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क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-1 : मज़दूरी के बारे में

हम मज़दूर जानते हैं कि मज़दूरी की औसत दर में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लेकिन ये उतार-चढ़ाव एक निश्चित सीमा के भीतर होते हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर मज़दूरी में आने वाले उतारों-चढ़ावों के मूलभूत कारण क्या होते हैं और उसकी अन्तिम सीमाएँ कैसे निर्धारित होती है। लेकिन शुरुआत हम कुछ बुनियादी बातों से करेंगे।

देखरेख करने वाले काम (केयर वर्क) का राजनीतिक अर्थशास्त्र

एक ऐसे ऐतिहासिक संघर्ष के समय, जिसमें कि तीन ज़बर्दस्त रैलियाँ निकाली गयीं, हड़ताल स्थल पर आर्ट गैलरियाँ बनायी गयीं, बच्चों के शिशुघर चलाये गये और आँगनवाड़ीकर्मी औरतों की नाटक टोलियाँ बनायी गयीं और आम आदमी पार्टी का पूरे शहर में बहिष्कार किया गया, इस बात पर चर्चा करना बेहद मौजूँ होगा कि आँगनवाड़ीकर्मियों के श्रम का पूँजीपति वर्ग के लिए क्या महत्व है, वह उन्हें कैसे लूटता है, उनका किस प्रकार फ़ायदा उठाता है।

धनी किसान-कुलक आन्दोलन के नवीनतम दौर में कुछ ज़रूरी सवाल जिन्हें इस आन्दोलन के नेतृत्व से पूछा जाना चाहिए

जब हमने धनी किसान-कुलक आन्दोलन के शुरू होते ही कहा था कि इस आन्दोलन का मूल और मुख्य लक्ष्य लाभकारी मूल्य (एमएसपी) को बचाना और बढ़ाना है, तो इस आन्दोलन के पीछे घिसट रहे कई कॉमरेडों ने कहा था कि इस आन्दोलन का लक्ष्य केवल लाभकारी मूल्य बचाना नहीं है, बल्कि यह फ़ासीवाद-विरोधी आन्दोलन है, यह खेतिहर मज़दूरों को भी फ़ायदा पहुँचाएगा और यह ग़रीब किसानों को भी फ़ायदा पहुँचाएगा, वग़ैरह। लेकिन अब जबकि मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश व पंजाब चुनावों के मद्देनज़र तीन खेती क़ानूनों को वापस ले लिया है, तो मौजूदा धनी किसान-कुलक आन्दोलन के नेतृत्व ने स्वयं ही अपने चरित्र को साफ़ कर दिया है।

पूँजीवादी किसान, पूँजीवादी ज़मींदार, आढ़तिये, व्यापारी और बिचौलिये किस तरह गाँव के ग़रीबों को लूटते हैं?

हमारे देश में क़रीब 25 करोड़ लोग खेती में लगे हैं। इसमें से क़रीब 14.5 करोड़ खेतिहर मज़दूर हैं और 10.5 करोड़ किसान हैं। लेकिन किसान कोई एक वर्ग नहीं होता है। धनी किसान होते हैं, उच्च मध्यम किसान, मध्य मध्यम किसान, निम्न मध्यम किसान होते हैं और ग़रीब व सीमान्त किसान होते हैं।

कौन हैं देविन्दर शर्मा और उनका “अर्थशास्त्र” और राजनीति किन वर्गों की सेवा करती है?

कोई भी संजीदा कम्युनिस्ट मौजूदा धनी किसान आन्दोलन की माँगों (मूलत: लाभकारी मूल्य की माँग) का समर्थन नहीं कर सकता है, क्योंकि पिछले कई दशकों के दौरान मार्क्सवादी और ग़ैर-मार्क्सवादी अध्येता यह दिखला चुके हैं कि लाभकारी मूल्य की पूरी व्यवस्था ग़रीब-विरोधी है और शुद्धत: धनी किसानों को राजकीय हस्तक्षेप द्वारा व्यापक मेहनतकश ग़रीब जनता की क़ीमत पर दिया जाने वाला बेशी मुनाफ़ा व लगान है।

क्या सारे किसानों के हित और माँगें एक हैं?

जब तक सामन्तवाद था और सामन्ती भूस्वामी वर्ग था, तब तक धनी किसान, उच्च मध्यम किसान, निम्न मध्यम किसान, ग़रीब किसान व खेतिहर मज़दूर का एक साझा दुश्मन था। आज निम्न मँझोले किसानों, ग़रीब किसानों व खेतिहर मज़दूरों के वर्ग का प्रमुख शोषक और उत्पीड़क कौन है? वे हैं गाँव के पूँजीवादी भूस्वामी, पूँजीवादी फ़ार्मर, सूदखोर और आढ़तियों-बिचौलियों का पूरा वर्ग। इस शोषक वर्ग की माँगें और हित बिल्कुल अलग हैं और गाँव के ग़रीबों की माँगें और हित बिल्कुल भिन्न हैं।

मौजूदा किसान आन्दोलन और लाभकारी मूल्य का सवाल

किसान आन्दोलन को चलते हुए अब क़रीब डेढ़ महीना बीत चुका है। हज़ारों किसान दिल्ली के बॉर्डरों पर इकट्ठा हैं। हम मज़दूरों और मेहनतकशों को जानना चाहिए कि इस आन्दोलन की माँगें क्या हैं। केवल तभी हम यह तय कर सकते हैं कि हमारा इसके प्रति क्या रवैया हो। हम मज़दूरों और मेहनतकशों के लिए सरकार के उन तीन कृषि क़ानूनों का क्या अर्थ है, जिनके ख़िलाफ़ यह आन्दोलन जारी है? हमारे लिए यह समझना भी ज़रूरी है, क्योंकि तभी हम इन तीन क़ानूनों को अलग-अलग समझ सकते हैं और आन्दोलन के प्रति अपना रुख़ तय कर सकते हैं।

भारत के नव-नरोदवादी “कम्युनिस्टों” और क़ौमवादी “मार्क्सवादियों” को फ़्रेडरिक एंगेल्स आज क्या बता सकते हैं?

28 नवम्बर 1820 को सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक और कार्ल मार्क्स के अनन्य मित्र फ़्रेडरिक एंगेल्स का जन्म हुआ था। द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद और वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धान्तों का कार्ल मार्क्स के साथ विकास करने वाले हमारे इस महान नेता ने पहले कार्ल मार्क्स के साथ और 1883 में मार्क्स की मृत्यु के बाद 1895 तक विश्व सर्वहारा आन्दोलन को नेतृत्व दिया। मार्क्सवाद के सार्वभौमिक सिद्धान्तों को स्थापित करने के अलावा इन सिद्धान्तों की रोशनी में उन्होंने इतिहास, विचारधारा, एंथ्रोपॉलजी और प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे शोध-कार्य किये, जिन्‍हें पढ़ना आज भी इस क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य है।

कृषि अध्‍यादेशों का विरोध मज़दूर वर्ग और ग़रीब किसान वर्ग किस ज़मीन से करेगा?

हमारे देश में क्रान्तिकारी कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन आज एक संकट का शिकार है। देश में फ़ासीवादी उभार और दुनिया भर में किसी समाजवादी शिविर की ग़ैर-मौजूदगी के कारण आज के दौर में उन क्रान्तिकारियों के पास उत्‍साह के स्रोतों का अभाव है, जो विज्ञान की समझ और उस पर भरोसे से अपने आशावाद को ग्रहण करते, बल्कि ठोस मिसालों, घटनाओं या नेताओं की मौजूदगी से अपने आशावाद को पालते-पोसते हैं। आज की दुनिया में उनके पास ऐसी कोई ठोस मिसाल नहीं है। नतीजतन, वे अपने आशावाद के लिए हर प्रकार के अवांछनीय स्रोतों पर जाते हैं। कुछ मिसालों से समझिए।

कृषि-सम्‍बन्‍धी तीन अध्‍यादेश, मौजूदा किसान आन्‍दोलन और मज़दूर वर्ग

मौजूदा लेख में हम विस्‍तार से चर्चा करेंगे कि इन कृषि-सम्‍बन्‍धी अध्‍यादेशों से किन्‍हें लाभ होगा, किन्‍हें नुक़सान होगा, मौजूदा किसान आन्‍दोलन का वर्ग चरित्र क्‍या है, और क्‍या मज़दूर वर्ग इन अध्‍यादेशों के मज़दूर व ग़रीब-विरोधी प्रावधानों का विरोध गाँव के पूँजीपति वर्ग, यानी धनी किसानों व कुलकों के मंच से कर सकता है?