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नौसेना विद्रोह – देश के मेहनतकशों की ऐतिहासिक विरासत

नौसेना विद्रोह का संघर्ष हमें दिखाता है कि किस तरह वास्तविक संघर्ष संगठित होने पर अंग्रेज़ों के साथ-साथ देसी हुक़्मरानों की भी नींद उड़ गयी थी। काँग्रेस के नेतृत्व में लड़ी गयी आज़ादी की लड़ाई में काँग्रेस ने कभी भी जनता की पहलक़दमी को निर्बंध होने नहीं दिया और उसको इसी व्यवस्था के भीतर सीमित करती रही तथा ‘समझौता-दबाव-समझौता’ की नीति के तहत राजनीतिक आज़ादी की लड़ाई को लड़ती रही। यदि जनता अपनी पहलक़दमी पर कोई आन्दोलन करती तो काँग्रेस उसके साथ वहीं रुख़ अपनाती थी जो उसने नौसेना विद्रोह के साथ अपनाया।

अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण में उप वर्गीकरण – मेहनतकशों को आपस में बाँटने का एक नया हथकण्डा !!

सच्चाई यह है कि जब नवउदारवादी दौर में सरकारी नौकरियाँ ही नहीं हैं, तो किसी जाति को औपचारिक तौर पर कितना आरक्षण दिया जाता है, दलितों के आरक्षण के बीच में कितना और कैसा उपवर्गीकरण कर दिया जाता है, उससे इस समूचे वर्ग की नियति पर, उनके हालात पर कोई गुणात्मक फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। जब नौकरियों की पैदा होने की दर ही शून्य के निकट है और अगर उसे काम करने योग्य आबादी में होने वाली बढ़ोत्तरी के सापेक्ष रखें, तो नकारात्मक में है, तो फिर इन श्रेणीकरणों और वर्गीकरणों को आरक्षण की लागू नीति में घुसा देने से किसे क्या हासिल हो जायेगा? पूँजीवादी व्यवस्था में नगण्य होते अवसरों के लिए दलित मेहनतकश व आम मध्यवर्गीय जनता में ही आपस में सिर-फुटौव्वल होगा, दलित जातियों के बीच ही आपस में विभाजन की रेखाएँ खिंच जायेंगी और इसका पूरा फ़ायदा देश के हुक़्मरान उठायेंगे।

कांग्रेस का मज़दूर-विरोधी चेहरा फ़िर हुआ बेनकाब, कर्नाटक में काम के घण्टे बेतरह बढ़ाने की तैयारी में सरकार!

काम के घण्टे बढ़ने से कम्पनियों में तीन शिफ्ट की जगह दो शिफ्ट में ही काम होगा जिससे कि अभी काम कर रहे कुल मज़दूरों के एक-तिहाई हिस्से को बाहर कर दिया जाएगा। बेरोज़गारों की ‘रिजर्व आर्मी’ में बढ़ोतरी होगी जिसका दूरगामी फ़ायदा भी इन्हीं कम्पनियों को होगा। इसके साथ ही कम्पनियाँ आईटी सेक्टर के मज़दूरों को बिना ओवर टाइम रेट दिए उनसे अतिरिक्त काम करवा सकती है। करीब 140 साल पहले दुनिया के लाखों मज़दूरों के संघर्ष व कुर्बानी के बाद 8 घण्टे काम का हक़ हासिल हुआ था। यह बुनियादी हक़ भी आज मज़दूर वर्ग से छीना जा रहा है।

मोदी सरकार की तीसरी पारी की शुरुआत के साथ ही साम्प्रदायिक भीड़ द्वारा हत्या (मॉब–लिंचिंग) की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी

मॉब-लिंचिंग की घटनाओं में आमतौर पर गरीब व निम्न मध्यवर्गीय मुसलमान को निशाना बनाया जाता है और एक बड़ी मुसलमान आबादी के बीच डर का माहौल पैदा किया जाता है। मॉब-लिंचिंग की इन घटनाओं पर सोचते समय यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि यह फ़ासीवादी राजनीति का ही एक हिस्सा है। शुरू में फ़ासीवादी राजनीति के तहत अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है, उन्हें एक नकली दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है, फ़ासीवादी नेतृत्व को बहुसंख्यक समुदाय के अकेले प्रवक्ता और हृदय-सम्राट के रूप में पेश किया जाता है और बाद में हर उस शख़्स को जो फ़ासीवादी सरकार की आलोचना करता है, उसे इस नकली दुश्मन की छवि में समेट लिया जाता है। नतीजतन, केवल किसी अल्पसंख्यक समुदाय को ही काल्पनिक दुश्मन के रूप में नहीं पेश किया जाता बल्कि नागरिक-जनवादी अधिकारों के लिए लड़ने वालों, मज़दूरों व उनकी ट्रेड यूनियनों, और फिर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को बहुसंख्यक समुदाय के दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, वह तमाम लोग जो समाज में वैज्ञानिकता, तार्किकता एवं अन्धविश्वास उन्मूलन का काम करते हैं, उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया जाता है।

बेटी बचाओ… भाजपाइयों और संघियों से

इन दोनों घटनाओं में भाजपा और संघ की संलिप्तता कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कई सारे बलात्कार के मामलों में “संस्कारी और राष्ट्रवादी” भाजपाइयों का नाम आ चुका है। कठुआ, उन्नाव से लेकर कई और ऐसे बलात्कार के मामले सामने आए जिनमें भाजपा विधायक से लेकर के संघ के लोगों तक को सीधे दोषी के रूप में पाया गया। इसके अलावा आसाराम बापू, राम  रहीम और चिन्मयानन्द जैसे लोगों के साथ भी भाजपाइयों और संघियों का मेलजोल पूरी दुनिया के सामने है। ये सारे ऐसे नाम है जो कि स्वयं बलात्कार के मामले में आरोपी है। अब इन्हीं में से कइयों को भाजपा सरकार सारे नियम-क़ायदे और कानून ताक पर रख कर रिहा कर रही है या पैरोल पर बाहर कर रही है। गुजरात में बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में सज़ा काट रहे बलात्कारियों को न केवल भाजपा सरकार ने रिहा कराया बल्कि हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा उनका जगह-जगह स्वागत भी किया गया।

दिल्ली के मेहनतकशों को बेघर करके जारी है जी-20 के जश्न की तैयारी

जी-20 के लिए देश की राजधानी को चमकाया जा रहा है। इसका सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है लेकिन उसकी क़ीमत दिल्ली के ग़रीब मेहनतकश अवाम को चुकानी पड़ रही है। दिल्ली के ग़रीब मेहनतकश अवाम को उनके रहने की जगहों से उजाड़ा जा रहा है। पिछले 3 महीनों में 16,000 घर तोड़े गये है जिसमें क़रीब 2,60,000 लोगों को बेघर होना पड़ा है। जी-20 में आए हुए प्रतिनिधि, यानी अन्य देशों के लुटेरे और हुक्मरान जो इन देशों में हमारे मेहनतकश भाइयों-बहनों को लूटते हैं, राजघाट पर गाँधी के समाधि स्थल को देखने जा सकते हैं! इस कारण राजघाट के आसपास के इलाक़ों से मेहनतकशों के घरों को तोड़ दिया गया है। इसके साथ ही महरौली में भी ये प्रतिनिधि ऐतिहासिक भ्रमण के लिए जा सकते हैं इस कारण यहाँ पर दशकों से बसे घरों को तोड़ दिया गया। तुगलकाबाद में भी घरों को तोड़ा गया।