Category Archives: संघर्षरत जनता

मेट्रो कामगार संघर्ष समिति का जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन

जमरूदपुर हादसे में मेट्रो मज़दूरों की मौत के बाद मामले की लीपा-पोती के विरोध में ‘दिल्ली मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ द्वारा विगत 22 जुलाई को जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन किया गया। 13 जुलाई को दक्षिणी दिल्ली के जमरूदपुर इलाके में लांचर गिर जाने से 6 मज़दूरों की दर्दनाक मौत हो गयी थी। इसके बाद हर बार की तरह मामले की लीपापोती की गयी। कामगार संघर्ष समिति के अनुसार इस तरह के हादसे भविष्य में भी हो सकते हैं क्योंकि कॉमनवेल्थ खेलों तक मेट्रो को पूरा करने के लिए काम की रफ्तार बढ़ा दी गयी है। इस हादसे से कोई सबक न लेते हुए दिल्ली मेट्रो मज़दूरों की जान ख़तरे में डालकर अपने टारगेट पूरा करने में लगा हुआ है।

छँटनी के ख़िलाफ कोरिया के मजदूरों का बहादुराना संघर्ष

सरकार ने बर्बर दमन का सहारा लिया। कंपनी परिसर को युद्ध-क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया। चारदीवारी से और हेलीकॉप्टर के जरिए सशस्त्र हमला किया गया जिसका मजदूरों ने मुँहतोड़ जवाब दिया। मजदूरों ने बम फेंककर पुलिस कमाण्डो को अंदर आने से रोके रखा। इस दमन ने उल्टे मजदूरों की एकजुटता को और मजबूत कर दिया। हमला झेल रहे मजदूरों की एकता फौलादी और मजबूत इरादों से लैस होती गयी। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा और उसने लड़ रहे मजदूरों को काम पर रखने का आश्वासन दिया। कब्ज़ा समाप्त होने पर बाहर निकले मजदूरों का इस संघर्ष के समर्थकों और उनके परिवार के लोगों ने हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया। इस फौरी जीत पर मजदूरों की जीत के नारे लगाये गये और क्रान्तिकारी गीत गाये गये।

गोरखपुर में मज़दूरों की बढती एकजुटता और संघर्ष से मालिक घबराये

गोरखपुर में पिछले दिनों तीन कारखाने के मज़दूरों के जुझारू संघर्ष की जीत से उत्‍साहित होकर बरगदवा इलाके के दो और कारखानों के मजदूर भी आन्‍दोलन की राह पर उतर पड़े हैं। इलाके के कुछ अन्‍य कारखानों मे भी मजदूर संघर्ष के लिए कमर कस रहे हैं। वर्षों से बुरी तरह शोषण के शिकार, तमाम अधिकारों से वंचित और असंगठित बरगदवा क्षेत्र के हज़ारों मज़दूरों में अपने साथी मज़दूरों के सफल आन्दोलन ने उम्मीद की एक लौ जगा दी है।

भटिण्डा में पंजाब पुलिस द्वारा मज़दूरों का बर्बर दमन

तीन घण्टे तक कारखाने की एम्बुलेंस का इन्तजार करने के बाद भानु की हालत और बिगड़ती देखकर उसके साथी ट्रैक्टर-ट्रॉली पर उसे नजदीक के अस्पताल ले गये, जहाँ से उसे भटिण्डा सिविल अस्पताल भेज दिया गया। लेकिन वहाँ पहुँचने से पहले रास्ते में ही भानु की मौत ही गयी। कम्पनी की लापरवाही से भड़के भानु के परिवार के सदस्य और अन्य साथी उसकी लाश को कारखाना गेट पर ले आये। उन्होंने मुआवजे और लाश को बिहार में स्थित गाँव पहुँचाने के इन्तजाम की माँग की। मौके पर पहुँचे पुलिस उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में कारखाना प्रबन्धन ने मुआवजा देना माना। लेकिन अगली सुबह तक प्रबन्धन ने फिर कोई चिन्ता न दिखायी तो परिवारवाले लाश को फिर कारखाना गेट पर ले आये, लेकिन गेट पर पहले से ही पुलिस तैनात थी। पुलिस सुबह से ही किसी भी मजदूर को कारखाने के भीतर नहीं जाने दे रही थी। कारखाना प्रबन्धन जब पुलिस का साथ देखकर मजदूरों के साथ हाथापाई पर आ गया, तो मजदूरों को ही कसूरवार ठहराते हुए पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। कारखाना प्रबन्धन और पुलिस का रवैया देखकर मजदूरों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने पुलिस को कड़ा जवाब दिया। प्रशासन ने अपनी ग़लती मानने की बजाय मजदूरों को सबक सिखाने के मकसद से चार जिलों की पुलिस और कमाण्डो फोर्स को बुला लिया।

गोरखपुर में तीन कारखानों के मजदूरों के एकजुट संघर्ष की शानदार जीत

गोरखपुर के तीन कारखानों के मज़दूरों ने अपने एकजुट संघर्ष से मालिकों को झुकाकर अपनी सभी प्रमुख माँगें मनवाकर एक शानदार जीत हासिल की है। अंकुर उद्योग लि. की धागा मिल, वी.एन. डायर्स एण्ड प्रोसेसर्स की धागा मिल और इसी की कपड़ा मिल के करीब बारह सौ मजदूरों की इस जीत का महत्‍व इसलिए और भी ज्यादा है क्योंकि यह ऐसे समय में हासिल हुई है, जब मजदूरों को लगातार पीछे धकेला जा रहा है और ज्यादातर जगहों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बेहद पिछड़े इलाके में मजदूरों के इस सफल संघर्ष ने यह दिखा दिया है कि अगर मजदूर एकजुट रहें, भ्रष्ट, धन्धेबाज ट्रेड यूनियन नेताओं के बहकावे में न आयें और मालिक-पुलिस-प्रशासन-नेताशाही की धमकियों और झाँसों के असर में आये बिना अपनी लड़ाई को सुनियोजित ढंग से लड़ें तो अपने बुनियादी अधिकारों की लड़ाई में ऐसी जीतें हासिल कर सकते हैं।

लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों का संघर्ष रंग लाया

स्पष्ट देखा जा सकता है कि यह हड़ताल कोई लम्बी-चौड़ी योजनाबन्दी का हिस्सा नहीं थी। अपनी माँगें मनवाने के लिए इसे फैक्टरी के मज़दूरों की बिलकुल शुरुआती और अल्पकालिक एकता कहा जा सकता है। इस फैक्टरी के समझदार मज़दूर साथियों से आशा की जानी चाहिए कि वे अपनी इस अल्पकालिक एकता से आगे बढ़कर बाकायदा सांगठनिक एकता कायम करने के लिए कोशिश करेंगे। एक माँगपत्र के इर्दगिर्द मज़दूरों को एकता कायम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ख़राब पीस के पैसे काटना बन्द किया जाये (क्योंकि पीस सस्ते वाला घटिया धागा चलाने के कारण ख़राब होता है), पहचान पत्र और इ.एस.आई. कार्ड बने, प्रॉविडेण्ट फण्ड की सुविधा हासिल हो आदि माँगें इस माँगपत्र में शामिल की जा सकती हैं। हमारी यह ज़ोरदार गुजारिश है कि मज़दूरों को पीस रेट सिस्टम का विरोध करना चाहिए क्योंकि मालिक वेतन सिस्टम के मुकाबले पीस रेट सिस्टम के ज़रिये मज़दूरों का अधिक शोषण करने में कामयाब होता है। इसलिए पीस रेट सिस्टम का विरोध करते हुए आठ घण्टे का दिहाड़ी कानून लागू करवाने और आठ घण्टे के पर्याप्त वेतन के लिए माँगें भी माँगपत्र में शामिल होनी चाहिए और इनके लिए ज़ोरदार संघर्ष करना चाहिए। इसके अलावा सुरक्षा इन्तज़ामों के लिए माँग उठानी चाहिए जोकि बहुत ही महत्‍वपूर्ण माँग बनती है। साफ-सफाई से सम्बन्धित माँग भी शामिल की जानी चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि सभी माँगें एक बार में ही पूरी हो जायेंगी। मज़दूरों में एकता और लड़ने की भावना का स्तर, माल की माँग में तेज़ी या मन्दी आदि परिस्थितियों के हिसाब से कम से कम कुछ माँगें मनवाकर बाकी के लिए लड़ाई जारी रखनी चाहिए।

नेपाली क्रान्ति किस ओर? नयी परिस्थितियाँ और पुराने सवाल

नेपाल की घटनाओं ने एक बार फिर इस इतिहाससिद्ध धारणा को ही पुख्ता किया है कि संसदीय चुनावों में बहुमत पाने के बावजूद मेहनतकश जनसमुदाय राज्य मशीनरी का अपने हितों के अनुरूप पुनर्गठन नहीं कर सकता। वह शासक वर्ग की राज्य मशीनरी का ध्‍वंस करके ही नयी राज्य मशीनरी की स्थापना कर सकता है। बेशक बुर्जुआ संसदीय चुनावों और संसद का (और यहाँ तक कि अन्तरिम या आरज़ी सरकारों का भी) रणकौशलगत (टैक्टिकल) इस्तेमाल किया जा सकता है, पर इनके द्वारा व्यवस्था परिवर्तन, या एक वर्ग से दूसरे वर्ग के हाथों सत्ता-हस्तान्तरण, नामुमकिन है। बुर्जुआ सत्ता का ध्‍वंस ही एकमात्र ऐतिहासिक विकल्प है।

देहाती मज़दूर यूनियन द्वारा 8 दिन की क्रमिक भूख हड़ताल सफल

संघर्ष की इस छोटी-सी अवधि में ही मज़दूर संगठन का महत्त्व समझने लगे हैं। दूर-दराज के गाँवों से नरेगा के मज़दूर सम्पर्क कर रहे हैं और अपने यहाँ भी संगठन की शाखाएँ खोलने की माँग कर रहे हैं। क्रमिक अनशन में हुई जीत भले ही कितनी ही छोटी क्यों न हो, आज वह इस क्षेत्रा के मज़दूरों के लिए महत्त्वपूर्ण बन गयी है

दमन-उत्पीड़न से नहीं कुचला जा सकता मेट्रो कर्मचारियों का आन्दोलन

दिल्ली मेट्रो की ट्रेनें, मॉल और दफ्तर जितने आलीशान हैं उसके कर्मचारियों की स्थिति उतनी ही बुरी है और मेट्रो प्रशासन का रवैया उतना ही तानाशाहीभरा। लेकिन दिल्ली मेट्रो रेल प्रशासन द्वारा कर्मचारियों के दमन-उत्पीड़न की हर कार्रवाई के साथ ही मेट्रो कर्मचारियों का आन्दोलन और ज़ोर पकड़ रहा है। सफाईकर्मियों से शुरू हुए इस आन्दोलन में अब मेट्रो फीडर सेवा के ड्राइवर-कण्डक्टर भी शामिल हो गये हैं। मेट्रो प्रशासन के तानाशाही रवैये और डीएमआरसी-ठेका कम्पनी गँठजोड़ ने अपनी हरकतों से ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों की एकजुटता को और मज़बूत कर दिया है।

नरेगा की अनियमितताओं के खिलाफ लड़ाई फैलती जा रही है

देहाती मजदूर यूनियन और नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में मर्यादपुर के नरेगा मजदूर और गरीबों द्वारा शुरु किया गया संघर्ष धीरे-धीरे क्षेत्र के दूसरे गाँव में फैलता जा रहा है। दरअसल दोनों संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को व्यापक बनाने के लिए जगह-जगह नुक्कड़ सभाएं करनी शुरू कर दी है। इन सभाओं में आम मजदूरों की काफी भागीदारी दिखायी दे रही है। शेखपुर (अलीपुर), लखनौर, ताजपुर, जवाहरपुर गोठाबाड़ी, रामपुर, नेमडाड, कटघरा, लऊआ सात और अनेक दूसरे गाँवों में भी सभाओं में मजदूर भारी संख्या में पहुँचे। उन्होंने खुल कर अपनी समस्याएँ सामने रखी।