हादसों के नाम पर कब तक होती रहेंगी ऐसी हत्याएँ?
स्थानीय अख़बारों में इसे एक हादसा बताया गया है। परन्तु यदि हम इस घटना का तार्किक विश्लेषण करें तो यह बिल्कुल साफ हो जायेगा कि यह हादसा नहीं “हत्या” है। आज भारत के असंगठित क्षेत्र में लगभग 48 करोड़ मज़दूर हैं। इनमें करीब 3 करोड़ निर्माण मज़दूर हैं। देशभर में बड़े-बड़े अपार्टमेंट, होटल, एअरपोर्ट, एक्सप्रेसवे, ऑफिस बिल्डिंग आदि का निर्माण अन्धाधुन्ध जारी है। लेकिन इनमें काम करने वाले मज़दूरों की हालत बेहद बुरी है। तमाम सरकारी घोषणाएँ सिर्फ कागज़ पर रह जाती हैं। बड़ी-बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनियों से लेकर राजकीय निर्माण निगम जैसी सरकारी संस्थाओं तक हर जगह मज़दूरों के साथ एक ही जैसा सुलूक होता है। आये दिन मज़दूर मरते और घायल होते रहते हैं या फिर जानलेवा बीमारियों का शिकार होते रहते हैं। ऐसी घटनाओं पर न तो हमारी सरकार को कोई फ़र्क़ पड़ता है और न ही पूँजीपतियों को।