अब सवाल यह है कि किया क्या जाये? क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कोई रास्ता निकल सकता है। यहाँ राजा विहार, सूरज पार्क-जे.जे.कोलोनी, समयपुर, संजय कालोनी में मज़दूरों की एक बहुत बड़ी आबादी रहती है। ज्यादातर मज़दूर पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के रहने वाले हैं। पुराने मज़दूरों की आबादी ठीक-ठाक है तथा नये मज़दूर भी आ रहे हैं। इस इलाके में मज़दूरों के बीच सीपीएम की यूनियन सीटू के लोग अपनी दुकानदारी चलाते हैं तथा कुछ छोटे-छोटे दलाल ‘मालिक सताये तो हमें बतायें’ का बोर्ड लगाकर बैठे हुए हैं, जिनकी गिद्ध दृष्टि मज़दूरों पर लगी रहती है। जैसे ही कोई परेशान मज़दूर उनके पास पहुँचता है ये गिद्ध उस पर टूट पड़ते हैं तथा उसकी बची-खुची बोटी नोचकर अपना पेट भरते हैं। इस इलाके में मज़दूरों को जागृत, गोलबन्द तथा संगठित करने का काम चुनौतियों से भरा हुआ है। लगातार प्रचार के माध्यम से मज़दूरों की चेतना को जागृत करते हुए उन्हें मज़दूरों के जुझारू इतिहास से परिचित कराना होगा, उन्हें उनके हक के बारे में लगातार बताते रहना होगा तथा उनके बीच के अगुआ लोगों को लेकर ऐसी एक-एक घटना के ख़िलाफ लगातार प्रचार करके पुलिस-प्रशासन-नेताशाही पर दबाव बनाना होगा, तभी जाकर इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने पर फैक्टरी मालिकों को मजबूर किया जा सकता है। इसी प्रक्रिया में मज़दूरों को लगातार बताना होगा कि यह पूरी व्यवस्था मालिकों की हिफाज़त के लिए है तथा बिना इस पूरी व्यवस्था को जड़ से बदले मज़दूरों का इन्सानों की ज़िन्दगी जी पाना असम्भव है।