Category Archives: आन्‍दोलन : समीक्षा-समाहार

गोरखपुर में मज़दूर आन्दोलन की शानदार जीत

आज के दौर में जब कदम-कदम पर मज़दूरों को मालिकों और शासन-प्रशासन के गँठजोड़ के सामने हार का सामना करना पड़ रहा है, गोरखपुर के मज़दूरों की यह जीत बहुत महत्वपूर्ण है। इसने दिखा दिया है कि अगर मज़दूर एकजुट रहें, एक जगह लड़ रहे मज़दूरों के समर्थन में मज़दूरों की व्यापक आबादी एकजुटता का सक्रिय प्रदर्शन करे, विश्वासघातियों और दलालों की दाल न गलने दी जाये और एक कुशल नेतृत्व की अगुवाई में साहस तथा सूझबूझ से पूँजीपतियों और प्रशासन की सभी चालों का मुकाबला किया जाये तो इस कठिन समय में भी मज़दूर छोटी-छोटी जीतें हासिल करते हुए बड़ी लड़ाई में उतरने की तैयारी कर सकते हैं। इस आन्दोलन ने देशभर में, विशेषकर मज़दूर संगठनों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है और इससे गोरखपुर ही नहीं, पूरे पूर्वी प्रदेश में मज़दूर आन्दोलन का नया एजेण्डा सेट करने की शुरुआत हो गयी है। इस आन्दोलन के सबकों और इसके दौरान सामने आये कुछ ज़रूरी सवालों पर आगे भी चर्चा जारी रहेगी।

दिल्ली मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की सफल हड़ताल

‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ ने घोषणा की कि जब तक कर्मचारियों की जायज माँगें पूरी नहीं हो जाती तब तक अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगी। मेट्रो फीडर की इस हड़ताल को प्रिण्ट व इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी कवर किया। मीडिया में खबरें आने के बाद डी.एम.आर.सी. अपनी जान बचाने के लिए कर्मचारियों पर पुलिस प्रशासन से दबाव डलवाने लगा और ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ को लांछित और बदनाम करने की पुरजोर कोशिश करने लगा। परन्तु मेट्रो फीडर के चालकों-परिचालकों की अटूट एकजुटता और एकता के आगे ये तमाम चालबाजियाँ और हथकण्डे धरे के धरे रह गये।

जब एक हारी हुई लड़ाई ने जगाई मजदूरों में उम्मीद और हौसले की लौ…

इस छोटे से संघर्ष ने ही यह दिखा दिया कि हमारे देश में लोकतन्त्र की असलियत क्या है! मजदूरों को उनके हक से वंचित करने के लिए मिल मालिक ने साम-दाम-दण्ड-भेद की हर चाल चली। पहले ही दिन जब 4 अक्टूबर की शाम को मजदूर आन्दोलन की नोटिस देने के लिए शाहाबाद डेयरी थाने में गये तो मालिक के इशारे पर वहाँ पहले से तैयार पुलिस वालों ने उन पर हमला किया और सभी मजदूरों तथा साथ गये ‘बिगुल मजदूर दस्ता’ के दो साथियों को बुरी तरह पीटा। लेकिन जब मजदूर अपनी बात पर अड़े रहे तो आखिरकार पुलिस को नोटिस स्वीकार करना पड़ा। इसके बाद भी लगभग हर दिन धरना स्थल पर पुलिस के लोग आकर मजदूरों को डराने-धमकाने की कोशिश करते थे, लेकिन मजदूरों की एकजुटता के आगे उनकी एक न चली। मजदूरों ने 5 अक्टूबर को धरने पर बैठने से पहले ही डी.एल.सी. कार्यालय में ज्ञापन देकर सारी स्थिति से उन्हें अवगत करा दिया था लेकिन श्रम विभाग के अधिकारी केवल काग़जी कार्रवाई ही करते रहे। 8 अक्टूबर को उपश्रमायुक्त (डीएलसी) के कार्यालय में मालिक के साथ वार्ता रखी गयी थी, लेकिन मालिक ने चिट्ठी भिजवा दी कि ये मजदूर उसके कर्मचारी ही नहीं हैं, जबकि ये मजदूर 3 से 6 साल तक से उस मालिक के लिए काम रहे हैं। इन मजदूरों की कमरतोड़ मेहनत के दम पर मालिक ने करोड़ों का मुनाफा बटोरा है, लेकिन मजदूरों को उनका थोड़ा-सा जायज हक देने से बचने के लिए उसने एक मिनट में उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया।

रामपुर-चंदौली के पाँच बोरा कारखानों के मजदूरों के आन्दोलन की आंशिक जीत

इलाके का थानेदार सपा शासन में मुलायम सिंह यादव का खास रहा बताया जाता है और एनकाउण्टर स्पेशलिस्ट के रूप में कुख्यात है। 11 अक्टूबर को वह अचानक पुलिस फोर्स के साथ फैक्टरी गेट पर पहुँचा और बिगुल मजदूर दस्ता के साथियों को जीप में बैठाकर कुछ दूर ले गया। उसके बाद उसने फैक्‍ट्री गेट पर मिल मालिकों को बुलाकर आनन-फानन में मजदूरों के सामने समझौते की घोषणा करा दी। इसके अनुसार मजदूरों की मजदूरी 10 प्रतिशत बढ़ायी जायेगी और सभी मजदूरों को कम्पनी का आई-कार्ड दिया जायेगा। तालमेल की कमी और नेताओं की गैर-मौजूदगी से फैले भ्रम तथा पुलिसिया आतंक के कारण अधिकांश मजदूर तो उसी समय फैक्टरी में चले गये लेकिन करीब 60-70 मजदूर डटे रहे। मजबूरन पुलिस को ‘बिगुल’ के साथियों को वापस लेकर आना पड़ा। मजदूरों के बीच यह फैसला किया गया कि फिलहाल यहाँ की स्थिति में इस समझौते को मानकर आन्दोलन समाप्त करने के सिवा कोई चारा नहीं है। अब पूरी तैयारी के बाद संगठित तरीके से संघर्ष छेड़ना होगा। मालिकान साम-दाम-दण्ड-भेद से किसी तरह मजदूरों को झुकाने में कामयाब हो गये लेकिन इस हार से मिले सबकों से सीखकर मजदूरों ने भविष्य की निर्णायक लड़ाई के लिए कमर कसकर तैयारी शुरू कर दी है।

गोरखपुर में मजदूरों की एकजुटता के आगे झुके मिल मालिक

इस आन्दोलन ने दिखा दिया कि अगर मजदूर एकजुट रहें तो पूँजीपति-प्रशासन-नेताशाही की मिली-जुली ताकत भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। उल्टे इन शक्तियों का जनविरोधी चेहरा बेनकाब हो गया। प्रशासन ने मजदूरों को धमकाने और आतंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एल.आई.यू. और एस.ओ.जी. के लोग फैक्टरी इलाके में जाकर लगातार पूछताछ करते थे – तुम्हारे ये अगुवा नेता कहाँ से आये हैं। पुलिस अधिकारियों द्वारा लगातार धमकी देना कि मजदूरों को भड़काना बनद करो और जिला छोड़कर चले जाओ वरना एनकाउण्टर या जिलाबदर करने में देर नहीं लगेगी। मालिक ने भी बदहवासी में बहुत कुछ योजनाएँ बनायीं, लेकिन मजदूरों को एकजुट देखकर कुछ करने की हिम्मत नहीं पड़ी। कम्पनी के एक ठेकेदार की पत्नी ने कुछ महिला मजदूरों को बताया कि अपने नेता लोगों को सावधन कर दो कि सूरज डूबने के बाद बरगदवा चौराहा की ओर मत आयें, उसने अपने पति के मुँह से सुना था कि आज नेताओं का ”इन्तजाम” कर दिया जायेगा। ऐसी हर कोशिश के साथ मजदूरों की एकता और मजबूत होती गयी। मॉडर्न उद्योग के 51 दिन चले आन्दोलन के दौरान अंकुर उद्योग लि., वी.एन. डायर्स धगा व कपड़ा मिल तथा जालानजी पॉलीटेक्स के मजदूर लगातार साथ में जमे रहे। अंकुर उद्योग के मजदूरों ने आटा इकट्ठा करके दिया तो सारी फैक्टरियों के मजदूरों ने चन्दा लगाकर सहयोग दिया। जब 10 बजे रात को अन्य कम्पनियों की शिफ्ट छूटती थी तो रात को ही 500 से ज्यादा मजदूरों की मीटिंग होती थी, मजदूरों की वर्ग एकता जिन्दाबाद का नारा लगता था।

बरगदवा, गोरखपुर में दो कारखानों के मज़दूरों का डेढ़ माह से जारी जुझारू आन्दोलन निर्णायक मुकाम पर

मज़दूर एकदम एकजुट हैं और किसी भी उकसावे में आये बिना धीरज और हौसले के साथ मैदान में डटे हुए हैं। कुछ ही दिन पहले बरगदवा के तीन कारखानों के मज़दूरों की जीत ने उनमें यह भरोसा पैदा किया है कि फौलादी एकजुटता और सूझबूझ के दम पर ही जीत हासिल की जा सकती है। मालिक की अघोषित तालाबन्दी वाले दिन से ही फैक्ट्री गेट पर लगातार 400-500 मज़दूर सुबह-शाम मीटिंग करते हैं। फैक्ट्री में काम करने वाली करीब 25 महिलाएँ पूरे जोश के साथ आन्दोलन के हर कदम में शिरकत कर रही हैं। अपने आन्दोलन से अनेक माँगें मनवाने में कामयाब हुए बरगदाव के तीन कारखानों – अंकुर उद्योग, वी.एन डायर्स धागा मिल एवं कपड़ा मिल के मज़दूर भी अपने संघर्षरत मज़दूर भाइयों के साथ एकजुट हैं और हर मीटिंग, जुलूस और धरने में उनके प्रतिनिधि शामिल होते हैं। मज़दूर आन्दोलन के बिखराव के इस दौर में गोरखपुर के मज़दूरों की यह बढ़ती एकजुटता हर इलाके के मज़दूरों को राह दिखा रही है। अगर मज़दूर अपने बीच पैदा किये गये तरह-तरह के बँटवारों और फूट-बिखराव को दूर करके एकजुट हो गये तो कुछेक आन्दोलनों में तात्कालिक असफलता से भी उनकी हार नहीं होगी। मज़दूरों की व्यापक एकजुटता की ताकत के सामने मालिकों और सरकार को झुकना ही पड़ेगा।

गोरखपुर में तीन कारखानों के मजदूरों के एकजुट संघर्ष की शानदार जीत

गोरखपुर के तीन कारखानों के मज़दूरों ने अपने एकजुट संघर्ष से मालिकों को झुकाकर अपनी सभी प्रमुख माँगें मनवाकर एक शानदार जीत हासिल की है। अंकुर उद्योग लि. की धागा मिल, वी.एन. डायर्स एण्ड प्रोसेसर्स की धागा मिल और इसी की कपड़ा मिल के करीब बारह सौ मजदूरों की इस जीत का महत्‍व इसलिए और भी ज्यादा है क्योंकि यह ऐसे समय में हासिल हुई है, जब मजदूरों को लगातार पीछे धकेला जा रहा है और ज्यादातर जगहों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बेहद पिछड़े इलाके में मजदूरों के इस सफल संघर्ष ने यह दिखा दिया है कि अगर मजदूर एकजुट रहें, भ्रष्ट, धन्धेबाज ट्रेड यूनियन नेताओं के बहकावे में न आयें और मालिक-पुलिस-प्रशासन-नेताशाही की धमकियों और झाँसों के असर में आये बिना अपनी लड़ाई को सुनियोजित ढंग से लड़ें तो अपने बुनियादी अधिकारों की लड़ाई में ऐसी जीतें हासिल कर सकते हैं।

मई दिवस अनुष्ठान नहीं, संकल्पों को फौलादी बनाने का दिन है!

भारत के अधिकांश कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी ग्रुपों-संगठनों के कमज़ोर विचारधारात्मक आधार, ग़लत सांगठनिक कार्यशैली और ग़लत कार्यक्रम पर अमल की आधी-अधूरी कोशिशों के लम्बे सिलसिले ने आज उन्हें इस मुकाम पर ला खड़ा किया है कि उनके सामने पार्टी के पुनर्गठन का नहीं, बल्कि नये सिरे से निर्माण का प्रश्न केन्द्रीय हो गया है। चीजें कभी अपनी जगह रुकी नहीं रहतीं। वे अपने विपरीत में बदल जाती हैं आज अव्वल तो विचारधारा और कार्यक्रम के विभिन्न प्रश्नों पर बहस-मुबाहसे से एकता कायम होने की स्थिति ही नहीं दिखती और यदि यह हो भी जाये तो एक सर्वभारतीय क्रान्तिकारी सर्वहारा पार्टी नहीं बन सकती क्योंकि कुल मिलाकर, घटक संगठनों-ग्रुपों के बोल्शेविक चरित्र पर ही सवाल उठ खड़ा हुआ है। आज भी क्रान्तिकारी कतारों का सबसे बड़ा हिस्सा मा-ले ग्रुपों-संगठनों के तहत ही संगठित है। यानी कतारों का कम्पोज़ीशन (संघटन) क्रान्तिकारी है, लेकिन नीतियों का कम्पोज़ीशन (संघटन) शुरू से ही ग़लत रहा है और अब उसमें विचारधारात्मक भटकाव गम्भीर हो चुका है। इन्हीं नीतियों के वाहक नेतृत्व का कम्पोज़ीशन ज़्यादातर संगठनों में आज अवसरवादी हो चुका है। इस नेतृत्व से ‘पालिमिक्स’ के ज़रिये एकता के रास्ते पार्टी-पुनर्गठन की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

मैगपाई की गुण्डागर्दी के खि़लाफ़ मज़दूरों का जुझारू संघर्ष

निकाले गये रामराज, सलाउद्दीन, जोगिन्दर, गजेन्द्र, मिण्टू, प्रेमपाल, पप्पू महतो और रिषपाल आदि मज़दूरों के समर्थन में इसी फ़ैक्ट्री के तथा कुछ अन्य फ़ैक्ट्रियों के 50-60 मज़दूरों ने एकजुट होकर फ़ैक्ट्री गेट के सामने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। मामले को बढ़ता देखकर 6-7 दिन बाद मालिक ने 26 दिसम्बर 2008 को संजय तथा सन्तोष को बात करने के लिए बुलाया। अन्दर आने पर कारख़ाने का गेट बन्द करके मालिक के गुण्डे सन्तोष और संजय को मारने-पीटने और धमकाने लगे कि ज़्यादा नेता बनोगे तो भट्ठी में ज़िन्दा जला देंगे। संजय तो किसी तरह फ़ैक्ट्री की दीवार लाँघकर बाहर भाग आया जबकि सन्तोष को मालिक के गुण्डे पकड़ कर अन्दर मारपीट करने लगे। संजय द्वारा घटना की जानकारी मिलते ही मज़दूर नारे लगाते हुए पहले गेट पर इकट्ठे हुए फिर पास के थाने में एफआईआर दर्ज कराने भागे। वहाँ पुलिस वालों ने इसे दिखावटी रजिस्टर पर दर्ज कर लिया और मज़दूरों को धमकी के अन्दाज़ में हिदायत दी कि “शोर न करें” और फ़ैक्ट्री के पास जाकर चुपचाप खड़े हो जायें। मज़दूरों के पुनः फ़ैक्ट्री पहुँचने के बाद पुलिस वाले आये और मालिक के खि़लाफ़ कोई कार्रवाई करने के बजाय मसीहाई अन्दाज में यह कहते हुए फ़ैक्ट्री के अन्दर घुस गये कि शोर-शराबा मत करो और कि वे (पुलिसवाले) मालिक की कोई मदद नहीं करेंगे। मामले को उग्र होता देख मालिक के गुण्डों ने खुद ही सन्तोष को छोड़ दिया।