हमारे आन्दोलन को संविधान-रक्षा के नारे और स्वत:स्फूर्ततावाद से आगे, बहुत आगे, जाने की ज़रूरत क्यों है?
1970 के दशक के बाद के प्रचण्ड जनान्दोलन के बाद नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ देश भर में खड़ा हुआ आन्दोलन सम्भवत: सबसे बड़ा आन्दोलन है। अगर अभी इस पहलू को छोड़ दें कि इन दोनों ही आन्दोलनों में क्रान्तिकारी नेतृत्व की समस्या का समाधान नहीं हो सका था, तो भी यह स्पष्ट है कि क्रान्तिकारी राजनीतिक नेतृत्व के उभरने की सूरत में इन आन्दोलन में ज़बर्दस्त क्रान्तिकारी जनवादी और प्रगतिशील सम्भावनासम्पन्नता होगी। 1970 के दशक के आन्दोलन में एक सशक्त क्रान्तिकारी धारा के मौजूद होने के बावजूद, क्रान्तिकारी शक्तियां ग़लत कार्यक्रम, रणनीति और आम रणकौशल के कारण आन्दोलन के नेतृत्व को अपने हाथों में नहीं ले सकीं थीं और नेतृत्व और पहलकदमी जयप्रकाश नारायण के हाथों में चली गयी, जिसने इस जनउभार में अभिव्यक्त हो रहे क्रान्तिकारी गुस्से और जनअसन्तोष को मौजूदा व्यवस्था के दायरे के भीतर ही सीमित कर दिया, हालांकि काफी आमूलगामी जुमलों का शोर पैदा करते हुए। यानी वही काम जो प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व करता है।