जजों की सम्पत्ति सार्वजनिक करने या न करने के बारे में
पूँजीवादी शोषक व्यवस्था के सभी अंगों की तरह यहाँ की न्याय व्यवस्था भी पूरी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त है। अदालतों में न्याय बिकता है, गवाह बिकते हैं, वकील बिकते हैं और जज भी बिकते हैं। हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के वकील जिनकी “प्रैक्टिस” ठीक-ठाक चलती है, वे करोड़पति बन चुके हैं। ऐसे में जजों की सम्पत्ति का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। अगर हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की अकूत सम्पत्ति के ब्योरे जनता के सामने आयेंगे तो निश्चय ही सवाल उठेगा कि उनके पास इतना धन कहाँ से आया? और इसका जवाब पाना आम जनता के लिए मुश्किल नहीं होगा। इसीलिए सरकार न्याय व्यवस्था की गन्दगी को परदे में ढँकना चाहती है।