तुम्हारे सदाचार की क्षय – राहुल सांकृत्यायन
हमारे देश के एक बड़े आदमी हैं। धर्म पर वह अपनी बड़ी भारी अनुरक्ति दिखलाते हैं। भगवान का नाम लेते-लेते गदगद होकर नाचने लगते हैं और ऐसे प्रदर्शन में काफी रुपया खर्च करते रहते हैं। उनकी हालत यह है कि जिस वक्त बड़े वेतन वाले पद पर थे, तब कभी रिश्वत बिना लिये नहीं छोड़ते थे और स्त्रियों के सम्बन्ध में तो मानो सभी नियमों को तोड़ देने के लिए भगवान की ओर से उन्हें आज्ञा मिली है। एक प्रातःस्मरणीय राजर्षि को मरे अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं। उनकी भगवद्भक्ति अपूर्व थी। सबेरे ईश्वर-भक्ति पर एक पद बनाये बिना वह चारपाई से उठते न थे और पूजा-पाठ में उनके घण्टों बीत जाते थे। लेकिन, दूसरी ओर हाल यह था कि अपने नगर और राज्य में जहाँ किसी सुन्दरी का जैसे ही पता लगा कि जैसे हो उसे मँगवाकर ही छोड़ते थे। एक तरुण विधवा रानी थीं। उनके पास बड़ी भारी जायदाद थी। एक बड़े तीर्थ में भगवद्-चरणों में लवलीन हो अपना दिन काटती थीं। धार्मिक-उत्सव, पूजापाठ में खुलकर रुपया खर्च करती ही थीं, साथ ही उनके यहाँ बहुत से विद्यार्थियों को भी रखकर भोजन दिया जाता था। रानी साहिबा अपनी आँख से देखकर विद्यार्थी को भर्ती होने देती थीं और तरुण विद्यार्थी रात-रात भर पार्थिव पूजा में उनकी सहायता करते थे। अत्यन्त वृद्धा होने पर भी उनकी अपार काम-पिपासा में कोई अन्तर नहीं आया।