Category Archives: स्‍त्री मज़दूर

उत्तर-पश्चिम दिल्ली के छोटे कारख़ानों में बेहद बुरी स्थितियों में खटती स्त्री मज़दूर

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में छोटे कारख़ानों का जालनुमा फैलाव देखने को मिलता है। ख़ासकर ये कारख़ाने मज़दूर बस्तियों के इर्द-गिर्द बसाये गये हैं ताकि सस्ते श्रम का दोहन किया जा सके। ऐसा ही एक जाल शाहबाद-डेरी से बवाना के आसपास के क्षेत्र में भी देखने को मिलता है। इन कारख़ानों में मुख्यतः धातु छँटाई ,पैकिंग इत्यादि का काम होता है। जिसमें तांबा, पीतल, चाँदी इत्यादि की छँटाई का काम किया जाता है।

‘फ़्रण्ट लाइन वर्करों’ के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी की नयी जुमलेबाज़ी!

15 अगस्त को लाल क़िले की प्राचीर से प्रधान “सेवक” महोदय उर्फ़ नरेन्द्र मोदी ने कोरोना महामारी के दौरान कार्यरत ‘फ़्रण्ट लाइन वर्कर्स’ की जमकर “सराहना” की। इस दफ़े लाल क़िले पर आँगनवाड़ीकर्मियों, आशाकर्मियों व एनएचएम कर्मचारियों को बतौर विशेष “अतिथि” आमंत्रित भी किया गया था। लेकिन प्रधानमंत्री महोदय जी भूल गये कि कौड़ियों के दाम ठेके पर दे दिये गये लाल क़िले पर चढ़कर की गयी ऐसी हवबाज़ी से फ़्रण्टलाइन वर्करों का गुज़ारा नहीं चलता! और न ही थालियों-तालियों, धूप-अगरबत्ती की नौटंकी से ही हम लाखों कामगारों को कुछ हासिल हुआ था।

दिल्ली की आँगनवाड़ी महिला मज़दूरों के जारी ऐतिहासिक और जुझारू संघर्ष की रिपोर्ट

हम ‘मज़दूर बिगुल’ के पन्नों पर पढ़ चुके हैं कि किस तरह 31 जनवरी से दिल्ली में आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों की 38 दिनों तक चली हड़ताल का दमन करते हुए उपराज्यपाल ने हेस्मा लगाया था और दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने 884 लोगों को बदले की भावना से बर्ख़ास्त कर दिया था। हेस्मा व ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी के ख़िलाफ़ महिलाकर्मियों ने अपने आन्दोलन को नये स्तर पर जारी रखा हुआ है। इस जुझारु आन्दोलन ने समूची पूँजीवादी व्यवस्था के चरित्र को बेनक़ाब किया है। विधायिका, कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका तक का मज़दूर-विरोधी, स्त्री-विरोधी चरित्र भी महिलाकर्मियों के इस संघर्ष के दौरान खुलकर सामने आया है।

‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ बनाम दिल्ली सरकार और महिला एवं बाल विकास विभाग के दिल्ली हाईकोर्ट में जारी केस की राजनीतिक रपट और हर दिन के साथ उजागर होती ‘सीटू’ की ग़द्दारी और विश्वासघात

ज्ञात हो कि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने दिल्ली सरकार व केन्द्र सरकार द्वारा अन्यायपूर्ण तरीक़े से हेस्मा थोपे जाने के बाद हड़ताल के अस्थायी रूप से स्थगित किये जाने के बाद 14 मार्च 2022 को दिल्ली सरकार और महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) विभाग द्वारा 884 आँगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से टर्मिनेट किये जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार व डब्ल्यूसीडी विभाग पर मुक़दमा (रिट पेटीशन) दायर किया था।

आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का आन्दोलन जारी है!

दिल्ली व केन्द्र सरकार की मिलीभगत से आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की हड़ताल पर दमनकारी हेस्मा (हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ एक्ट) क़ानून थोपे जाने के बाद हड़ताल स्थगित हुई है लेकिन आन्दोलन अपने नये रूप में जारी है। हेस्मा व ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी के ख़िलाफ़ जहाँ एक तरफ़ कोर्ट में लड़ाई चल रही है वहीं दूसरी तरफ़ सैकड़ों महिलाकर्मी हर दिन सड़कों पर उतरकर ‘नाक में दम करो’ अभियान चला रही हैं।

आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों के संघर्ष ने तमाम पूँजीवादी पार्टियों के मज़दूर-मेहनतकश विरोधी चेहरे को बेपर्द किया!

दिल्ली में 31 जनवरी 2022 से शुरू हुआ आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों का संघर्ष दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश के मज़दूर आन्दोलन के इतिहास में एक आगे बढ़ा हुआ क़दम है। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन की रहनुमाई में 38 दिनों तक चली ये हड़ताल हर आने वाले दिन के साथ नया इतिहास रचते हुए और अधिक मज़बूत होती रही। अपनी हड़ताल और रैलियों के माध्यम से सड़कों पर उतरे महिलाओं के सैलाब ने न सिर्फ़ दिल्ली में और केन्द्र में बैठे हुक्मरानों की कुर्सियाँ हिला दी थीं, उन्हें भयाक्रान्त कर दिया था और उनकी असलियत को उजागर किया बल्कि इस समूची पूँजीवादी-पितृसत्तात्मक व्यवस्था को भी चुनौती दी।

दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की अनूठी मुहिम : नाक में दम करो अभियान

दिल्ली की सैंकड़ो महिलाकर्मी 16 मार्च से तकरीबन रोज़ ही दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में एक अनूठा अभियान चला रही हैं। इस अभियान का नाम है ‘नाक में दम करो’ अभियान। इस अभियान के ज़रिए आँगनवाड़ीकर्मी विशेष तौर पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन करती हैं। ज्ञात हो कि दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की 31 जनवरी से 38 दिनों तक चली ऐतिहासिक हड़ताल पर ‘आप’ और भाजपा ने मिलीभगत से हेस्मा (हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ एक्ट) थोप दिया था। इसके बाद आँगनवाड़ीकर्मियों की यूनियन ने हेस्मा के ख़िलाफ़ न्यायालय में केस किया और हड़ताल को न्यायालय के फ़ैसले तक स्थगित किया और स्पष्ट किया कि अगर न्यायालय इस काले क़ानून को रद्द नहीं करती तो दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मी हेस्मा की परवाह किये बिना दुबारा हड़ताल पर जायेंगी।

पितृसत्ता के ख़िलाफ़ कोई भी लड़ाई पूँजीवाद विरोधी लड़ाई से अलग रहकर सफल नहीं हो सकती!

इस बार 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के 111 साल पूरे हो जायेंगे। यह दिन बेशक स्त्रियों की मुक्ति के प्रतीक दिवस के रूप में मनाया जाता है परन्तु जिस प्रकार बुर्जुआ संस्थानों द्वारा इस दिन को सिर्फ़ एक रस्मी कवायद तक सीमित कर दिया गया है, जिस प्रकार स्त्री आन्दोलन को सिर्फ़ मध्यवर्गीय दायरे तक सीमित कर दिया गया है, जिस प्रकार इस दिन को उसकी क्रान्तिकारी विरासत से धूमिल किया जा रहा है और जिस प्रकार उसे उसके इतिहास से काटा जा रहा है, ऐसे में ज़रूरी है कि हम यह जानें कि कैसे स्त्री मज़दूरों के संघर्षों को याद करते हुए अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी।

देखरेख करने वाले काम (केयर वर्क) का राजनीतिक अर्थशास्त्र

एक ऐसे ऐतिहासिक संघर्ष के समय, जिसमें कि तीन ज़बर्दस्त रैलियाँ निकाली गयीं, हड़ताल स्थल पर आर्ट गैलरियाँ बनायी गयीं, बच्चों के शिशुघर चलाये गये और आँगनवाड़ीकर्मी औरतों की नाटक टोलियाँ बनायी गयीं और आम आदमी पार्टी का पूरे शहर में बहिष्कार किया गया, इस बात पर चर्चा करना बेहद मौजूँ होगा कि आँगनवाड़ीकर्मियों के श्रम का पूँजीपति वर्ग के लिए क्या महत्व है, वह उन्हें कैसे लूटता है, उनका किस प्रकार फ़ायदा उठाता है।

दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मियों की लड़ाई पिछले 38 दिनों से जारी थी। हड़ताल दिनों-दिन मज़बूत होती देख बौखलाहट में आम आदमी पार्टी व भाजपा ने आपसी सहमति बनाकर उपराज्यपाल के ज़रिए इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिए छह महीने की रोक लगा दी है।