कब तक यूँ ही गुलामों की तरह सिर झुकाये जीते रहोगे
समीचन्द के साथ हुई यह मारपीट अपने आपमें कोई अकेली घटना नहीं है। यह पूरे इलाक़े में मज़दूरों पर हो रहे अत्याचार की झलक मात्र है। गुड़गाँव-मानेसर- धारुहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी और ख़ुशखेड़ा तक लाखों मज़दूर आधुनिक गुलामों की तरह खट रहे हैं। इस पूरे औद्योगिक क्षेत्र में ऑटोमोबाइल, दवा आदि फ़ैक्टरियों के साथ-साथ कपड़े उद्योग से जुड़े अनेक कारख़ाने मौजूद हैं। इन फ़ैक्टरियों में लाखों मज़दूर रात-दिन अपना हाड़-मांस गला कर पूरी दुनिया की बड़ी-बड़ी कम्पनियों के लिए सस्ती मज़दूरी में माल का उत्पादन करने के लिए लगातार खटते हैं। जहाँ एक तरफ़ ये कम्पनियाँ हमारे ही हाथों से बने उत्पादों को देश-विदेश में बेचकर अरबों का मुनाफ़ा कमा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ इनमें काम करने वाले हम मज़दूर बेहद कम मज़दूरी पर 12 से 16 घंटों तक काम करने के बावजूद अपने परिवार के लिए ज़रूरी सुविधाएँ भी जुटा पाने में असमर्थ हैं। लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, जबरन ओवरटाइम, वेतन में कटौती, ठेकेदारी, यूनियन बनाने का अधिकार छीने जाने जैसे साझा मुद्दे हैं। लेकिन हमारा संघर्ष कभी-कभी के गुस्से के विस्फोट तक और अलग अलग कारख़ानों में अलग-अलग लड़ाइयों तक ही सीमित रह जाता है।