Category Archives: स्‍त्री मज़दूर

आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा : प्रधानमन्त्री का एक और वायदा निकला जुमला!

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 11 सितम्बर 2018 को आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा की गयी थी। ‘आँगनवाड़ी’ और ‘आशा’ महिलाकर्मियों को मानदेय बढ़ोत्तरी का यह वायदा दिवाली के तोहफ़े के तौर पर किया गया था किन्तु अभी तक भी इस मानदेय बढ़ोत्तरी की एक फूटी कौड़ी भी किसी के खाते में नहीं आयी है! दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन को जिस बात की पहले ही आशंका थी, वही हुआ। यूनियन के द्वारा अपनी पिछली प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की आशंका भी जतायी गयी थी। प्रधानमन्त्री द्वारा किये गये वायदे के अनुसार अक्टूबर माह से कार्यकर्त्ताओं के वेतन में 1,500 रुपये और सहायिकाओं के वेतन में 750 रुपये की वृद्धि होनी थी लेकिन अक्टूबर के महीने से बढ़ी हुई यह राशि अब तक किसी महिलाकर्मी को प्राप्त नहीं हुई है।

आपस की बात : हमें एकजुटता बनानी होगी

मैं पिछले वर्ष से जब से हमारी हड़ताल हुई थी तब से मज़दूर बिगुल अख़बार पढ़ रही हूँ। इसी अख़बार ने हमारी हड़ताल की रिपोर्टों को भी काफ़ी जगह दी थी। इसके लिए मैं अपनी आँगनवाड़ी की सभी बहनों और साथियों की तरफ़ से आपका धन्यवाद करती हूँ। हम सभी यह जानते हैं कि मज़दूर वर्ग बहुत सारी मुश्किलों का सामना करता है। दिन पर दिन हमारी दिक़्क़तें बढ़ती ही जाती हैं। आँगनवाड़ी में काम करते हुए हमें भी बहुत तरह की परेशानियों को झेलना पड़ता है। जैसे खाने की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों की वजह से खाने में कीड़े तो छोड़िए छिपकली तक निकल जाती है लेकिन जब इस तरह के खाने की वजह से बच्चों की तबीयत खराब होती है तो उसका दण्ड हमें भुगतना पड़ता है।

महिला एवं बाल विकास विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार का आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने दिल्ली में किया पर्दाफ़ाश!

केन्द्र सरकार ने हाल में ही यह घोषणा की है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मानदेय में क्रमशः 1500 व 750 रुपये की बढ़ोत्तरी की जायेगी! वैसे तो इस देश में शिवाजी की मूर्ति पर 3600 करोड़ व पटेल की मूर्ति पर 3000 करोड़ ख़र्च कर दिये जा रहे हैं, जिसका सीधा मक़सद जातीय वोट बैंक को भुनाना है, उलजुलूल के कामों में अरबों रूपये पानी की तरह बहाये जाते हैं, किन्तु आँगनवाड़ियों में ज़मीनी स्तर पर मेहनत करने वाली कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को पक्का रोज़गार देने की बजाय या तब तक न्यूनतम वेतन के समान मेहनताना देने की बजाय भुलावे में रखने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार 28 लाख महिलाकर्मियों के वोटों का आने वाले चुनाव के लिए 1500 और 750 रुपये में मोल-भाव कर रही है!?

हरियाणा में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का आन्दोलन : सीटू और अन्य संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की इसमें भागीदारी या फिर इस आन्दोलन से गद्दारी?!

12 फ़रवरी से हड़ताल पर बैठी हरियाणा की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की माँग थी कि उनका मानदेय बढ़ाया जाये और उन्हें कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाये। समेकित बाल विकास विभाग और आँगनवाड़ी की देशभर में खस्ता हालत से शायद ही कोई अनजान होगा। हरियाणा की आँगनवाड़ी भी अव्यवस्था से अछूती नहीं है। आँगनवाड़ियों में खाने की गुणवत्ता का निम्न स्तर, राशन की आपूर्ति में देरी के साथ-साथ तमाम समस्याएँ सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करती हैं। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों पर काम का दबाव निश्चय ही योजना को प्रभावित करता है।

केजरीवाल सरकार के मज़दूर और ग़रीब विरोधी रवैये के ख़िलाफ़ आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने उठायी आवाज़!

 इस योजना में सबसे निचले पायदान पर कार्यरत कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को बलि का बकरा बनाकर केजरीवाल सरकार इस स्कीम में अपने द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालते हुए महिलाकर्मियों के कन्धों पर रख कर बन्दूक चला रही है। ये कोई छिपी हुई बात नहीं है कि इस योजना में लगे एनजीओ का, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, आम आदमी पार्टी से सम्बन्ध है। खुद को आम आदमी का हिमायती कहने वाले केजरीवाल ने यह साबित कर दिया है कि उसकी सरकार के  ख़िलाफ़ अगर आवाज़ उठाई जायेगी तो उस आवाज़ को दबाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाओं की शानदार जीत!

सरकार ने हड़ताल को कमजोर करने के लिए सुपरवाइज़र और सीडीपीओ पर दबाव डालकर महिलाओं को डरा-धमकाकर आँगनवाड़ी खुलवाने की कोशिशें कीं। कुछेक महिलाओं ने इनके डर से आँगनवाड़ी खोली भी। इससे निपटने के लिए यूनियन ने भी अपनी कार्रवाई की। महिलाओं की पिकेटिंग टीम बनायी गयी और जगह-जगह सेण्टरों पर जाकर डरी हुई अपनी बहनों को हौसला दिया गया और समझाया गया कि सुपरवाइ़जर और सीडीपीओ की गीदड़ भभकियों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, वे आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं, आपके साथ आपकी यूनियन है। इस पिकेटिंग का ज़बरदस्त असर हुआ और जो भी महिलाएँ डर रही थी, उनमें साहस और हिम्मत आयी और वे भी हड़ताल में शामिल हो गयीं।

दिल्ली आँगनवाड़ी महिलाओं का लम्बा और जुझारू संघर्ष!

अरविन्द केजरीवाल सरकार की इस लगातार जारी वायदा-खि़लाफ़ी को देखते हुए हड़ताल की लीडिंग कमिटी ने 4 अगस्त को फिर एक ज़बरदस्त कार्यक्रम की योजना बनायी। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में हज़ारों आँगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर्स ने राजघाट से दिल्ली सचिवालय तक ‘आँगनवाड़ी आक्रोश रैली’ का आयोजन किया। 15 अगस्त के मद्देनज़र दिल्ली पुलिस कार्यक्रम को लेकर आना-कानी कर रही थी, लेकिन महिलाओं की ताक़त के आगे आखि़र उसे भी झुकना पड़ा। दिल्ली सचिवालय पहुँचकर महिलाओं ने ज़बरदस्त नारेबाज़ी की और अपनी सभा को चलाया। लेकिन केजरीवाल महाशय उस दिन भी नदारद थे।

महान भारत में औरतों के नहाने के लिए बन्द-बाथरूम भी नहीं

एक बहुत चिन्ताजनक बात यह है कि बन्द बाथरूम की ज़रूरत का मुद्दा कभी चर्चा का विषय नहीं बनता। जब लोगों के साथ इस बारे में बात होती है तो उनका कहना होता है कि भले ही नहाने के लिए बन्द जगह की ज़रूरत होती है, लेकिन हमारे पास इस पर ख़र्च करने के लिए पैसे नहीं हैं। इससे अधिक महत्वपूर्ण ज़रूरतें भी हैं जिन्हें पूरा करना पहल के आधार पर ज़रूरी है।

लुधियाना में ‘स्त्री मज़दूर संगठन’ की शुरुआत

2 अक्टूबर 2016 को मज़दूर पुस्तकालय, लुधियाना में स्त्रियों की एक मीटिंग हुई। इस मीटिंग में समाज में स्त्रियों की बुरी हालत के बारे में और इस हालत को बदलने के लिए स्त्रियों को जागरूक व संगठित करने की ज़रूरत के बारे में बातचीत की गयी। मज़दूर स्त्रियों की हालत और भी बुरी है। घर और बाहर दोनों जगहों पर स्त्री मज़दूरों को बेहद भयंकर हालातों का सामना करना पड़ता है। मर्दों के बराबर या अधिक काम करने के बावजूद भी उन्हें पुरुष मज़दूरों से कम वेतन मिलता है।

दिल्ली सचिवालय पर घरेलू कामगारों का जुझारू प्रदर्शन

दिल्ली के सैकड़ों घरेलू कामगारों ने दिल्ली सरकार के सचिवालय पर बीते 25 अप्रैल को एक जुझारू प्रदर्शन किया और उनके प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली राज्य के श्रम मन्त्री को अपनी माँगों का ज्ञापन सौंपा। श्रम विभाग में अनिवार्य पंजीकरण, न्यूनतम वेतन, कार्यदिवस, साप्ताहिक छुट्टी एवं अन्य अवकाशों का निर्धारण, स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा, पी।एफ़।, पेंशन, ई।एस।आयी। एवं सामाजिक सुरक्षा के अन्य प्रावधान आदि घरेलू कामगारों की प्रमुख माँगें थीं।