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कहानी – यंत्रणागृह / अर्न्स्ट टोलर

वह और चार घण्टे ज़िन्दा रहा। चार घण्टे में तो बहुत से सवाल किये जा सकते हैं। अगर तीन मिनट में एक पूछा जाये तो भी हुए अस्सी। अफ़सर अफ़सरी में कुशल था, अपना काम समझता था, इसके पहले वह बहुतों से सवाल कर चुका था। मरते हुए लोगों से भी। तुम्हें जानना चाहिए काम करने का ढंग, और बस। किसी से गला फाड़कर चिल्लाओ और किसी से धीमे, कान में बात करो, कुछ को सब्ज़बाग़ दिखाओ।

कहानी – देह भंग स्वप्न भंग / शकील सिद्दीक़ी

तुम चले गए थे बापू—हमें क्या पता था कि यह तुम्हारा जाना कभी न लौटकर आने में बदल जायेगा। वह दिन किशन की आँखों में भर आता है। फर्स्ट डिवीज़न पास होने की ख़ुशी से लबरेज़ जब वह घर लौटा था तो पाया था, सन्नाटा, उदासी और चीखों का अम्बार। बापू का फैक्ट्री में काम करते हुए एक्सीडेण्ट हो गया था। वह भागता हुआ अस्पताल गया था, वहाँ पायी थी उसने बापू की क्षत-विक्षप्त लाश। फ़ैक्ट्री का ब्यालर फट गया था। खौलते पानी और लोहे के टुकड़ों का एक साथ आक्रमण हुआ था उन पर।

कहानी – सुकून की तलाश में एक दिन / अन्वेषक

आख़िर सूरज डूब गया, तेज़ हवाओं ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया। अँधेरा हर तरफ़ फैल चुका था। पूरे पार्क में सन्नाटा पसर गया, कहीं कोई नहीं दिखाई दे रहा था। लाउडस्पीकर का शोर अभी ख़त्म नहीं हुआ, बस अभी उसकी आवाज़ धीमी थी। सब लौट गये फिर अपने ठिकानों में जहाँ अगले दिन उन्हें सुबह से रात तक, अपने हाड मांस को गलाना था ताकि अपना व परिवार का पेट का गड्ढा भर सके। यही पहिया घूम रहा है दिन, रात, महीनों, सालों से। इसी में एक दिन निकाल कर आते हैं सभी सुकून की तलाश करते हुए, पर अन्त में रह जाता है तो सिर्फ़ अँधेरा जो सब कुछ अपने अन्दर समा लेना चाहता है।

दो क़िस्से — कविता कृष्णपल्लवी

अगर कोई चोर-लम्पट-ठग-बटमार दाढ़ी बढ़ाकर संन्यासी जैसा भेस-बाना बनाकर लोगों की आँख में धूल झोंके तो लोगों को उसकी दाढ़ी में आग लगा देनी चाहिए और उसे इलाक़े से खदेड़ देना चाहिए।

कहानी : सरकार का समर्थक

सरकार का समर्थक • सिगफ़्रीड लेंज़ हिन्दी रूपान्तर : जितेन्द्र भाटिया उन लोगों ने ख़ास निमंत्रण देकर प्रेस वालों को बुलवाया था कि वे आकर ख़ुद अपनी आँखों से देखें,…

कहानी – मवाली / मोहन राकेश

काफ़ी देर पड़े रहने के बाद लड़का रेत से उठ खड़ा हुआ, और आँखों से ज़मीन को टटोलता घिसटते पैरों से चलने लगा। सहसा उसका पैर एक नारियल पर से उलटा हो गया। उसने नारियल को कसकर गाली दी और ज़ोर की एक ठोकर लगायी। नारियल लुढक़ता हुआ समुद्र की लहरों की तरफ़ चला गया। उसने पास जाकर उसे दूसरी ठोकर लगायी। नारियल सामने से आती लहर में खो गया। उस लहर के लौटते-लौटते उसे नारियल फिर दिखाई दे गया। एक और लहर उमड़ती आ रही थी। इसलिए पास न जाकर उसने वहीं से एक पत्थर नारियल को मारा, और साथ भरपूर गाली दी, “तेरी माँ को…”

कहानी – ला सियोतात का सिपाही / बर्टोल्ट ब्रेष्ट Story – The Soldier of La Ciotat / Bertolt Brecht

पहले विश्व युद्ध के बाद, दक्षिणी फ्रांस के छोटे-से बन्दरगाह वाले शहर ला सियोतात में एक जहाज़ को पानी में उतारे जाने के जश्न के दौरान, हमने चौक में एक फ्रांसीसी सिपाही की काँसे की प्रतिमा देखी जिसके इर्दगिर्द भीड़ जमा थी। हम नज़दीक गये तो देखा कि वह एक जीवित व्यक्ति था। वह धूसर रंग का ग्रेटकोट पहने था, सिर पर टिन का टोप था, और जून की गर्म धूप में वह संगीन ताने चबूतरे पर बिल्कुल स्थिर खड़ा था। उसकी एक भी पेशी हिलडुल नहीं रही थी, पलकें तक नहीं फड़क रही थीं।

कहानी – हड़ताल / मक्सिम गोर्की Story – Strike / Maxim Gorky

कुछ हाथापाई और झगड़ा हुआ, लेकिन अचानक धूल से लथपथ दर्शकों की सारी भीड़ हिली-डुली, चीखी-चिल्लायी और ट्राम की पटरियों की ओर भाग चली। पनामा टोपी पहने हुए व्यक्ति ने टोपी सिर से उतारी, उसे हवा में उछाला, हड़ताली का कंधा थपथपाकर तथा ऊँची आवाज़ में उसे प्रोत्साहन के कुछ शब्द कहकर सबसे पहले उसके निकट लेट गया।

सच और साहस – दो दाग़िस्तानी क़िस्से / रसूल हमज़ातोव

शिखरों पर हज़ारों बरसों का जीवन है। वहाँ नायकों, वीरों, कवियों, बुद्धिमानों और सन्त-साधुओं के अमर और न्यायपूर्ण कृत्य, उनके विचार, गीत और अनुदेश जीवित रहते हैं। चोटियों पर वह रहता है जो अमर है और पृथ्वी की तुच्छ चिन्ताओं से मुक्त है।

मुक्तिबोध की कहानी :समझौता

मेरे पास पिस्तौल है। और, मान लीजिए, मैं उस व्यक्ति का – जो मेरा अफ़सर है, मित्र है, बन्धु है – अब ख़ून कर डालता हूँ। लेकिन पिस्तौल अच्छी है, गोली भी अच्छी है, पर काम – काम बुरा है। उस बेचारे का क्या गुनाह है? वह तो मशीन का एक पुर्ज़ा है। इस मशीन में ग़लत जगह हाथ आते ही वह कट जायेगा, आदमी उसमें फँसकर कुचल जायेगा, जैसे बैगन। सबसे अच्छा है कि एकाएक आसमान में हवाई जहाज़ मँडराये, बमबारी हो और वह कमरा ढह पड़े, जिसमें मैं और वह दोनों ख़त्म हो जायें। अलबत्ता, भूकम्प भी यह काम कर सकता है।