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भण्डारा में 10 नवजात शिशुओं की मौत की ज़िम्मेदार पूँजीवादी व्यवस्था है

भण्डारा में 10 नवजात शिशुओं की मौत की घटना हर संवेदनशील व्यक्ति को अन्दर तक झकझोर कर रख सकती है। किसी भी व्यक्ति के अन्दर उन माओं की चीख़ों- चीत्कारों को सुनकर ज़रूर छटपटाहट पैदा होगी। अगर ऐसा नहीं है, तो शायद आप भी इस मुनाफ़ा केन्द्रित व्यवस्था के अन्दर गिद्ध व नरभक्षी जमात में शामिल हो चुके हैं। भण्डारा ज़िला अस्पताल के SNCU (Sick Neonatal Care Unit) में आग लगने की वजह से 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गयी।

भूख और कुपोषण के साये में जीता हिन्दुस्तान

हर गुजरते दिन के साथ मानवद्रोही पूँजीवादी व्यवस्था बेनकाब होती जा रही है। भूख-कुपोषण, मँहगाई, बेरोज़गारी आदि से परेशानहाल जनता को ‘अच्छे दिन आएंगे’ का सपना बेचकर सत्ता में पहुंची फ़ासीवादी मोदी सरकार की हर नीति आम जनता पर कहर बनकर टूट रही है। कोरोना महामारी में मोदी सरकार का कुप्रबंधन हज़ारों मेहनतकशों की ज़िन्दगी पर भारी पड़ा और समय गुजरने के साथ हर नया आंकड़ा मेहनतकशों के बर्बादी का हाल बयान कर रहा है।

कश्मीर में जारी दमन, फ़र्ज़ी मुक़दमे और भारतीय राजसत्ता द्वारा जनता पर कसता शिकंजा!

कश्मीर काग़ज़ पर बना कोई नक़्शा नहीं है, कश्मीर वहाँ की जनता से बनता है। मज़दूरों व मेहनतकशों की लड़ाई न्याय और समानता के लिए है। सिर्फ़ अपने लिए न्याय और समानता नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए न्याय और समानता। हम मज़दूर मेहनतकश साथियों को कभी भी किसी भी सामाजिक हिस्से या राष्ट्रीयता या जाति के शोषण, दमन और उत्पीड़न का समर्थन नहीं करना चाहिए। पूँजीपति वर्ग का राष्ट्रवाद मण्डी में पैदा होता है और इसी राष्ट्रवाद की लहर को सांस्कृतिक तौर पर फैलाकर पूँजीपति वर्ग अपने दमन और शोषण को जायज़ ठहराने का आधार तैयार करता है। वह अन्य राष्ट्रों के दमन और उत्पीड़न के लिए मज़दूर वर्ग में भी सहमति पैदा करने का प्रयास करता है। हमें पूँजीपति वर्ग, मालिकों व ठेकेदारों की इस साज़िश के प्रति सावधान रहना चाहिए। हमें हर क़ीमत पर हर प्रकार के शोषण, दमन और उत्पीड़न का विरोध करना चाहिए, अन्यथा हम अनजाने ही ख़ुद अपने दमन और शोषण को सही ठहराने की ज़मीन पैदा करेंगे।

मराठा आरक्षण के मायने

पिछले दो-तीन सालों में गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं आन्ध्र प्रदेश में भी इस तरह के आन्दोलन हुए। जिसमें उभरती मँझोली किसान जातियों ने आरक्षण की माँग उठायी है। जिसके तहत गुजरात में पाटीदार, हरि‍याणा में जाट, आन्ध्र प्रदेश में कापू शामिल हैं। महाराष्ट्र में ऐतिहासिक तौर पर मराठा, कुनबी और माली जाति कृषि पृष्ठभूमि से तालुक़ात रखती हैं। जहाँ 20वीं सदी में कुनबी और मराठा जाति अपने आपको क्षत्रिय के तौर पर स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। आज बदली हुई आर्थिक परिस्थितियों में अपने सामाजिक स्थिति में बदलाव के तौर पर अपने आपको पिछड़े वर्ग के तौर पर शामिल करने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

बेरोज़गारी की भयावह होती स्थिति

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ 2014 से लेकर 2016 के बीच दो सालों में देश के 26 हज़ार 500 युवाओं ने आत्महत्या की। 20 साल से लेकर 30-35 साल के युवा डिप्रेशन के शिकार हो जा रहे हैं, व्यवस्था नौजवानों को नहीं जीने नहीं दे रही है। बड़े होकर बड़ा आदमी बनाने का सामाजिक दबाव, माँ-बाप, नाते-रिश्तेदार सभी लोग एक ही सुर में गा रहे हैं। जिस उम्र में नौजवानों को देश-दुनिया की परिस्थितियों, ज्ञान-विज्ञान और प्रकृति से परिचित होना चाहिए, बहसों में भाग लेना चाहिए, उस समय नौजवान तमाम शैक्षिक शहरों में अपनी पूरी नौजवानी एक रोज़गार पाने की तैयारी में निकाल दे रहे हैं और फिर भी रोज़गार मिल ही जायेगा, इसकी कोई गारण्टी नहीं हैं। ऐसे में छात्र-नौजवान असुरक्षा और सामाजिक दबाव को नहीं झेल पा रहे हैं। एडमिशन न मिलने, किसी परीक्षा में सफल न होने पर आये दिन छात्र-नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसी घटनाओं की बाढ़-सी आ गयी है।

वाराणसी में फ्लाईओवर गिरने से कम से कम 20 लोगों की मौत

वस्तुतः इन घटनाओं की आम वजह सरकार, अफ़सरों और ठेकेदार की लूट की हवस है। तमाम सूत्रों से पता चला कि सेतु निगम ने इस पुल का काम मन्त्रियों के क़रीबियों को बाँटा जिस पर 14% कमीशन लिया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सेतु निगम (यही संस्था इस पुल का निर्माण कर रही है) के प्रबन्ध निदेशक राजन मित्तल का इस हादसे के बाद बयान आया कि पुल आँधी की वजह से गिरा। यह वही व्यक्ति है जिस पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, और इसके खि़लाफ़ जाँच के आदेश भी हुए हैं। लेकिन भाजपा सरकार ने न सिर्फ़ इस आदमी को सेतु निगम का अध्यक्ष बनाया, बल्कि इसे उत्तर प्रदेश निर्माण निगम का अतिरिक्त भार भी सौंप दिया। इतना ही नहीं, हादसे के बाद गिरे हुए कंक्रीट के बीम को उठाने के लिए सेतु निगम ने कम्प्रेशर क्रेन तक उपलब्ध नहीं करवायी, जिस वजह से बचाव का काम बहुत देर से शुरू हो पाया और इसी वजह से कई जानें जो बच सकती थी, वे नहीं बचायी जा सकीं।

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने किया विधायक का घेराव

वज़ीरपुर में लगभग एक महीने से पानी की किल्लत झेल रहे वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने 30 सितम्बर की सुबह वज़ीरपुर के विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। वज़ीरपुर के अम्बेडकर भवन के आस पास की झुग्गियों में खुदाई के चलते 12 दिनों से पानी नहीं पहुँच रहा है, इस समस्या को लेकर मज़दूर पहले भी विधायक के दफ्तर गए थे जहाँ उन्हें 2 दिन के भीतर हालात बेहतर करने का वादा करते हुए लौटा दिया गया था मगर इसके बावजूद आम आदमी पार्टी की सरकार के विधायक ने कुछ नहीं किया । 30 सितम्बर की सुबह दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में झुग्गीवासीयों और मज़दूरों ने इकट्ठा होकर राजेश गुप्ता का घेराव किया। चुनाव से पहले 700 लीटर पानी का वादा करने वाली इस सरकार के नुमाइंदे से जब यह पूछा गया कि पिछले 12 दिनों से कनेक्शन कट जाने के बाद पानी की सुविधा के लिए पानी के टैंकर क्यों नहीं मंगवाये गए तो उसपर विधायक जी ने मौन धारण कर लिया।