दिल्ली विधानसभा के चुनावी मौसम में चुनावबाज़ पूँजीवादी पार्टियों को याद आया कि ‘मज़दूर भी इन्सान हैं!’
मेहनतकशों-मज़दूरों के इस भयंकर शोषण के ख़िलाफ़ क्या ये चुनावबाज़ पार्टियाँ असल में कोई क़दम उठायेंगी? नहीं। क्यों? क्योंकि ये सभी पार्टियाँ दिल्ली के कारखाना-मालिकों, ठेकेदारों, बड़े दुकानदारों और बिचौलियों के चन्दों पर ही चलती हैं। अगर करावलनगर, बवाना, वज़ीरपुर, समयपुर बादली औद्योगिक क्षेत्र से लेकर खारी बावली, चाँदनी चौक या गाँधी नगर जैसी मार्किट में 12-14 घण्टे काम करने वाले मज़दूरों का भंयकर शोषण वही मालिक या व्यापारी कर रहे हैं जो ‘आप’ ‘भाजपा’ या ‘कांग्रेस’ के व्यापार प्रकोष्ठ और उद्योग प्रकोष्ठ में भी शामिल हैं और इन्हीं के चन्दों से चुनावबाज पार्टियाँ अपना प्रचार-प्रसार करती है। साफ़ है कि ये पार्टियों अपने सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी के खिलाफ़ मज़दूर हितों के लिए कोई संघर्ष चलाना दूर इस मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोलने वालीं।