Tag Archives: सनी

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (सातवीं किस्त)

“कम्युनिस्ट हर देश की मज़दूर पार्टियों के सबसे उन्नत और कृतसंकल्प हिस्से होते हैं, ऐसे हिस्से जो औरों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं; दूसरी ओर, सैद्धान्तिक दृष्टि से, सर्वहारा वर्ग के विशाल जन-समुदाय की अपेक्षा वे इस अर्थ में उन्नत हैं कि वे सर्वहारा आन्दोलन के आगे बढ़ने के रास्ते की, उसके हालात और सामान्य अन्तिम नतीजों की सुस्पष्ट समझ रखते हैं।”

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (छठी किस्त)

सर्वहाराओं का एक वर्ग के रूप में संगठन और फलतः एक राजनीतिक पार्टी के रूप में उनका संगठन उनकी आपसी होड़ के कारण बराबर गड़बड़ी में पड़ जाता है। लेकिन हर बार वह फिर उठ खड़ा होता है – पहले से भी अधिक मज़बूत, दृढ़ और शक्तिशाली बनकर। ख़ुद बुर्जुआ वर्ग की भीतरी फूटों का फायदा उठाकर वह मज़दूरों के अलग-अलग हितों को क़ानूनी तौर पर भी मनवा लेता है। इंग्लैण्ड में दस घण्टे के काम के दिन का क़ानून इसी तरह पारित  हुआ था।

मई दिवस और मौजूदा दौर में मज़दूर वर्ग के समक्ष चुनौतियाँ

एक ऐसे वक़्त में हम मई दिवस मना रहे हैं जब मज़दूरों से उन अधिकारों को ही छिना जा रहा है जिन्हें मई दिवस के शहीदों की शहादत और मजदूर वर्ग के बेमिसाल संघर्षों के बाद हासिल किया गया था। दुनिया भर में फ़ासीवादी और धुर-दक्षिणपंथी सरकारें सत्ता में पहुँच रही हैं जो मज़दूर अधिकारों पर पाटा चला रही हैं। यह दौर नवउदारवादी हमले का दौर है। ठेकाकरण, अनौपचारिकीकरण, यूनियनों को ख़त्म किया जाना और श्रम क़ानूनों को ख़त्म किया जाना मज़दूर वर्ग के समक्ष चुनौती है। तुर्की के मज़दूर वर्ग के कवि नाज़िम हिकमत ने एक कविता में कहा था कि यह जानने के लिए कि हमें कहाँ जाना है यह जानना ज़रूरी होता है कि हम कहाँ से आये हैं। मई दिवस के आज के दौर की चुनौतियों की थाह लेने से पहले हम एक बार अपने अतीत पर निगाह डालें तो इस चुनौती का सामना करने का रास्ता भी मिल जायेगा।

भारत-कनाडा कूटनीतिक विवाद तथा भारतीय शासक वर्ग की राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रश्न

भारत के पूँजीपति वर्ग का मुख्यतः चरित्र औद्योगिक वित्तीय है और मार्क्सवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र का ‘ क ख ग’ भी जानने वाला यह जानता है कि यह  वर्ग दलाल नहीं हो सकता है क्योंकि उसे बाज़ार की ज़रूरत होती है जबकि मुख्यत: व्यापारिक- नौकरशाह पूँजीपति वर्ग दलाल हो सकता है, क्योंकि उसे इससे मतलब नहीं है कि वह देशी पूँजीपति का माल बाज़ार में बेचतकर वाणिज्यिक मुनाफ़ा हासिल कर रहा है, या विदेशी पूँजीपति का माल बेचकर। लेकिन भारत के पूँजीपति वर्ग का चरित्र मुख्यत: वाणिज्यिक-नौकरशाह पूँजीपति वर्ग का नहीं है। यह, मुख्यत: और मूलत:, एक वित्तीय-औद्योगिक पूँजीपति वर्ग है।

चैट जीपीटी और “मानव समाज पर ख़तरा!”

जिसे कृत्रिम चेतना कहा जा रहा है वह वास्तव में मानव की मानसिक गतिविधि का ही अमूर्तन है। परन्तु चूँकि मानसिक गतिविधि अपने आप में सीमित नहीं है इसलिए उसका अमूर्तन भी कोई ‘अन्तिम उत्पाद’ नहीं है। मानव ज्ञान के उन्नततर होते जाने के साथ ही यह भी और उन्नततर होगा। चैट जीपीटी मशीन मानवीय ज्ञान के एक ख़ास स्तर का ही प्रतिबिम्बन करती है। मानव चेतना का गुण होता है कि वह वस्तु जगत का प्रतिबिम्बन करती है। यह प्रतिबिम्बन हूबहू आईने के प्रतिबिम्बन समान नहीं होता है। पहले स्तर पर हमारी आँखें, हमारी नाक, कान, जीभ और त्वचा यानी इन्द्रियों के जरिये भौतिक जगत की एक तस्वीर, एक खाका और एक रूपरेखा बनाते हैं। यह भौतिक जगत समाज और प्रकृति ही है। अब चूँकि समाज और प्रकृति दोनों ही परिवर्तनशील हैं तो ज़ाहिर है कि प्रतिबिम्बन भी परिवर्तनशील होगा।

मज़दूर वर्ग को आरएसएस द्वारा इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान को विकृत करने का विरोध क्यों करना चाहिए? 

डार्विन का सिद्धान्त जीवन और मानव के उद्भव के बारे में किसी पारलौकिक हस्तक्षेप को खत्म कर जीवन जगत को उतनी ही इहलौकिक प्रक्रिया के रूप में स्थापित करता है जैसे फसलों का उगना, फै़क्ट्री में बर्तन या एक ऑटोमोबाइल बनना। यह जीवन के भौतिकवादी आधार तथा उसकी परिवर्तनशीलता को सिद्ध करता है। यह विचार ही शासक वर्ग के निशाने पर है। संघ अपनी हिन्दुत्व फ़ासीवादी विचारधारा से देशकाल की जो समझदारी पेश करना चाहता है उसके लिए उसे जनता की धार्मिक मान्यताओं पर सवाल खड़ा करने वाले हर तार्किक विचार से उसे ख़तरा है। जनता के बीच धार्मिक पूर्वाग्रहों को मज़बूत बनाकर ही देश को साम्प्रदायिक राजनीति की आग में धकेला जा सकता है।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (पॉंचवीं क़िस्त)

पूँजीवाद के अन्तिम मंज़िल में पहुँचने पर पूँजीवादी राज्य का सैन्यकरण तथा अतिकेन्द्रीकरण होता है। मज़दूर वर्ग की पार्टी की बोल्‍शेविक अवधारणा भी एक ज़रूरत बन जाती है। लेनिनवादी पार्टी की अवधारणा जैकोबिन दल या कम्युनिस्ट लीग से अलग था। यही हो भी सकता था। यह वर्ग संघर्ष के तीखे होने और उसके साथ ही सर्वहारा वर्ग के हिरावल के केन्द्रीकृत सांगठनिक ढाँचे की आवश्‍यकता के अनुरूप पैदा होने वाला सांगठनिक रूप था। सर्वहारा वर्ग की पहली सचेतन क्रान्ति को अंजाम देने वाली बोल्शेविक पार्टी का सांगठनिक ढाँचा इतिहास की एक लम्बी प्रक्रिया का उत्पाद है। संगठन के स्वरूप के इतिहास पर चर्चा की शुरुआत जैकोबिन दल से की जा सकती है।

यूक्रेन-रूस युद्ध की विभीषिका में साम्राज्यवादी गिद्ध हथियार बेच कमा रहे बेशुमार मुनाफ़ा

इस भयानक बर्बादी के बीच रूस और पश्चिमी देशों के रक्षा उद्योग की कम्पनियों ने ज़बरदस्त मुनाफ़ा कमाया है। टैंक, से लेकर ड्रोन, मिसाइल, मशीनगन, विमान तथा अन्य हथियारों का बाज़ार कुलाँचे मारकर आगे बढ़ रहा है। लॉकहीड मार्टिन, रेथ्योन, बोइंग और नॉर्थरोप ग्रुम्मन जैसी अमेरिकी हथियार कम्पनियों ने पिछले साल ज़बरदस्त मुनाफ़ा कमाया है। नॉर्थरोप ग्रुम्मन के शेयर 40 प्रतिशत बढ़ गये हैं जबकि लॉकहीड मार्टिन के शेयरों की कीमत में 37 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। ब्रिटेन की रक्षा क्षेत्र की कम्पनी बीएई सिस्टम्स के शेयर में नये साल की शुरुआत से अब तक 36 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। ल्योपार्ड टैंक बनाने वाली जर्मनी की राईनमेटल कम्पनी ने भी पिछले साल जमकर मुनाफ़ा कमाया है। रूस की रक्षा कम्पनियों ने भी इस तबाही में ज़बर्दस्त मुनाफ़ा पीटा है।

‘आधुनिक रोम’ में ग़ुलामों की तरह खटते मज़दूर

गुड़गाँव के इफ़्को चौक मेट्रो स्टेशन से गुड़गाँव शहर (या भाजपा द्वारा किये नामकरण के अनुसार गुरुग्राम) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आप किसी जादुई नगरी में आ गये हों। आधुनिक स्थापत्यकला (तकनीकी भाषा में कहें तो ‘उत्तरआधुनिक स्थापत्यकला’) के एक से एक नमूनों में शीशे-सी जगमगाती मीनारों की आड़ी-तिरछी आकृतियों से शहर की रंगत अलग ही लगती है। पर इस जगमग शहर की सड़कों पर मज़दूरों को अपने परिवारों के साथ घूमने की इजाज़त नहीं, इस शहर के पार्कों में हम जा नहीं सकते, भले ही सड़कों को चमकाने और पार्कों को सुन्दर बनाने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर ही आती हो।

क्लासिकीय पेण्टिंग्स पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा हमला : सही सर्वहारा नज़रिया क्या हो?

पिछले तीन महीनों में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने आम लोगों का ध्यान पर्यावरण समस्या की ओर खींचने के लिए चुनिन्दा क्लासिकीय चित्रों पर हमला किया है। लिओनार्डो दा विन्ची की मोनालिसा, वैन गॉग की सनफ़्लावर्स तथा मोने का एक चित्र भी निशाने पर आ चुका है। पर्यावरण कार्यकर्ता ‘स्टॉप आयल’ और ‘लेट्जे जेनेरेन’ नामक एनजीओ से जुड़े हैं जिन्होंने म्यूज़ियम में जाकर चित्रों पर टमाटर की चटनी फेंकने से लेकर स्याही फेंकने का तरीक़ा अपनाया है।