसिले को ही आगे बढ़ाया। अब फ्रांसीसी सरकार मज़दूरों के कानूनी श्रम अधिकारों पर बड़े स्तर पर डाका मारने जा रही है। फ्रांस की जनता ने सरकार की इस मज़दूर विरोधी कार्रवाई का डटकर विरोध किया है।
फ्रांस की सरकार व पूँजीपतियों का कहना है कि वहाँ श्रम कानून बहुत सख्त हैं जिनके चलते पूँजीपतियों को निवेश करने व अधिक मज़दूरों को काम पर रखने सम्बन्धी समस्याएँ आती हैं। अगर श्रम कानूनों को ढीला कर दिया जाए तो बेरोजगारी की समस्या हल हो जाएगी। ऐसा कहते हुए फ्रांसीसी सरकार नया कानून ला रही है जिसके जरिए मज़दूरों के कानूनी श्रम अधिकारों पर बड़े स्तर पर कटौती करने की कोशिश की जा रही है। छँटनी करने पर मज़दूरों को दिए जाने वाले मुआवजे पर कट लगाया जा रहा है। मज़दूरों व मालिकों के विवादों में पूँजीपतियों की टाँग और ऊपर करने के लिए नियम बनाए जा रहे हैं। फ्रांस की बहुसंख्या जनता सरकार के इन कदमों के खिलाफ़ है। लेकिन सरकार अड़ियल रुख अपनाते हुए मज़दूर विरोधी श्रम सुधारों को लागू करने पर बजिद है। पहले ही बेरोजगारी के सताए लोगों का सरकार के रवैये के कारण गुस्सा और भड़क उठा है। विभिन्न ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर श्रम सुधारों के खिलाफ़ हुए प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में नौजवान-छात्र स्वंसफूर्त ढंग से शामिल हुए हैं।
फ्रांस के इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि पूँजीवादी व्यवस्था से घुलमिल चुके तथाकथित वामपंथियों से जनता को उदारीकरण-निजीकरण के मौजूदा विश्वव्यापी दौर में जनता के हितों में आर्थिक सुधारों की कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। उनकी कहनी और करनी में ज़मीन आसमान का फर्क है। ये हमेशा जनता को धोखा देते आये हैं।
आज पूरे संसार में उदारीकरण-निजीकरण की आँधी झूल रही है और मज़दूरों-मेहनतकशों, नौजवानों, छात्रों के अधिकारों को बुरी तरह कुचला जा रहा है। पूरी दुनिया में ही मज़दूर विरोधी श्रम सुधार किए जा रहे हैं। हमारे देश में भी यही हालत है। ऐसे समय में फ्रांस के मज़दूरों, नौजवानों, छात्रों का श्रम सुधारों के खिलाफ़ जबर्दस्त आन्दोलन भरपूर स्वागतयोग्य है। पेरिस कम्यून की धरती के जुझारू साथियों को इंकलाबी सलाम!
मज़दूर बिगुल, मई 2016
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन