Category Archives: समाज

लाइलाज मर्ज़ से पीड़ित पूँजीवाद को अज़ीम प्रेमजी की ख़ैरात की घुट्टी

अज़ीम प्रेमजी को जनता से अगर इतना ही प्यार होता तो वे मोदी सरकार पर यह कटौती न करने के लिए दबाव बना सकते थे। मोदी सरकार ने अब तक के अपने कार्यकाल में जितने जनविरोधी क़दम उठाये हैं उनके विरुद्ध आवाज़़ उठा सकते थे। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अज़ीम प्रेमजी एक पूँजीपति हैं और वह अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी तथा उनके भाई-बन्धुओं की कमाई मज़दूरों के शोषण पर टिकी है। और लूट की कमाई खाने की उनकी आदत ने दुनिया की मेहनतकश आबादी को बदहाल कर दिया है। यही वजह है कि दुनियाभर में मज़दूरों के स्वयंस्फूर्त संघर्ष फूट रहे हैं। इन्हीं बदलते हालातों से भयभीत अज़ीम प्रेमजी तथा उनके जैसे अन्य पूँजीपति ख़ैरात बाँटने में लग गये हैं।

हमें आज़ाद होना है तो मज़दूरों का राज लाना होगा।

ट्रेन से उतरकर मैं सुस्ताने के लिए प्लेटफ़ार्म पर बैठा ही था कि एक आदमी मुझसे पूछने लगा कि मैं कहाँ जाऊँगा और मेरे जवाब देने पर उसने बताया कि वह मुझे यहीं पास में ही काम पर लगवा देगा। उसके साथ 3 और लोग थे। मैं उस पर विश्वास कर उसके साथ चल दिया, सोचा कमाना ही तो है चाहे वज़ीरपुर या यहाँ और लगा कि जो बात गाँव में सुनी थी वह सही है कि शहर में काम ही काम है। ये आदमी मुझे एक बड़ी बिल्डिंग में पाँचवीं मंज़िल की एक फ़ैक्टरी में ले गया और बोला कि यहाँ जी लगाकर काम करो और महीने के अन्त में मालिक से पैसे ले लेना। फ़ैक्टरी में ताँबे के तार बेले जाते थे। फ़ैक्टरी के अन्दर मेरी उम्र के ही बच्चे काम कर रहे थे। सुपरवाइज़र दिन में जमकर काम करवाता था और होटल का खाना खाने को मिलता था। फ़ैक्टरी से बाहर जाना मना था। एक महीना गुज़र गया पर मालिक ने पैसा नहीं दिया। महीना पूरा होने के 10 दिन बाद मैं मालिक के दफ्तर पैसे माँगने लगा तो उसने कहा कि मुझे तो वह ख़रीद चुका है और मुझे यहाँ ऐसे ही काम करना होगा। यह बात सुनकर मैं घबरा गया। मैं फ़ैक्टरी में गुलामी करने को मजबूर था। मैंने जब और लड़कों से बात की तो पता चला कि वे सब भी बिके हुए थे और मालिक की गुलामी करने को मजबूर हैं। 5-6 महीने मैं गुलामों की तरह काम करता रहा। पर मैं किसी भी तरह आज़ाद होना चाहता था। मैं भागने के उपाय सोचने लगा। पर दिनभर सुपरवाइज़र बन्द फ़ैक्टरी में पहरा देता था। रात को ताला बन्द कर वह सोने चला जाता था। कमरे में दरवाज़े के अलावा एक रोशनदान भी था जिस पर ताँबे के तार बँधे थे।

अमीरज़ादों के लिए स्मार्ट सिटी, मेहनतकशों के लिए गन्दी बस्तियाँ

मोदी सरकार स्मार्ट शहर बनाने की योजना को पूँजीवादी विकास को द्रुत गति देने एवं विदेशी पूँजी निवेश को बढ़ावा देने की अपनी मंशा के तहत ही ज़ोर-शोर से प्रचारित कर रही है। ग़ौरतलब है कि ये स्मार्ट शहर औद्योगिक कॉरिडोरों के इर्द-गिर्द बसाये जायेंगे। इन स्मार्ट शहरों में हरेक नागरिक को एक पहचान पत्र रखना होगा और उसमें रहने वाले हर नागरिक की गतिविधियों पर सूचना एवं संचार उपकरणों एवं प्रौद्योगिकी की मदद से निगरानी रखी जायेगी। इस योजना के पैरोकार खुलेआम यह बोलते हैं कि निजता का हनन करने वाली ऐसी केन्द्रीयकृत निगरानी इसलिए ज़रूरी है ताकि किसी भी प्रकार की असामान्य गतिविधि पर तुरन्त क़दम उठाये जा सकें। स्पष्ट है कि इस तरह की निगरानी रखने के पीछे उनका मक़सद आम मेहनकश जनता की गतिविधियों पर नियन्त्रण रखना है ताकि वो अमीरों की विलासिता भरी ज़िन्दगी में कोई खलल न पैदा कर सके। इसके अलावा ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि इन शहरों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की मदद से सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी, वे इतनी ख़र्चीली होंगी कि उनका इस्तेमाल करने की कूव्वत केवल उच्च वर्ग एवं उच्च मध्यवर्ग के पास होगी। निम्न मध्यवर्ग और मज़दूर वर्ग इन स्मार्ट शहरों में भी दोयम दर्जे के नागरिक की तरह से नगर प्रशासन की कड़ी निगरानी में अलग घेट्टों में रहने पर मज़बूर होगा।

ऑर्बिट बस काण्ड और बसों में बढ़ती गुण्डागर्दी के विरोध में पूरे पंजाब में विरोध प्रदर्शन

ऑर्बिट बस काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी, पंजाब ने माँग की है कि ऑर्बिट बस कम्पनी के मालिकों पर आपराधिक केस दर्ज हो, ऑर्बिट बस कम्पनी के सारे रूट रद्द कर पंजाब रोडवेज को दिये जायें, पंजाब का गृहमन्त्री सुखबीर बादल जो ऑर्बिट कम्पनी के मालिकों में भी शामिल है इस्तीफ़ा दे, इस मसले पर संसद में झूठा बयान देने वाली केन्द्रीय मन्त्री हरसिमरत कौर बादल भी इस्तीफ़ा दे, समूचे बादल परिवार की जायदाद की जाँच सुप्रीम कोर्ट के जज से करवायी जाये। प्राइवेट बस कम्पनियों द्वारा स्टाफ़ के नाम पर गुण्डे भर्ती करने पर रोक लगाने, बसों की सवारियों ख़ासकर स्त्रियों की सुरक्षा की गारण्टी करने के लिए काले शीशे और पर्दों पर पाबन्दी लगाने, अश्लील गीत, अश्लील फ़िल्में, ऊँचे हॉर्न से होने वाले ध्‍वनि प्रदूषण पर रोक लगाने आदि माँगें भी उठायी गयीं। इसके साथ ही फरीदकोट में ऑर्बिट बस काण्ड के खि़लाफ़ प्रदर्शन कर रहे नौजवान-छात्रों पर लाठीचार्ज व उन्हें हत्या के प्रयास के झूठे आरोपों में जेल में ठूँसने की सख्त निन्दा करते हुए ये केस रद्द करने व जेल में बन्द नौजवानों-छात्रों को रिहा करने की माँग उठायी गयी।

हाशिमपुरा से तेलंगाना और चित्तूर तक भारतीय पूँजीवादी जनवाद के ख़ूनी जबड़ों की दास्तान

यह तो साफ़ ही है कि इतने बड़े फ़र्जी मुकाबले और हत्याकाण्ड निचले स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों के बस की बात नहीं है। इनमें पुलिस, फ़ौज के अतिरिक्त अफ़सरों से लेकर सरकारों में बैठे राजनैतिक नेता शामिल होते हैं। हर हत्याकाण्ड समूचे पूँजीपति वर्ग या फिर कुछ ख़ास पूँजीपतियों के हितों के साथ जुड़ा होता है। हाशिमपुरे के हत्याकाण्ड से लेकर अदालती फ़ैसले तक की दास्तान चीख़-चीख़कर यही बयान कर रही है।

मोगा ऑर्बिट बस काण्ड: राजनीतिक सरपरस्ती तले पल-बढ़ रही गुण्डागर्दी का नतीजा

बादल परिवार ने पंजाब में जो गुण्डागर्दी का माहौल बनाया है उसके कारण रोज़ाना पता नहीं कितनी ही दुखदाई घटनाएँ घटती हैं। इनमें से कुछ ही सामने आती हैं और इनमें से भी कुछेक ही जनता में चर्चा का विषय बनती हैं। 30 अप्रैल को मोगा में घटित हुआ ऑर्बिट बस काण्ड न सिर्फ़ जनता में चर्चा का विषय बना बल्कि इस पर लोगों का गुस्सा भी फूटा और लोग सड़कों पर आये। मज़दूरों, किसानों, नौजवानों, छात्रों, सरकारी मुलाजिमों के संगठनों ने समय की ज़रूरत को समझते हुए इस घटना के आधार पर बादल परिवार की गुण्डागर्दी समेत समूची गुण्डागर्दी, सार्वजनिक बस परिवहन के निजीकरण के खि़लाफ़ काबिले-तारीफ़ संघर्ष छेड़ा है।

‘धर्म की उत्पत्ति व विकास, वर्ग समाज में इसकी भूमिका’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

इस विचार संगोष्ठी में का. कश्मीर ने मुख्य वक्ता के तौर पर बात रखी। उन्होंने विस्तार से बात रखते हुए साबित किया कि समाज के वर्गों में बँटने, यानी शोषकों व शोषितों में बँटने, के साथ ही संगठित धर्म अस्तित्व में आया। उत्पादन शक्तियों के विकास के कारण समाज वर्गों में बँटा, आदिम साम्यवादी समाज की जगह गुलामदारी व्यवस्था ने ली और इसी समय धर्म अस्तित्व में आया।

काम के ज़्यादा दबाव की वजह से दिमागी संतुलन खोता म़जदूर

पिछले साल की गर्मी में काम का इतना अधिक बोझ था कि सोने का कोई ठिकाना नहीं था, न ही खाने-पीने का कोई ढंग का बंदोबस्त और कंपनी के अंदर एक दम घोंटू माहौल था। जिसके चलते मेरी तबियत बहुत बिगड़ गयी थी। इसी दबाव के चलते मेरा दिमागी संतुलन भी बिगड़ गया। मैंने ई.एस.आई. अस्पताल में दवाई करवाई। मगर ई.एस.आई. में सही इलाज नहीं हुआ जिसके चलते मुझे कोई आराम नहीं पहुँचा।

पंजाब में चुनावी पार्टियों की नशा-विरोधी मुहिम का ढोंग

इस व्यवस्था में जहाँ हर चीज़ के केन्द्र में सिर्फ़ मुनाफ़ा है और जहाँ इंसान की ज़रूरतें गौण हो जाती हैं – वहाँ हर वह धन्धा चलाया जाता है जिसमें अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके। भले ही यह पैसा लोगों की लाशें बिछाकर ही क्यों न कमाया जाये। पंजाब में फल-फूल रहा नशे का कारोबार और नशे में डूब रही जवानी इसका जीता-जागता सबूत है। नशा इस व्यवस्था में एक अतिलाभदायक धन्धा है। हर वर्ष सरकार (चाहे किसी भी पार्टी की हो) हज़ारों करोड़ रुपये की शराब लोगों को पिलाकर अपना ख़ज़ाना भरती है। नशीले पदार्थों की तस्करी के रूप में होने वाली कमाई इससे अलग है।

हरियाणा के रोहतक में हुई एक और “निर्भया” के साथ दरिन्दगी

एक तरफ़ तो ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ का ढोल पीटा जाता है, “प्राचीन संस्कृति” का यशोगान होता है लेकिन दूसरी तरफ़ स्त्रियों के साथ बर्बरता के सबसे घृणित मामले यहीं देखने को मिलते हैं। स्त्री विरोधी मानसिकता का ही नतीजा है कि हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या होती है और लड़के-लड़कियों की लैंगिक असमानता बहुत ज़्यादा है। हिन्दू धर्म के तमाम ठेकेदार आये दिन अपनी दिमाग़ी गन्दगी और स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने की अपनी मंशा का प्रदर्शन; कपड़ों, रहन-सहन और बाहर निकलने को लेकर बेहूदा बयानबाज़ियाँ करके करते रहते हैं लेकिन तमाम स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ बेशर्म चुप्पी साध लेते हैं। यह हमारे समाज का दोगलापन ही है कि पीड़ा भोगने वालों को ही दोषी करार दे दिया जाता है और नृशंसता के कर्ता-धर्ता अपराधी आमतौर पर बेख़ौफ़ होकर घूमते हैं। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए, जब हरियाणा के मौजूदा मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर फ़रमा रहे थे कि लड़कियों और महिलाओं को कपड़े पहनने की आज़ादी लेनी है तो सड़कों पर निर्वस्त्र क्यों नहीं घूमती!