Category Archives: स्‍त्री मज़दूर

नयी शिक्षा नीति के तहत आँगनवाड़ी केन्द्रों में प्री-प्राइमरी की पढ़ाई; आँगनवाड़ी कर्मियों से बेगारी करवाने का नया तरीक़ा!

केन्द्र सरकार ने नयी शिक्षा नीति के तहत प्री-प्राइमरी के बच्चों की आँगनवाड़ी में अनिवार्य पढ़ाई के निर्देश दिये हैं। नयी शिक्षा नीति के तहत आने वाले दिनों में जल्द ही पूरी शिक्षा व्यवस्था की नयी रूपरेखा तैयार की जायेगी जिसमें एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हर बच्चे के लिए आवश्यक प्री-प्राइमरी की पढ़ाई आने वाले समय में आँगनवाड़ी कर्मियों के ज़िम्मे होगी। इस नयी ज़िम्मेदारी के लिए आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की योग्यता कम से कम 12वीं पास होनी चाहिए।

कारख़ानों में काम करने वाली स्त्री मज़दूरों के बुरे हालात

सूरत की एक कपड़ा फ़ैक्टरी में काम करने वाली स्त्री मज़दूर ने बीबीसी को बताया कि काम की जगह पर शौचालय तो है पर उसे ताला लगा रहता है। उसे दिन में सिर्फ़ दो बार ही खोला जाता है। वे हमें पेशाब करने जाने से रोकते हैं। इसलिए हम पानी नहीं पीते और पेशाब का ज़ोर पड़ने पर उसे रोके रखना पड़ता है। माहवारी के दिनों में औरतें काम पर नहीं आतीं, जब वे छुट्टी माँगने जाती हैं तो उनके पैसे काट लिये जाते हैं। वड़ोदरा के एक कारख़ाने में लक्ष्मी 10 घण्टों की शिफ़्ट में काम करती है। उसका कहना है कि “मर्दों और औरतों के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है। हमें सिर्फ़ 150 रुपये दिये जाते हैं, जबकि साथ काम करने वाले मर्दों को 300 रुपये दिये जाते हैं। औरतों के लिए अलग से शौचालय भी नहीं है।

कर्नाटक के गारमेण्ट मज़दूरों का उग्र आन्दोलन और लम्बे संघर्ष की तैयार होती ज़मीन

पूरे गारमेण्ट सेक्टर में कार्यस्थल के हालात अमानवीय हैं। जैसा हिम्मतसिंग गारमेण्ट फ़ैक्टरी में हुआ, वह हर फ़ैक्टरी की कहानी है। मज़दूरों के साथ गाली-गलौज, मारपीट आम बात है। हमने ऊपर बताया है कि पूरे सेक्टर में महिला मज़दूरों की संख्या ज़्यादा है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अध्ययन के मुताबिक़ सात गारमेण्ट मज़दूर परिवारों में से एक परिवार महिला मज़दूर की कमाई पर आश्रित है। उनके साथ तो और भी ज़्यादा बदसलूकी की जाती है। यौन हिंसा, छेड़छाड़ रोज़मर्रा की घटनाएँ हैं। इतना ही नहीं उन्हें ज़बरदस्ती काम करने और ओवरटाइम करने पर भी मज़बूर किया जाता है। उनके दोपहर का खाना खाने, चाय पीने, शौचालय जाने तक के समय में से कटौती की जाती है। वर्कलोड बढ़ा दिया जाता है और उत्पादन तेज़ करने की माँग की जाती है। 1 घण्टे में उन्हें 100 से 150 तक शर्टें तैयार करनी होती हैं। काम पूरा न होने पर अपमान और जिल्लत झेलना पड़ता है। दरअसल मुनाफ़े की रफ़्तार को बढ़ाने के लिए मज़दूरों के आराम करने के समय में कटौती करके काम के घण्टे को बढ़ाया जाता है। फ़ैक्टरियों में खुलेआम श्रम क़ानूनों का उल्लंघन होता है और श्रम विभाग चुपचाप देखता रहता है। अगर इस अपमान और ि‍जल्लत के ख़िलाफ़ मज़दूर आवाज़ उठाते हैं तो उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता है।

8 मार्च अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर कार्यक्रम

स्त्री मज़दूर संगठन की बीना ने कहा कि पूँजीवादी समाज में स्त्रियाँ दोहरे उत्पीड़न का शिकार होती हैं – एक तो पूँजी की ग़ुलामी और दूसरी तरफ़ पितृसत्तात्मक ग़ुलामी। हम अपने आसपास, फ़ैक्टरियों तथा जिन घरों में हम काम करते हैं वहाँ  लगातार इस सामाजिक मानसिकता के दंश को झेल रहे हैं। आज के समय में जब हमारे जीवन को पूँजी की लूट ने बद से बदतर बना दिया है तो ठीक इसी कारण आज हमें उठ खड़े होने की ज़रूरत भी सबसे ज़्यादा है। आज समाज के पोर-पोर में पैठी स्त्री दलित, अल्पसंख्यक और मज़दूर विरोधी मानसिकता और फासीवादी राजनीति के ख़िलाफ़ लगातार संगठित होने की ज़रूरत है।

लखनऊ का तालकटोरा औद्योगिक क्षेत्र जहाँ कोई नहीं जानता कि श्रम क़ानून किस चिड़िया का नाम है

प्‍लाई, केमिकल, बैटरी, स्‍क्रैप आदि का काम करने वाले कारख़ानों में भयंकर गर्मी और प्रदूषण होता है जिससे मज़दूरों को कई तरह की बीमारियाँ होती रहती हैं। स्क्रैप फ़ैक्‍टरी के मज़दूरों की चमड़ी तो पूरी तरह काली हो चुकी है। अक्सर मज़दूरों को चमड़ी से सम्बन्धित बीमारियाँ होती रहती हैं। अधिकतर मज़दूरों को साँस की समस्या है। इलाज के लिए प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र है जहाँ कुछ बेसिक दवाएँ देकर मज़दूरों को टरका दिया जाता है। इसके अलावा कुछ प्राइवेट डॉक्‍टर हैं जिनके पास जाने का मतलब है अपना ख़ून चुसवाना। गम्‍भीर बीमारी होने की स्थिति में बड़े अस्पतालों जैसे केजीएमयू, लोहिया, बलरामपुर हास्पिटल जाना पड़ता है जिसका ख़र्च उठाना भी मज़दूरों के लिए भारी पड़ता है और इलाज के लिए छुट्टी नहीं मिलने के चलते दिहाड़ी का भी नुक़सान उठाना पड़ता है।

आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा : प्रधानमन्त्री का एक और वायदा निकला जुमला!

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 11 सितम्बर 2018 को आँगनवाड़ी एवं आशा कर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की घोषणा की गयी थी। ‘आँगनवाड़ी’ और ‘आशा’ महिलाकर्मियों को मानदेय बढ़ोत्तरी का यह वायदा दिवाली के तोहफ़े के तौर पर किया गया था किन्तु अभी तक भी इस मानदेय बढ़ोत्तरी की एक फूटी कौड़ी भी किसी के खाते में नहीं आयी है! दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन को जिस बात की पहले ही आशंका थी, वही हुआ। यूनियन के द्वारा अपनी पिछली प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की आशंका भी जतायी गयी थी। प्रधानमन्त्री द्वारा किये गये वायदे के अनुसार अक्टूबर माह से कार्यकर्त्ताओं के वेतन में 1,500 रुपये और सहायिकाओं के वेतन में 750 रुपये की वृद्धि होनी थी लेकिन अक्टूबर के महीने से बढ़ी हुई यह राशि अब तक किसी महिलाकर्मी को प्राप्त नहीं हुई है।

आपस की बात : हमें एकजुटता बनानी होगी

मैं पिछले वर्ष से जब से हमारी हड़ताल हुई थी तब से मज़दूर बिगुल अख़बार पढ़ रही हूँ। इसी अख़बार ने हमारी हड़ताल की रिपोर्टों को भी काफ़ी जगह दी थी। इसके लिए मैं अपनी आँगनवाड़ी की सभी बहनों और साथियों की तरफ़ से आपका धन्यवाद करती हूँ। हम सभी यह जानते हैं कि मज़दूर वर्ग बहुत सारी मुश्किलों का सामना करता है। दिन पर दिन हमारी दिक़्क़तें बढ़ती ही जाती हैं। आँगनवाड़ी में काम करते हुए हमें भी बहुत तरह की परेशानियों को झेलना पड़ता है। जैसे खाने की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों की वजह से खाने में कीड़े तो छोड़िए छिपकली तक निकल जाती है लेकिन जब इस तरह के खाने की वजह से बच्चों की तबीयत खराब होती है तो उसका दण्ड हमें भुगतना पड़ता है।

महिला एवं बाल विकास विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार का आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने दिल्ली में किया पर्दाफ़ाश!

केन्द्र सरकार ने हाल में ही यह घोषणा की है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मानदेय में क्रमशः 1500 व 750 रुपये की बढ़ोत्तरी की जायेगी! वैसे तो इस देश में शिवाजी की मूर्ति पर 3600 करोड़ व पटेल की मूर्ति पर 3000 करोड़ ख़र्च कर दिये जा रहे हैं, जिसका सीधा मक़सद जातीय वोट बैंक को भुनाना है, उलजुलूल के कामों में अरबों रूपये पानी की तरह बहाये जाते हैं, किन्तु आँगनवाड़ियों में ज़मीनी स्तर पर मेहनत करने वाली कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को पक्का रोज़गार देने की बजाय या तब तक न्यूनतम वेतन के समान मेहनताना देने की बजाय भुलावे में रखने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार 28 लाख महिलाकर्मियों के वोटों का आने वाले चुनाव के लिए 1500 और 750 रुपये में मोल-भाव कर रही है!?

हरियाणा में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का आन्दोलन : सीटू और अन्य संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की इसमें भागीदारी या फिर इस आन्दोलन से गद्दारी?!

12 फ़रवरी से हड़ताल पर बैठी हरियाणा की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की माँग थी कि उनका मानदेय बढ़ाया जाये और उन्हें कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाये। समेकित बाल विकास विभाग और आँगनवाड़ी की देशभर में खस्ता हालत से शायद ही कोई अनजान होगा। हरियाणा की आँगनवाड़ी भी अव्यवस्था से अछूती नहीं है। आँगनवाड़ियों में खाने की गुणवत्ता का निम्न स्तर, राशन की आपूर्ति में देरी के साथ-साथ तमाम समस्याएँ सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करती हैं। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों पर काम का दबाव निश्चय ही योजना को प्रभावित करता है।

केजरीवाल सरकार के मज़दूर और ग़रीब विरोधी रवैये के ख़िलाफ़ आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने उठायी आवाज़!

 इस योजना में सबसे निचले पायदान पर कार्यरत कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को बलि का बकरा बनाकर केजरीवाल सरकार इस स्कीम में अपने द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालते हुए महिलाकर्मियों के कन्धों पर रख कर बन्दूक चला रही है। ये कोई छिपी हुई बात नहीं है कि इस योजना में लगे एनजीओ का, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, आम आदमी पार्टी से सम्बन्ध है। खुद को आम आदमी का हिमायती कहने वाले केजरीवाल ने यह साबित कर दिया है कि उसकी सरकार के  ख़िलाफ़ अगर आवाज़ उठाई जायेगी तो उस आवाज़ को दबाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।