कविता – फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे / शशिप्रकाश
सत्ता के महलों से कविता बाहर लानी होगी ।
मानवात्मा के शिल्पी बनकर आवाज़ उठानी होगी ।
मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी ।
आशाओं के रण-राग हमें रचने होंगे ।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे ।