पूँजीवादी व्यवस्था में न्याय सिर्फ़ अमीरों के लिए है!
वैसे तो भारतीय संविधान कागज़ पर अमीर-ग़रीब सभी को बराबर न्याय का अधिकार देता है किन्तु सच तो यह है कि न्याय का तराजू पैसों वाले के हाथों में है। न्याय की प्रक्रिया ही ऐसी है कि ग़रीब तो पहले से ही टूटा हुआ न्यायालय पहुँचता है व ज़िन्दगी भर न्याय की उम्मीद में न्यायालय के चक्कर लगाते-लगाते उसकी ज़िन्दगी ही ख़त्म हो जाती है।