Category Archives: औद्योगिक दुर्घटनाएँ

मेट्रो रेल कॉरपोरेशन और प्रशासन की लापरवाही की वजह से पटना मेट्रो के निर्माण कार्य में लगे मज़दूरों की हुई मौतें

सवाल यह है कि क्या हम अपने जीवन की कीमत समझते हैं? क्या यूँ कीड़े-मकोड़ों के समान गुमनाम मौतें मरने रहना हमें स्वीकार है? क्या अपने बच्चों के लिए यह भविष्य हमें स्वीकार है? क्या हम इंसानी जीवन की गरिमा का अहसास रखते हैं? अगर हाँ, तो हमें इस समूचे मुनाफ़ा-केन्द्रित व्यवस्था के विरुद्ध गोलबन्द और एकजुट होना ही होगा। वरना हम यूँ ही जानवरों की तरह मारे जाते रहेंगे।

कानपुर देहात में मुनाफ़े के लिए आपराधिक लापरवाही की भेंट चढ़े 6 मज़दूर!

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के औद्योगिक क्षेत्र रनियां में गद्दा फ़ैक्ट्री में भीषण आग लगने से छह मज़दूरों की दर्दनाक मौत हो गयी। शनिवार सुबह 6 बजे कारख़ाने की एलपीजी यूनिट में गैस रिसाव हो गया। इसके बाद तेज़ धमाका हुआ और आग लग गयी। कारख़ाने में न तो अग्निशमन यंत्र था और न ही अलार्म। ऊपर से मानकों को धता बताकर बनाया गया टिनशेड और दीवार आग की वजह से गिर गयी जिसके नीचे कई मज़दूर दब गये। इस वक़्त कारख़ाने में काम कर रहे 11 मज़दूरों में से 10 अन्दर ही फँस गये। 3 मज़दूर कारख़ाने में ज़िन्दा जल गये और तीन ने इलाज़ के दौरान दम तोड़ दिया।

रेल व्यवस्था का ग़रीब विरोधी चरित्र! लगातार बढ़ते ट्रेन हादसे! ज़िम्मेदार मोदी सरकार!!

एक ओर रेलवे का नेटवर्क विस्तारित किया गया है, दूसरी ओर रेलवे में कर्मचारियों की संख्या को लगातार कम करके मोदी सरकार मौजूदा कर्मचारियों पर काम के बोझ को भयंकर तरीके से बढ़ा रही है। ऐसे में, दुर्घटनाओं और त्रासदियों की संख्या में बढ़ोत्तरी की सँभावना नैसर्गिक तौर पर बढ़ेगी ही। ऐसी जर्जर अवरचना के भीतर मोदी सरकार बुलेट ट्रेन के शेखचिल्ली के ख़्वाब दिखा रही है, तो इससे बड़ा भद्दा मज़ाक और कुछ नहीं हो सकता।

खाड़ी देशों में प्रवासी मज़दूरों के नारकीय हालात से उपजा एक और हादसा

खाड़ी के देशों में प्रवासी मज़दूरों के लिये कफ़ाला प्रणाली मौजूद है। कफ़ाला प्रणाली क़ानूनों और नीतियों का एक समुच्चय है जो प्रवासी मज़दूरों पर नियन्त्रण रखने के लिये ही बनाया गया है। इसके तहत कोई भी प्रवासी मज़दूर ठेकेदारों या मालिकों के पूर्ण नियन्त्रण में होता है। इसके अन्तर्गत मज़दूरों को देश में प्रवेश करने, वहाँ रहने और काम करने तथा वहाँ से बाहर जाने के लिये पूरी तरह से ठेकेदारों और मालिकों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। आमतौर पर अपने अनुबन्ध के पूरा होने से पहले, एक निश्चित समयावधि से पहले या अपने नियोक्ता की अनुमति के बिना वे नौकरी नहीं छोड़ सकते या उसे बदल नहीं सकते। जो लोग किसी कारण से नौकरी छोड़ते हैं, उन्हें फ़रार होने के अपराध में गिरफ़्तार तक कर लिया जाता है और कई मामलों में निर्वासित भी कर दिया जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो कफ़ाला प्रणाली ठेकेदारों और मालिकों को शोषण करने की क़ानूनी इजाज़त देती है और इसके तहत मज़दूर बेहद कम तनख्वाह पर और नारकीय कार्य स्थितियों व जीवन स्थितियों में ग़ुलामों की तरह काम करने को मजबूर होते हैं।

लाइफ़ लौंग (धारूहेड़ा) के कारख़ाने में हुए भयानक विस्फोट में 16 मज़दूरों की मौत

लाइफ लौंग की दुर्घटना को महज़ लापरवाही कहना इस पर पर्दा डालने के समान है। वास्तव में यह मालिकों की मुनाफ़े की अन्धी हवस का नतीज़ा है। ये हादसे दर्शाते हैं कि मालिकों के लिए मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं है, इसलिए कारख़ानों में सुरक्षा के इन्तज़ाम नहीं होते। आख़िर क्यों कारख़ाने मौत के कारख़ाने बन रहे हैं? आख़िर क्यों हरियाणा से लेकर देश भर में कारख़ानों समेत कार्यस्थलों में आग व भयानक दुर्घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं? इसे समझे बिना आगे की संघर्ष की दिशा और व्यापक मज़दूरों की सही लामबन्दी सम्भव नहीं है।

सिलक्यारा सुरंग हादसा : मुनाफे की अँधी हवस की सुरंग

ये हादसे और आपदाएँ आज हिमालय की नियति बनते जा रहे हैं। मुनाफ़े की अन्धी हवस में जिन परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है उससे होने वाले नुकसान को केवल हिमालय ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत को भुगतना पड़ सकता है। हिमालय में बड़े-बड़े बाँधों से लेकर चार धाम परियोजना, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना, पंचेश्वर बाँध परियोजना आदि ने पूरे हिमालय को तबाह करके रख दिया है। इसके परिणाम भी लगातार देखने को मिल रहे हैं।

मालिकों की मुनाफ़े की हवस ले रही मज़दूरों की जान!

यह सब महज़ दुर्घटनाएँ नहीं मालिकों व इस पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा की जाने वाली निर्मम हत्याएँ हैं। आये-दिन कीड़े-मकौड़ों की तरह कारख़ानों में मज़दूरों को मरने के लिए पूँजीपति मज़बूर करते हैं। श्रम मन्त्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि बीते पाँच वर्षो में 6500 मज़दूर फैक्ट्री, खदानों, निर्माण कार्य में हुए हादसों में अपनी जान गवाँ चुके हैं। इसमें से 80 प्रतिशत हादसे कारखानों में हुए। 2017-2018 कारखाने में होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2017 और 2020 के बीच, भारत के पंजीकृत कारखानों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत हुई और 11 घायल हुए। 2018 और 2020 के बीच कम से कम 3,331 मौतें दर्ज़ की गयी। आँकड़ों के मुताबिक, फैक्ट्री अधिनियम, 1948 की धारा 92 (अपराधों के लिए सामान्य दण्ड) और 96ए (ख़तरनाक प्रक्रिया से सम्बन्धित प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दण्ड) के तहत 14,710 लोगों को दोषी ठहराया गया, लेकिन आँकड़ों से पता चलता है कि 2018 और 2020 के बीच सिर्फ़ 14 लोगों को फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत अपराधों के लिए सज़ा दी गयी। यह आँकड़े सिर्फ़ पंजीकृत फैक्ट्रियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि दिल्ली और पूरे देश में लगभग 90 फ़ीसदी श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े हैं और अनौपचारिक क्षेत्र में होने वाले हादसों के बारे में कोई पुख़्ता आँकड़े नहीं हैं।

उड़ीसा का ट्रेन हादसा : लोगों की जान से खेलती मोदी सरकार

नवउदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद के 32 वर्षों में और ख़ास तौर पर मोदी सरकार के पिछले 9 वर्षों में, रेलवे में नौकरियों को घटाया जा रहा है, जो नौकरियाँ हैं उनका ठेकाकरण और कैज़ुअलीकरण कर दिया गया है। नतीजतन, ड्राइवरों पर काम का भयंकर बोझ है। कई जगहों पर ड्राइवरों को गाड़ियाँ रोककर झपकियाँ लेनी पड़ रही हैं क्योंकि 18-18, 20-20 घण्टे लगातार गाड़ी चलाने के बाद बिना सोये दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है।

मुण्डका (दिल्ली) की फैक्ट्री में लगी आग: कौन है इन 31 मौतों का ज़िम्मेदार?

बीते दिनों मुण्डका औद्योगिक क्षेत्र में जो हुआ वह महज़ हादसा नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली और देश के अलग-अलग फैक्ट्री इलाकों में मज़दूरों की मौत की घटनाएँ सामने आती रहीं हैं और इसके बाद भी थ जारी है। मुण्डका में जिस फैक्टरी में आगजनी की यह भयानक घटना हुई उसमें चार्जर और राउटर बनाने का काम होता था। इस काम के लिए ज्यादा संख्या में महिला मज़दूरों को रखा गया था। आधिकारिक तौर पर 31 मज़दूरों की मौत हुई है, पर कई मज़दूर अभी तक लापता हैं।

हैदराबाद में कबाड़ गोदाम में लगी आग में झुलसकर 11 मज़दूरों की मौत, एक की हालत गम्भीर

गत 23 मार्च को हैदराबाद के भोईगुड़ा इलाक़े में एक कबाड़ गोदाम में भोर के क़रीब 3 बजे आग लग गयी जिसमें झुलसकर 11 मज़दूरों की मौत हो गयी। एक अन्य मज़दूर अपनी जान बचाने के लिए गोदाम की पहली मंज़िल पर स्थित कमरे से नीचे कूद गया और उसे बेहद गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि आग इलेक्ट्रिक शॉर्ट-सर्किट की वजह से लगी थी। गोदाम में आसानी से आग पकड़ने वाली तमाम ज्वलनशील चीज़ें (जैसे केबल, अख़बार, प्लास्टिक आदि) पड़ी हुई थीं जिसकी वजह से आग जल्द ही पूरी इमारत में फैल गयी। बिहार के कटिहार और छपरा ज़िले से आकर गोदाम में काम करने वाले 12 मज़दूर गोदाम की पहली मंज़िल पर एक छोटे-से कमरे में रहते थे।