तमाम छात्रों और मज़दूरों को ग़ैर-राजनीतिक बनाकर मुनाफ़े के लिए खटने वाला गुलाम नहीं बनाया जा सकता
राजनीति पर अपनी इज़ारेदारी बनाये बैठे लोगों को लगता है कि यदि देश की युवा आबादी को राजनीतिक रूप से उदासीन और अशिक्षित कर दिया जायेगा तो वे बेरोज़गार होकर काम की तलाश में भटकते रहेंगे, या किसी कारख़ाने में या किसी ऑफ़िस में किसी भी शर्त पर काम करने लगेंगे और कुछ मुट्ठीभर देशी-विदेशी पूँजीवादी-साम्राज्यवादी मुनाफ़ाखोरों को देश की प्राकृतिक तथा मानव सम्पदा को खुले आम लूटते हुए देखते रहेंगे। एक सीमा तक वर्तमान प्रचार तन्त्र मज़दूरों और नौजवानों के बीच लम्पट और कूपमण्डूक संस्कृति के माध्यम से ऐसा करने में सफल भी हो रहा है। राजनीति में हिस्सा लेने के नाम पर कुछ राजनीतिक पार्टियाँ “मिस-कॉल” करके सदस्यता दे रही हैं, लेकिन मिस-कॉल करके समाज के भविष्य का ठेका किसी और को दे देना राजनीति नहीं है, बल्कि देश की मेहनतकश जनता के साथ एक मज़ाक़ है। इन सच्चाइयों के बीच भी यह सम्भव नहीं है कि देश की व्यापक आबादी को उसकी अपनी बदहाली के वास्तविक कारण के बारे में हमेशा के लिए अँधेरे में धकेले रखा जाये।