सुब्रत राय सहारा: परजीवी अनुत्पादक पूँजी की दुनिया का एक धूमकेतु
यूँ तो पैराबैंकिंग क्षेत्र में पूरे देश में पिछले 40 वर्षों से बड़े-बड़े घोटाले (ताजा मामला सारदा ग्रुप का है) होते रहे हैं, पर सुब्रत राय अपने आप में एक प्रतिनिधि घटना ही नहीं बल्कि परिघटना हैं। सुब्रत राय भारत जैसे तीसरी दुनिया के किसी देश में ही हो सकते हैं, जहाँ अनुत्पादक परजीवी पूँजी का खेल राजनेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों, तरह-तरह के काले धन की संचयी जमातों और काले धन के सिरमौरों की मदद से खुलकर खेला जाता है। लेकिन पूँजी के खेल के नियमों का अतिक्रमण जब सीमा से काफी आगे चला जाता है तो व्यवस्था और बाज़ार के नियामक इसे नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाते हैं और तब सबसे “ऊधमी बच्चे” को या तो कोड़े से सीधा कर दिया जाता है या खेल के मैदान से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। सुब्रत राय के साथ यही हुआ है।