‘पूँजी’ के साहित्यिक मूल्य के बारे में
‘पूँजी’ में मार्क्स अपने को ललित साहित्य का श्रेष्ठ सर्जक सिद्ध करते हैं। रचना, संतुलन और प्रतिपादन के यथातथ्य तर्क की दृष्टि से यह एक “कलात्मक समष्टि” है। शैली और साहित्यिक मूल्य की दृष्टि से भी यह एक श्रेष्ठ कृति है जो गहन सौंदर्यबोधी आनंद की अनुभूति देती है। व्यंग्य और परिहास की जो विरल प्रतिभा मार्क्स के ‘पोलेमिकल’ और अखबारी लेखों में अपनी छटा बिखेरती थी, वह ‘पूँजी’ में और उभरकर सामने आई। मूल्य के रूपों, माल-अंधपूजा और पूंजीवादी संचय के सार्विक नियम को स्पृहणीय स्पष्टता और जीवन्तता के साथ विश्लेषित और प्रतिपादित करते हुए मार्क्स ने अपने अनूठे व्यंग्य और परिहास से विषय को बेहद मज़ेदार बना दिया।