कविता – शहीद भगत सिंह के इहे एक सपना रहे
शहीद भगत सिंह के एही एक सपना रहे
सब बराबर रहे कोई न भूखा मरे
उनके बतिया पर कर हम धियान भईया।
मिल-जुल कर…
शहीद भगत सिंह के एही एक सपना रहे
सब बराबर रहे कोई न भूखा मरे
उनके बतिया पर कर हम धियान भईया।
मिल-जुल कर…
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से भर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
ये चौबारे महल उठाये हैं तूने
सुख के सब सामान जुटाये हैं तूने
फिर क्यों बच्चों ने तेरे
हर दम आधी रोटी खायी
उठ जाओ मज़लूमो और जवानो
मोटी-मोटी तोंदों को जो
ठूँस-ठूँसकर भरे हुए
हम भूखों को सीख सिखाते —
‘सपने देखो, धीर धरो!’
मजदुरवन क भइया केहुना सुनवइया।
ये ही लोधियनवा क हव अइसन मालिक।
मज़दूरी मँगले पर देई देल गाली।
मिली जुली के करा तु इनकर सफइया।
मजदुरवन क भइया केहु ना सुनवइया।
नहीं पराजित कर सके जिस तरह
मानवता की अमर-अजेय आत्मा को,
उसी तरह नहीं पराजित कर सके वे
हमारी अजेय आत्मा को
आज भी वह संघर्षरत है
नित-निरन्तर
उनके साथ
जिनके पास खोने को सिर्फ़ ज़ंजीरें ही हैं
बिल्कुल हमारी ही तरह!
माओ ने यह सुप्रसिद्ध कविता उस समय लिखी थी जब चीन में पार्टी के भीतर मौजूद पूंजीवादी पथगामियों (दक्षिणपंथियों को यह संज्ञा उसी समय दी गई थी) के विरुद्ध एक प्रचण्ड क्रान्ति के विस्फोट की पूर्वपीठिका तैयार हो रही थी। महान समाजवादी शिक्षा आन्दोलन के रूप में संघर्ष स्पष्ट हो चुका था। युद्ध की रेखा खिंच गई थी। यह 1966 में शुरू हुई महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की पूर्वबेला थी जिसने पूंजीवादी पथगामियों के बुर्जुआ हेडक्वार्टरों पर खुले हमले का ऐलान किया था। सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति ने पहली बार सर्वहारा अधिनायकत्व के अन्तर्गत सतत क्रान्ति और अधिरचना में क्रान्ति का सिद्धान्त प्रस्तुत किया और इसे पूंजीवादी पुनर्स्थापना को रोकने का एकमात्र उपाय बताते हुए समाजवाद संक्रमण की दीर्घावधि के लिए एक आम कार्यदिशा दी। इसके सैद्धान्तिक सूत्रीकरणों की प्रस्तृति 1964.65 में ही की जाने लगी थी।
पथ पर
चलते रहो निरन्तर
सूनापन हो
या निर्जन हो
पथ पुकारता है।
गत स्वप्न हो
पथिक
चरण-ध्वनि से
दो उत्तर
पथ पर
चलते रहो निरन्तर
भगतसिंह, इस बार न लेना काया भारतवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की.
क्यों तुम भू–स्वामियों के हेतु
भूमि जोतते हो,
दे रहे जो नीची से नीची स्थिति तुम्हें?
क्यों तुम उन स्वामियों के हेतु
बुन रहे हो यह
नूतन आकर्षक वस्त्र्
पटुता से, अथक परिश्रम से;
जिससे उन वस्त्रों को, जो कि बहुमूल्य हैं,
क्रूर वे शासक–गण गौरव से पहनें?