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पंजाबी कहानी – नहीं, हमें कोई तकलीफ नहीं – अजीत कौर, अनुवाद – सुभाष नीरव

एक सुखद आश्चर्य का अहसास कराती पंजाबी लेखिका अजीत कौर की यह कहानी ‘कथादेश’ के मई 2004 के अंक में पढ़ने को मिली। कहानी में भारतीय समाज के जिस यथार्थ को उकेरा गया है वह कोई अपवाद नहीं वरन एक प्रतिनिधि यथार्थ है। भूमण्डलीकरण के मौजूदा दौर में आज देश के तमाम औद्योगिक महानगरों में करोड़ों मजदूर जिस बर्बर पूँजीवादी शोषण–उत्पीड़न के शिकार हैं, यह कहानी उसकी एक प्रातिनिधिक तस्वीर पेश करती है। इसे एक विडम्बना के सिवा क्या कहा जाये कि तमाम दावेदारियों के बावजूद हिन्दी की प्रगतिशील कहानी के मानचित्र में भारतीय समाज का यह यथार्थ लगभग अनुपस्थित है, जबकि हिन्दी के कई कहानीकार औद्योगिक महानगरों में रहते हुए रचनारत हैं। हिन्दी की प्रगतिशील कहानी के मर्मज्ञ कहानी के इकहरेपन या सपाटबयानी के बारे में बड़ी विद्वतापूर्ण बातें बघार सकते हैं लेकिन इससे यह सवाल दब नहीं सकता कि आखिर हिन्दी कहानी इस प्रतिनिधि यथार्थ से अब तक क्यों नजरें चुराये हुए है? बहरहाल ‘बिगुल’ के पाठकों के लिये यह कहानी प्रस्तुत है। पाठक स्वयं कहानी में मौजूद यथार्थ के ताप को महसूस कर सकते हैं। – सम्पादक

बकलमे–खुद : कहानी – नये साल की छुट्टी / मानस कुमार

फैक्टरी की छत पर मालिक के भाषण का इंतजाम किया जा रहा था। लाइनों में कुर्सियां बिछाईं गईं। इन पर कम्पनी के स्टाफ को बैठना था। दूसरी तरफ टाट व दरी बिछाई गई, जिन पर मजदूरों को बैठना था। सामने गद्दे वाली कुर्सियां, मेज तथा मेज पर फूलों का गुलदस्ता रखा गया। पास में एक छोटी मेज पर दिया जलाने वाला स्टैण्ड रख दिया गया। उसके तीन तरफ कांच की दीवार खड़ी कर दी गयी ताकि जब दीयों को जलाया जाये तो हवा लग कर बुझ न जाये। गद्देवाली कुर्सियों पर उन रेंगते हुए, पिलपिले, तोंदियल, परजीवी कीड़ों (फैक्टरी मालिकों) को बैठना था।

लघु कथा – अक्‍लमंद, मूर्ख और गुलाम / लू शुन Short story – The Wise Man, The Fool and The Slave / Lu Xun

एक गुलाम हरदम लोगों की बाट जोहता रहता था, ताकि उन्‍हें अपना दुखड़ा सुना सके। वह बस ऐसा ही था और बस इतना ही कर सकता था। एक दिन उसे एक अक्‍लमंद आदमी मिल गया।

कहानी – गिरगिट / अन्‍तोन चेखव Story – A Chameleon / Anton Chekhov

पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव नया ओवरकोट पहने, हाथ में एक बण्डल थामे बाजार के चौक से गुज़र रहा है। लाल बालों वाला एक सिपाही हाथ में टोकरी लिये उसके पीछे-पीछे चल रहा है। टोकरी जब्त की गयी झड़बेरियों से ऊपर तक भरी हुई है। चारों ओर ख़ामोशी…चौक में एक भी आदमी नहीं…दुकानों व शराबखानों के भूखे जबड़ों की तरह खुले हुए दरवाज़े ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे हैं। यहाँ तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता है।

कहानी – बाज़ का गीत / मक्सिम गोर्की Story – The song of falcon / Maxim Gorky

‘साहस के उन्मादियों की हम गौरव-गाथा गाते हैं! गाते हैं उनके यश का गीत!’
‘साहस का उन्माद-यही है जीवन का मूलमन्त्र ओह, दिलेर बाज! दुश्मन से लड़कर तूने रक्त बहाया…लेकिन वह समय आयेगा जब तेरा यह रक्त जीवन के अन्धकार में चिनगारी बनकर चमकेगा और अनेक साहसी हृदयों को आज़ादी तथा प्रकाश के उन्माद से अनुप्राणित करेगा!’
‘बेशक तू मर गया!…लेकिन दिल के दिलेरों और बहादुरों के गीतों में तू सदा जीवित रहेगा, आज़ादी और प्रकाश के लिए संघर्ष की गर्वीली ललकार बनकर गूँजता रहेगा!’

कहानी : बदबू / शेखर जोशी

साहब ने तुम्हारी बदली कास्टिक टैंक पर कर दी है, बड़ा सख्त काम हैं, अब भी साहब को खुश कर सको तो बदली रुक सकती है। उत्तर में उसने कुछ नहीं कहा। उठकर कास्टिक टैंक पर चला गया। टैंक पर काम करने वाले मजदूरों ने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया। उसे ऐसा लगा कि जैसे वे लोग जान-बूझकर उससे पृथक रहने का प्रयत्न कर रहे हों। पुराने पेंट’ और जंग लगे हुए सामान को कास्टिक में धोया जा रहा। था। आगे बढ़कर उसने भी उन्हीं की तरह काम शुरु कर दिया।

कहानी – ‘हिम्मत न हारना, मेरे बच्चो!’ / मक्सिम गोर्की

आप तो जानते ही हैं कि अमीरों को सिर्फ़ तभी जेल भेजा जाता है जब वे बहुत ही ज्यादा बुराइयाँ करते हैं और उन पर पर्दा नहीं डाल पाते। लेकिन गरीब जब जरा-सी भी बेहतरी चाहते हैं तो उसी वक्त जेल में बन्द कर दिये जाते हैं। आपसे मैं सिर्फ़ यही कह सकता हूँ कि आप बहुत खुशकिस्मत बाप हैं!

कहानी – एक पतझड़ / मक्सिम गोर्की Story – One Autumn Night / Maxim Gorky

सांस्कृतिक विकास की इस मंज़िल पर शारीरिक भूख बुझाने के मुक़ाबले आध्यात्मिक भूख बुझाना अधिक आसान है। आप घरों से घिरी हुई सड़कों पर भटकते रहते हैं। घर, जो बाहर से सन्तोषजनक सीमा तक सुन्दर होते हैं और भीतर से – हालाँकि यह लगभग एक अनुमान ही है – सन्तोषजनक सीमा तक आरामदेह होते हैं; ये आपके भीतर वास्तुकला, स्वास्थ्य विज्ञान और बहुतेरे दूसरे उदात्त और बुद्धिमत्तापूर्ण विषयों पर सुखद विचार पैदा कर सकते हैं; सड़कों पर आप गर्म और आरामदेह कपड़े पहने लोगों से मिलते हैं – वे विनम्र होते हैं, अक्सर किनारे हटकर आपके लिए रास्ता छोड़ देते हैं और आपके वजूद के अफ़सोसनाक़ तथ्य पर ध्यान देने से कुशलतापूर्वक इन्कार कर देते हैं। निश्चय ही, एक भूखे आदमी की आत्मा एक भरे पेट वाले की आत्मा की अपेक्षा बेहतर ढंग से और अधिक स्वास्थ्यप्रद ढंग से पोषित होती है – यह एक ऐसा विरोधाभास है जिससे, निस्सन्देह, भरे पेट वालों के पक्ष में कुछ निहायत चालाकी भरे नतीजे निकाल लेना मुमकिन है!…

कहानी – पारमा के बच्चे / मक्सिम गोर्की Story – Childrens of Parma / Maxim Gorky

भीड़ ने भविष्य के इन लोगों का बेहद शोर मचाते हुए स्वागत किया, उनके सम्मुख झण्डे झुका दिये गये। बच्चों की आँखों को चौंधियाते और कानों को बहरे करते हुए बाजे खूब जोरों से बज उठे। ऐसे जोरदार स्वागत से तनिक स्तम्भित होकर घड़ी भर को वे पीछे हटे किन्तु तत्काल ही सँभल गये, मानो लम्बे हो गये, घुल-मिलकर एक शरीर बन गये और सैकड़ों कण्ठों से, किन्तु मानो एक ही छाती से निकलती आवाज में चिल्ला उठेः

“इटली ज़िन्दाबाद!”

“नव पारमा नगर ज़िन्दाबाद!” बच्चों की ओर दौड़ती हुई भीड़ ने ज़ोरदार नारा लगाया।