अरब धरती पर चक्रवाती जनउद्रेक का नया दौर और साम्राज्यवादी सैन्य-हस्तक्षेप
वर्तमान जनविद्रोहों की लहर यदि पीछे धकेल दी जाती है तो हो सकता है कि कुछ समय के लिए अरब जगत में अस्थिरता-अराजकता-गृहयुद्ध जैसा माहौल बन जाये। इस्लामी कट्टरपन्थी ताक़तों का प्रभाव-विस्तार भी हो सकता है। तेल सम्पदा पर इज़ारेदारी के लिए साम्राज्यवादी होड़ (जो आज सतह के नीचे है) कुछ नये समीकरणों को जन्म दे सकती है। फिलिस्तीन के अतिरिक्त लेबनान और सीरिया को भी कुटिल इज़रायली षड्यन्त्रों का शिकार होना पड़ सकता है। बचे हुए साम्राज्यवादी पिट्ठू और अधिक दमनकारी रुख़ अपना सकते हैं। लेकिन ये सभी नतीजे और प्रभाव अल्पकालिक ही होंगे। अरब जगत अब वैसा नहीं रह जायेगा, जैसा वह था। यदि सन्नाटा या उलटाव के दौर आयेंगे भी, तो लम्बे नहीं होंगे। अपेक्षाकृत अधिक छोटे अन्तरालों पर जनज्वार उमड़ते रहेंगे। उनकी आवर्तिता बढ़ती जायेगी और उग्रता भी। वर्तमान जन-विद्रोहों में मज़दूर वर्ग की सक्रियता उल्लेखनीय रही है। आगे, उभार के हर नये चक्र में, मज़दूर वर्ग, वर्ग संघर्ष की पाठशाला से शिक्षा लेगा और अपनी ऐतिहासिक विरासत को याद करेगा। अरब धरती पर वामपन्थ का पुराना इतिहास रहा है।