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आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों के संघर्ष ने तमाम पूँजीवादी पार्टियों के मज़दूर-मेहनतकश विरोधी चेहरे को बेपर्द किया!

दिल्ली में 31 जनवरी 2022 से शुरू हुआ आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों का संघर्ष दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश के मज़दूर आन्दोलन के इतिहास में एक आगे बढ़ा हुआ क़दम है। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन की रहनुमाई में 38 दिनों तक चली ये हड़ताल हर आने वाले दिन के साथ नया इतिहास रचते हुए और अधिक मज़बूत होती रही। अपनी हड़ताल और रैलियों के माध्यम से सड़कों पर उतरे महिलाओं के सैलाब ने न सिर्फ़ दिल्ली में और केन्द्र में बैठे हुक्मरानों की कुर्सियाँ हिला दी थीं, उन्हें भयाक्रान्त कर दिया था और उनकी असलियत को उजागर किया बल्कि इस समूची पूँजीवादी-पितृसत्तात्मक व्यवस्था को भी चुनौती दी।

दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की अनूठी मुहिम : नाक में दम करो अभियान

दिल्ली की सैंकड़ो महिलाकर्मी 16 मार्च से तकरीबन रोज़ ही दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में एक अनूठा अभियान चला रही हैं। इस अभियान का नाम है ‘नाक में दम करो’ अभियान। इस अभियान के ज़रिए आँगनवाड़ीकर्मी विशेष तौर पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन करती हैं। ज्ञात हो कि दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की 31 जनवरी से 38 दिनों तक चली ऐतिहासिक हड़ताल पर ‘आप’ और भाजपा ने मिलीभगत से हेस्मा (हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ एक्ट) थोप दिया था। इसके बाद आँगनवाड़ीकर्मियों की यूनियन ने हेस्मा के ख़िलाफ़ न्यायालय में केस किया और हड़ताल को न्यायालय के फ़ैसले तक स्थगित किया और स्पष्ट किया कि अगर न्यायालय इस काले क़ानून को रद्द नहीं करती तो दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मी हेस्मा की परवाह किये बिना दुबारा हड़ताल पर जायेंगी।

पितृसत्ता के ख़िलाफ़ कोई भी लड़ाई पूँजीवाद विरोधी लड़ाई से अलग रहकर सफल नहीं हो सकती!

इस बार 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के 111 साल पूरे हो जायेंगे। यह दिन बेशक स्त्रियों की मुक्ति के प्रतीक दिवस के रूप में मनाया जाता है परन्तु जिस प्रकार बुर्जुआ संस्थानों द्वारा इस दिन को सिर्फ़ एक रस्मी कवायद तक सीमित कर दिया गया है, जिस प्रकार स्त्री आन्दोलन को सिर्फ़ मध्यवर्गीय दायरे तक सीमित कर दिया गया है, जिस प्रकार इस दिन को उसकी क्रान्तिकारी विरासत से धूमिल किया जा रहा है और जिस प्रकार उसे उसके इतिहास से काटा जा रहा है, ऐसे में ज़रूरी है कि हम यह जानें कि कैसे स्त्री मज़दूरों के संघर्षों को याद करते हुए अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी।

देखरेख करने वाले काम (केयर वर्क) का राजनीतिक अर्थशास्त्र

एक ऐसे ऐतिहासिक संघर्ष के समय, जिसमें कि तीन ज़बर्दस्त रैलियाँ निकाली गयीं, हड़ताल स्थल पर आर्ट गैलरियाँ बनायी गयीं, बच्चों के शिशुघर चलाये गये और आँगनवाड़ीकर्मी औरतों की नाटक टोलियाँ बनायी गयीं और आम आदमी पार्टी का पूरे शहर में बहिष्कार किया गया, इस बात पर चर्चा करना बेहद मौजूँ होगा कि आँगनवाड़ीकर्मियों के श्रम का पूँजीपति वर्ग के लिए क्या महत्व है, वह उन्हें कैसे लूटता है, उनका किस प्रकार फ़ायदा उठाता है।

दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मियों की लड़ाई पिछले 38 दिनों से जारी थी। हड़ताल दिनों-दिन मज़बूत होती देख बौखलाहट में आम आदमी पार्टी व भाजपा ने आपसी सहमति बनाकर उपराज्यपाल के ज़रिए इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिए छह महीने की रोक लगा दी है।

दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाकर्मी 31 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर!

दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाकर्मी अपनी जायज़ माँगों को लेकर लगातार संघर्षरत हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक अनिश्चितकालीन हड़ताल के तीसरे दिन हज़ारों की संख्या में आँगनवाड़ी स्त्री कामगार केजरीवाल आवास के बाहर अपनी माँगें उठा रही हैं।
मालूम हो कि केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने माँगपत्रक पर कोई ठोस कार्रवाई न होने की सूरत में 22,000 वर्कर्स और हेल्पर्स 31 जनवरी से दिल्ली की आँगनवाड़ी केन्द्रों का काम ठप्प कर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं।

कोरोना और इसके बाद पैदा किये गये हालात का मेहनतकश महिलाओं के जीवन पर असर

संकट के समय में जब संसाधन कम होते हैं और बाकी संस्थान और सेवायें बन्द होती हैं तब महिलाओं को दूरगामी परिणामों के साथ विकट स्थितियों का सामना करना पड़ता है। जो आगे चलकर उनमें कमजोरी, बिमारी और तनाव के रूप में सामने आती है। यही कुछ कोविड-19 के समय में भी हुआ। घर के लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की जद्दोजहद के बीच अकसर महिलाएं ख़ुद पोषण युक्त खाना नहीं खा पाती थीं और ना ही खुद की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाती थीं। और आज ये बात कई रिसर्च में भी सामने आयी है कि न्यूट्रीशन की कमी पुरूषों की अपेक्षा स्त्रीयों में ज्यादा है। एक सर्वे में ये भी बात सामने आयी है कि लगभग 33 प्रतिशत महिलाओं को पूरे लॉकडॉउन के दौरान भरपूर नींद भी नसीब नहीं हुई।

आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों को बेगार खटवाकर “महिला सशक्तिकरण” को बढ़ावा देने में जुटी केजरीवाल सरकार!

बीते 25 मार्च को दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक नया ऑर्डर जारी किया है। इसके मुताबिक़ दिल्ली में 500 आँगनवाड़ी हब बनाने का फ़ैसला लिया गया है। इन हब केन्द्रों में आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को अब दो अलग-अलग परियोजनाएँ सम्भालनी होंगी।

लॉकडाउन और सरकारी उपेक्षा का शिकार स्कीम वर्कर्स भी बनीं

कोविड-19 महामारी के दौर में सरकार की लपरवाहियों का खामियाज़ा सबसे ज़्यादा मेहनतकश आवाम ने ही भुगता है और अब तक भुगत भी रही है। केन्द्र सरकार ने न तो महामारी को रोकने के लिए ही उचित कदम उठाये तथा न ही इसके नाम पर थोपे गये लॉकडाउन के दौरान ही जनता के सुख-दुख का ख़याल किया। नतीजतन, एक मजदूरों की बहुत बड़ी आबादी अचानक लागू कर दिये गये लॉकडाऊन के बाद पैदल घर वापस सफ़र करने को मजबूर हो गयी। दूसरी ओर स्वास्थ्यकर्मियों के लिए ताली-थाली बजाने व फूल बरसाने में मशगूल केन्द्र सरकार ने वक़्त रहते ज़रूरी बचाव सामग्री का भी इन्तज़ाम नहीं किया।

विलय के नाम पर आँगनवाड़ी कर्मियों की छँटनी पर आमादा सरकार

महामारी से जन्मी विपदा ने देश के मेहनतकशों के सामने अस्तित्व का संकट ला खड़ा किया। आँगनवाड़ी महिलाकर्मी भी इस दौरान अपनी ज़िन्दगी दाँव पर रख काम करने को मजबूर हुईं। दिल्ली में महिला एवं बाल विकास विभाग के अन्तर्गत समेकित बाल विकास परियोजना के तहत आने वाले आँगनवाड़ी केन्द्रों में कार्यरत महिलाकर्मियों को सम्पूर्ण लॉकडाउन के दौरान बिना किसी सुरक्षा के इन्तज़ामों के घर-घर जाकर बच्चों को पोषाहार पहुँचाने के निर्देश दिये गये। दिल्ली सरकार द्वारा जारी यह जन-विरोधी निर्देश कई महिलाओं की बीमारी का कारण बने।