Category Archives: समाज

हाशिमपुरा से तेलंगाना और चित्तूर तक भारतीय पूँजीवादी जनवाद के ख़ूनी जबड़ों की दास्तान

यह तो साफ़ ही है कि इतने बड़े फ़र्जी मुकाबले और हत्याकाण्ड निचले स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों के बस की बात नहीं है। इनमें पुलिस, फ़ौज के अतिरिक्त अफ़सरों से लेकर सरकारों में बैठे राजनैतिक नेता शामिल होते हैं। हर हत्याकाण्ड समूचे पूँजीपति वर्ग या फिर कुछ ख़ास पूँजीपतियों के हितों के साथ जुड़ा होता है। हाशिमपुरे के हत्याकाण्ड से लेकर अदालती फ़ैसले तक की दास्तान चीख़-चीख़कर यही बयान कर रही है।

मोगा ऑर्बिट बस काण्ड: राजनीतिक सरपरस्ती तले पल-बढ़ रही गुण्डागर्दी का नतीजा

बादल परिवार ने पंजाब में जो गुण्डागर्दी का माहौल बनाया है उसके कारण रोज़ाना पता नहीं कितनी ही दुखदाई घटनाएँ घटती हैं। इनमें से कुछ ही सामने आती हैं और इनमें से भी कुछेक ही जनता में चर्चा का विषय बनती हैं। 30 अप्रैल को मोगा में घटित हुआ ऑर्बिट बस काण्ड न सिर्फ़ जनता में चर्चा का विषय बना बल्कि इस पर लोगों का गुस्सा भी फूटा और लोग सड़कों पर आये। मज़दूरों, किसानों, नौजवानों, छात्रों, सरकारी मुलाजिमों के संगठनों ने समय की ज़रूरत को समझते हुए इस घटना के आधार पर बादल परिवार की गुण्डागर्दी समेत समूची गुण्डागर्दी, सार्वजनिक बस परिवहन के निजीकरण के खि़लाफ़ काबिले-तारीफ़ संघर्ष छेड़ा है।

‘धर्म की उत्पत्ति व विकास, वर्ग समाज में इसकी भूमिका’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

इस विचार संगोष्ठी में का. कश्मीर ने मुख्य वक्ता के तौर पर बात रखी। उन्होंने विस्तार से बात रखते हुए साबित किया कि समाज के वर्गों में बँटने, यानी शोषकों व शोषितों में बँटने, के साथ ही संगठित धर्म अस्तित्व में आया। उत्पादन शक्तियों के विकास के कारण समाज वर्गों में बँटा, आदिम साम्यवादी समाज की जगह गुलामदारी व्यवस्था ने ली और इसी समय धर्म अस्तित्व में आया।

काम के ज़्यादा दबाव की वजह से दिमागी संतुलन खोता म़जदूर

पिछले साल की गर्मी में काम का इतना अधिक बोझ था कि सोने का कोई ठिकाना नहीं था, न ही खाने-पीने का कोई ढंग का बंदोबस्त और कंपनी के अंदर एक दम घोंटू माहौल था। जिसके चलते मेरी तबियत बहुत बिगड़ गयी थी। इसी दबाव के चलते मेरा दिमागी संतुलन भी बिगड़ गया। मैंने ई.एस.आई. अस्पताल में दवाई करवाई। मगर ई.एस.आई. में सही इलाज नहीं हुआ जिसके चलते मुझे कोई आराम नहीं पहुँचा।

पंजाब में चुनावी पार्टियों की नशा-विरोधी मुहिम का ढोंग

इस व्यवस्था में जहाँ हर चीज़ के केन्द्र में सिर्फ़ मुनाफ़ा है और जहाँ इंसान की ज़रूरतें गौण हो जाती हैं – वहाँ हर वह धन्धा चलाया जाता है जिसमें अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके। भले ही यह पैसा लोगों की लाशें बिछाकर ही क्यों न कमाया जाये। पंजाब में फल-फूल रहा नशे का कारोबार और नशे में डूब रही जवानी इसका जीता-जागता सबूत है। नशा इस व्यवस्था में एक अतिलाभदायक धन्धा है। हर वर्ष सरकार (चाहे किसी भी पार्टी की हो) हज़ारों करोड़ रुपये की शराब लोगों को पिलाकर अपना ख़ज़ाना भरती है। नशीले पदार्थों की तस्करी के रूप में होने वाली कमाई इससे अलग है।

हरियाणा के रोहतक में हुई एक और “निर्भया” के साथ दरिन्दगी

एक तरफ़ तो ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ का ढोल पीटा जाता है, “प्राचीन संस्कृति” का यशोगान होता है लेकिन दूसरी तरफ़ स्त्रियों के साथ बर्बरता के सबसे घृणित मामले यहीं देखने को मिलते हैं। स्त्री विरोधी मानसिकता का ही नतीजा है कि हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या होती है और लड़के-लड़कियों की लैंगिक असमानता बहुत ज़्यादा है। हिन्दू धर्म के तमाम ठेकेदार आये दिन अपनी दिमाग़ी गन्दगी और स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने की अपनी मंशा का प्रदर्शन; कपड़ों, रहन-सहन और बाहर निकलने को लेकर बेहूदा बयानबाज़ियाँ करके करते रहते हैं लेकिन तमाम स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ बेशर्म चुप्पी साध लेते हैं। यह हमारे समाज का दोगलापन ही है कि पीड़ा भोगने वालों को ही दोषी करार दे दिया जाता है और नृशंसता के कर्ता-धर्ता अपराधी आमतौर पर बेख़ौफ़ होकर घूमते हैं। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए, जब हरियाणा के मौजूदा मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर फ़रमा रहे थे कि लड़कियों और महिलाओं को कपड़े पहनने की आज़ादी लेनी है तो सड़कों पर निर्वस्त्र क्यों नहीं घूमती!

तमाम छात्रों और मज़दूरों को ग़ैर-राजनीतिक बनाकर मुनाफ़े के लिए खटने वाला गुलाम नहीं बनाया जा सकता

राजनीति पर अपनी इज़ारेदारी बनाये बैठे लोगों को लगता है कि यदि देश की युवा आबादी को राजनीतिक रूप से उदासीन और अशिक्षित कर दिया जायेगा तो वे बेरोज़गार होकर काम की तलाश में भटकते रहेंगे, या किसी कारख़ाने में या किसी ऑफ़िस में किसी भी शर्त पर काम करने लगेंगे और कुछ मुट्ठीभर देशी-विदेशी पूँजीवादी-साम्राज्यवादी मुनाफ़ाखोरों को देश की प्राकृतिक तथा मानव सम्पदा को खुले आम लूटते हुए देखते रहेंगे। एक सीमा तक वर्तमान प्रचार तन्त्र मज़दूरों और नौजवानों के बीच लम्पट और कूपमण्डूक संस्कृति के माध्यम से ऐसा करने में सफल भी हो रहा है। राजनीति में हिस्सा लेने के नाम पर कुछ राजनीतिक पार्टियाँ “मिस-कॉल” करके सदस्यता दे रही हैं, लेकिन मिस-कॉल करके समाज के भविष्य का ठेका किसी और को दे देना राजनीति नहीं है, बल्कि देश की मेहनतकश जनता के साथ एक मज़ाक़ है। इन सच्चाइयों के बीच भी यह सम्भव नहीं है कि देश की व्यापक आबादी को उसकी अपनी बदहाली के वास्तविक कारण के बारे में हमेशा के लिए अँधेरे में धकेले रखा जाये।

पुलिसकर्मियों में व्याप्त घनघोर स्त्री-विरोधी विचार

समाज में स्त्री विरोधी विचार वैसे तो हमेशा ही मौजूद रहते हैं, पर कभी-कभी वे भद्दे और वीभत्स रूप में अभिव्यक्त हो जाते हैं। यही कृष्ण बलदेव की अभिव्यक्तियों में दिखा। इन महोदय के अनुसार – “आजकल की लड़कियाँ बिगड़ रही हैं, फ़िल्में देखने जाती हैं।” आगे उसने कहा – “यौन उत्पीड़न के अधिकतर मामले तो फ़र्जी होते हैं, महिलाओं द्वारा लगाये गये अधिकतर आरोप तो बेबुनियाद होते हैं और इनसे हमारा काम बढ़ जाता है।” एक केस पर चर्चा के दौरान इन जनाब का कहना था, “इस महिला के चारित्रिक पतन की हद देखिये, देवता तुल्य अपने ससुर पर मनगढ़न्त आरोप लगाकर उन्हें परेशान कर रही है, बेचारे रोज़ चौकी के चक्कर काट रहे हैं।”

ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड – गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ के खि़लाफ़ विशाल लामबन्दी, जुझारू संघर्ष

लुधियाना के ढण्डारी इलाक़े में एक साधारण परिवार की 16 वर्षीय बेटी और बारहवीं कक्षा की छात्र शहनाज़ को राजनीतिक शह प्राप्त गुण्डों द्वारा अगवा करके सामूहिक बलात्कार करने, मुक़दमा वापस लेने के लिए डराने-धमकाने, मारपीट और आखि़र घर में घुसकर दिन-दिहाड़े मिट्टी का तेल डालकर जलाये जाने के घटनाक्रम के खि़लाफ़ पिछले दिनों शहर के लोगों, ख़ासकर औद्योगिक मज़दूरों का आक्रोश फूट पड़ा। इंसाफ़पसन्द संगठनों के नेतृत्व में लामबन्द होकर लोगों ने ज़बरदस्त जुझारू आन्दोलन किया और दोषी गुण्डों को सज़ा दिलाने के लिए संघर्ष जारी है। शहनाज़ और उसके परिवार के साथ बीता यह दिल कँपा देनेवाला घटनाक्रम समाज में स्त्रियों और आम लोगों की बदतर हालत का एक प्रतिनिधि उदाहरण है। मामले को दबाने और अपराधियों को बचाने की पुलिस-प्रशासलन से लेकर पंजाब सरकार तक की तमाम कोशिशों के बावजूद बिगुल मज़दूर दस्ता व अन्य जुझारू संगठनों के नेतृत्व में हज़ारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर जुझारू लड़ी।

स्त्रियों, मज़दूरों, मेहनतकशों को अपनी रक्षा के लिए ख़ुद आगे आना होगा

अधिकतर परिवार छेड़छाड़, बलात्कार, अगवा आदि की घटनाओं को बदनामी के डर से दबा जाते हैं। लेकिन पीड़ित परिवार ने ऐसा नहीं किया। तमाम धमकियों, अत्याचारों के बावजूद भी लड़ाई जारी रखी है। पीड़ित लड़की और उसके परिवार का साहस सभी स्त्रियों, ग़रीबों और आम लोगों के लिए मिसाल है। इंसाफ़ की इस लड़ाई में मज़दूरों और अन्य आम लोगों धर्म, जाति, क्षेत्र से ऊपर उठकर जो एकजुटता दिखाई है वह अपने आप में एक बड़ी बात है। कई धार्मिक कट्टरपंथी, चुनावी दलाल नेता, पुलिस-प्रशासन के पिट्ठू छुट्टभैया नेता इस मामले को एक ‘‘कौम’’ का मसला बनाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन जनता ने इनकी एक न चलने दी। 14 दिसम्बर को रोड जाम करके किये गये प्रदर्शन के दौरान पंजाबी भाषी लोगों का भी काफी समर्थन हासिल हुआ। स्त्रियों सहित आम जनता को अत्याचारों का शिकार बना रहे गुण्डा गिरोहों और जनता को भेड़-बकरी समझने वाले पुलिस-प्रशासन, वोट-बटोरू नेताओं और सरकार के गठबन्धन को मज़दूरों-मेहनतकशों की फौलादी एकजुटता ही धूल चटा सकती है।