रहे-सहे श्रम अधिकारों के सफ़ाये की तेज़ होती कोशिशें
पूँजीपति अपने रास्ते से सारी अड़चनें हटा देना चाहते हैं। उन्हें कागजों पर रह गए श्रम कानून भी चुभ रहे हैं। आज देश के कोने-कोने से मज़दूरों द्वारा श्रम कानून लागू करने की आवाज उठ रही है हालांकि संगठित ताकत की कमी के कारण मज़दूर मालिकों और सरकारी ढाँचें पर पर्याप्त दबाव नहीं बना पाते। पूँजीपतियों को श्रम विभागों और श्रम न्यायालयों में मज़दूरों द्वारा की जाने वाली शिकायतों और केसों के कारण कुछ परेशानी झेलनी पड़ती है। इन कारणों से पूँजीपति वर्ग मज़दूरों के कानूनी श्रम अधिकारों का ही सफाया कर देना चाहता है।