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क्या देश अमीरों के टैक्स के पैसे से चलता है? नहीं!

अक्सर उच्च मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग द्वारा यह कहा जाता है कि देश उनके पैसे से चल रहा है। वही लोग हैं जो सरकार को टैक्स देते हैं जिससे सारे काम होते हैं, ग़रीब लोग तो केवल सब्सिडी, मुफ़्त सुविधाओं आदि के रूप में उन टैक्स के पैसों को उड़ाते हैं। इस प्रकार ग़रीब आम जनता देश पर बोझ होती है। दरअसल यह एक बड़ा झूठ है जो काफ़ी व्यापक रूप से लोगों में फैला हुआ है। अगर आँकड़ों के हिसाब से देखा जाये तो कहानी इसकी उल्टी ही है। सरकार जो टैक्स वसूलती है उसका बड़ा हिस्सा इसी ग़रीब आम जनता की जेबों से आता है। आइए देखते हैं कैसे।

तेल की लगातार बढ़ती क़ीमत : वैश्विक आर्थिक संकट और मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों का नतीजा

मोदी सरकार तेल की अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में घटती-बढ़ती क़ीमतों से इतर हमें बेइन्तहा लूट रहे हैं और इस लूट को वैध क़रार देने के लिए मोदी का गोदी मीडिया, भाजपा का आईटी सेल और संघी जमकर झूठ का कीचड़ फैला रहे हैं। परन्तु सच यह है कि संघी सरकार कॉरपोरेट घरानों के तलवे चाट रही है और देश को लूट और बर्बाद कर इन्हें आबाद कर रही है। इस लूटतन्त्र और झूठतन्त्र से सत्यापित करने के प्रयास को हमें बेनकाब करते रहना होगा।

वाराणसी में फ्लाईओवर गिरने से कम से कम 20 लोगों की मौत

वस्तुतः इन घटनाओं की आम वजह सरकार, अफ़सरों और ठेकेदार की लूट की हवस है। तमाम सूत्रों से पता चला कि सेतु निगम ने इस पुल का काम मन्त्रियों के क़रीबियों को बाँटा जिस पर 14% कमीशन लिया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सेतु निगम (यही संस्था इस पुल का निर्माण कर रही है) के प्रबन्ध निदेशक राजन मित्तल का इस हादसे के बाद बयान आया कि पुल आँधी की वजह से गिरा। यह वही व्यक्ति है जिस पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, और इसके खि़लाफ़ जाँच के आदेश भी हुए हैं। लेकिन भाजपा सरकार ने न सिर्फ़ इस आदमी को सेतु निगम का अध्यक्ष बनाया, बल्कि इसे उत्तर प्रदेश निर्माण निगम का अतिरिक्त भार भी सौंप दिया। इतना ही नहीं, हादसे के बाद गिरे हुए कंक्रीट के बीम को उठाने के लिए सेतु निगम ने कम्प्रेशर क्रेन तक उपलब्ध नहीं करवायी, जिस वजह से बचाव का काम बहुत देर से शुरू हो पाया और इसी वजह से कई जानें जो बच सकती थी, वे नहीं बचायी जा सकीं।

मोदी सरकार के चार साल : अच्छे दिनों का सपना दिखाकर लूट-खसोट के नये कीर्तिमान

संघ परिवार की इस बढ़ी ताक़त के साथ ही साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं में भी तेज़ वृद्धि हुई है। संघ परिवार ही नहीं बल्कि इसे सीधे या परोक्ष ढंग से जुड़े अनेक हिन्दुत्ववादी कट्टरपन्थी संगठन साम्प्रदायिक नफ़रत फैला रहे हैं और हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रहै हैं। विभिन्न पार्टियों की सरकारें व पुलिस प्रशासन भी इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की बजाय इनका साथ देते हैं। भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकारें हिन्दुत्ववादी कट्टरपन्थियों को हवा दे रही हैं। पिछले चार वर्ष में बर्बर साम्प्रदायिक हिंसा के ज़्यादातर मामले में दोषियों को सज़ा नहीं हुई, उल्टे उन्हें बचाने की कोशिश की गयी।

माओवादी चीन में रोज़मर्रा का जीवन

बेशक यह एक पूँजीवादी समाज में रह रहे लोगों के लिए अचम्भा था, उनके ख़्याल से परे की बात थी। लेकिन यह महज़ ‘सपना’ नहीं था जैसा कि ‘न्यूज़वीक’ ने लिखा, बल्कि यह हक़ीकत थी या यूँ कहा जाये कि मानव मुक्ति के सपने को अमली जामा पहनाने की की गयी एक बड़ी कोशिश थी। और अपनी इन्हीं कोशिशों के चलते चीनी लोगों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा और नेपोलियन की इस उक्ति को सच कर दिखाया कि, “चीनी धरती को सोने दो, क्योंकि यदि वह जाग गयी तो पूरी दुनिया को हिलाकर रख देगी।” बकौल इंशा –

हरियाणा में धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों की उड़ रही धज्जियाँ

70 साल की आज़ादी के बाद भी जिस देश (तमाम प्राकृतिक साधन-सम्पन्न) में क़रीब 30 करोड़ नौजवान बेरोज़गार हों और वहाँ रोज़गार कोई मुद्दा ही ना हो और मीडिया दिन-रात हिन्दू-मुस्लिम की फ़ालतू बहस में टाइम पास करता रहे, आये दिन किसान आत्महत्या करते हों, आधी से ज़्यादा महिलाओं में ख़ून की कमी हो तो इस देश के नौजवानों को तय करना है कि वे कैसा समाज चाहते हैं!

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बदहाली के विरुद्ध तीन जनसंगठनों का राज्यव्यापी अभियान

प्रदेश में सरकारें आती-जाती रही हैं लेकिन आबादी के अनुपात में रोज़गार के अवसर बढ़ने के बजाय कम होते जा रहे हैं। सरकारी नौकरियाँ नाममात्र के लिए निकल रही हैं, नियमित पदों पर ठेके से काम कराये जा रहे हैं और ख़ाली होने वाले पदों को भरा नहीं जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को बन्द करने या निजी हाथों में बेचने का सिलसिला जारी है। भारी दबाव में जो भर्तियाँ घोषित भी होती हैं, उन्हें तरह-तरह से वर्षों तक लटकाये रखा जाता है, भर्ती परीक्षाएँ होने के बाद भी पास होने वाले उम्मीदवारों को नियुक्तियाँ नहीं दी जातीं! करोड़ों युवाओं के जीवन का सबसे अच्छा समय भर्तियों के आवेदन करने, कोचिंग व तैयारी करने, परीक्षाएँ और साक्षात्कार देने में चौपट हो जाता है, इनके आर्थिक बोझ से परिवार की कमर टूट जाती है।

बर्बर ज़ायनवादियों ने ग़ाज़ा में करवाया एक और क़त्लेआम – फ़िलिस्तीनियों‍ ने पेश की बहादुराना प्रतिरोध की एक और मिसाल

अत्याधुनिक हथियारों से लैस इज़रायली सेना का मुक़बला ग़ाज़ावासी पत्थरों और गुलेल से कर रहे हैं और इस प्रक्रिया में बहादुराना प्रतिरोध की एक अद्भुत मिसाल पेश कर रहे हैं। इस बहादुराना संघर्ष को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से समर्थन मिल रहा है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और अफ़्रीका से लेकर अफ़्रीका तक में ग़ाज़ा के समर्थन और इज़रायल के विरोध में रैलियाँ निकल रही हैं और फ़िलिस्तीनियों का संघर्ष स्थानीय न रहकर वैश्विक रूप धारण कर चुका है। कई देशों में इज़रायल के बहिष्कार का आन्दोलन गति पकड़ रहा है। ऐसे में स्पष्ट है कि बर्बर ज़ायनवादी ग़ाज़ा को नेस्तनाबूद करने के लिए जितना ही ज़्यादा बलप्रयोग करेंगे उतनी ही तेज़ी से उनके ख़िलाफ़ जारी मुहिम दुनिया भर में फैलेगी।

कर्नाटक चुनाव और इक्कीसवीं सदी के फासीवाद की अश्लील राजनीति के मुज़ाहरे

ये पूरा घटनाक्रम इक्कीसवीं सदी में फासीवादी उभार की चारित्रिक विशेषता है। उन्हें कोई असाधारण क़ानून बनाने और संसदीय जनतन्त्र के खोल को ही उठाकर फेंक देने की कोई ज़रूरत नहीं है। वे नाज़ियों की तमाम हरकतों को (नये ढंग से) इस खोल को छोड़े बिना ही कर सकते हैं। ऊपरी आवरण बना हुआ है लेकिन उसकी अन्तर्वस्तु बदल गयी है। भारत में हिन्दुत्व फासीवाद ऐसा ही रहा है, और यूरोप के कुछ देशों में फासीवाद की अन्य धाराएँ भी इसी तरह से एक लम्बी प्रक्रिया में ‘’नीचे से तूफ़ान’’ लाने में जुटी हुई हैं जिससे उन्हें समाज के पोर-पोर में जगह बनाने, राज्य तन्त्र में गहरी घुसपैठ करने और इस तरह बुर्जुआ संसदीय जनतन्त्र के ढाँचे को छोड़े बिना फासीवादी उभार लाने का मौका मिल रहा है।

दुनिया में सबसे अधिक बेरोज़गारों वाला देश बना भारत

देश पर राज कर रहे जुमला-नरेशों की बातों पर मत जाइये। कौवा कान ले गया की तर्ज़ पर कोई किसी के ख़िलाफ़ आपको भड़का दे तो आँखों पर पट्टी बाँधकर आग में कूदने मत लगिये। देश-समाज और अपनी ज़िन्दगी की असली तस्वीर को पहचानिये और असली सवालों पर लड़ने की तैयारी करिये। वरना कल तक बचाने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं!