Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

पूँजी की ताकत के आगे हड़ताल के लिए जरूरी है वर्ग एकजुटता!

हड़ताल मजदूर वर्ग का एक ऐसा जबर्दस्त हथियार है जिसकी ताकत के दम पर वह मालिक वर्ग को अपनी व्यवहारिक माँगों को पूरा करने के लिए घुटने टेकने को मजबूर कर देता है। 1990 के दशक से जारी निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों के साथ-साथ मालिक वर्ग ने ऐसे एक खास तरीके की रणनीति तैयार की है जिससे कि किसी एक फ़ैक्टरी में हड़ताल होने से उनकी सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। वो तरीका है एक बड़े कारखाने को सौ छोटे कारखानों में बाँट देना। ऐसी ही एक फ़ैक्टरी हड़ताल की घटना हमारे सामने है जो हड़ताल के बारे में कुछ जरूरी सबक देती है।

एक मेहनतकश औरत की कहानी…

इस पूँजी की व्यवस्था में बिना पूँजी के लोगों की ऐसी ही हालत हो जाती है जैसे अभी पूजा की है। एकदम बेजान, चेहरा एकदम सूखा हुआ। 28 साल की उम्र में उसको स्वस्थ और सेहतमन्द होना चाहिए था मगर इस उम्र में जिन्दगी का पहाड़ ढो रही है और दिमागी रुप से असुन्तिल हो गयी है।

देशव्यापी हड़ताल किसके लिए?

20-21 फरवरी 2013 दो दिवसीय देशव्यापी अनुष्ठानिक हड़ताल कुल 11 बड़ी ट्रेड यूनियनों ने मिलकर की जिससे बहुत मजदूर भ्रम में पड़ गये कि ये यूनियन वाले हमारे हितैषी हैं और हमारा साथ दे रहे हैं। वर्षो से पल रहा गुस्सा निकल पड़ा जिससे कई जगह तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाऐं हुई। मगर उन मजदूरों को ये शंका भी न हुई कि ये हमारे वर्ग के गद्दार और आस्तीन के सांप है। जिनका यह काम ही है कि हर साल ऐसे एक-दो अनुष्ठान करते रहो, जिससे की दुकानदारी चलती रहे। और मजदूर भ्रम में बने रहें। कि उनकी बात भी कहने वाले कुछ लोग है। हड़ताल वाले दिन नोएडा में तोड़फोड़ हुई। जिसकी सज़ा तुरन्त मजदूरों को मिली और अभी तक 150 से भी ज्यादा मजदूर जेल में है। मगर जिन बड़ी ट्रेड यूनियनों ने मिलकर ये अनुष्ठान सम्पन्न किया। उन्हीं में से एक ट्रेड यूनियन (एटक) के नेता और सांसद गुरूदास दासगुप्ता ने पुलिस से माँफी माँगी कि इस हिंसा में यूनियन की कोई गलती नहीं है।

8 मार्च अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ‘‘मजदूर अधिकार रैली’’

मेहनतकश औरतों की हालत तो नर्क से भी बदतर है। हमारी दिहाड़ी पुरुष मज़दूरों से भी कम होती है जबकि सबसे कठिन और महीन काम हमसे कराये जाते हैं। कानून सब किताबों में धरे रह जाते हैं और हमें कोई हक़ नहीं मिलता। कई फैक्ट्रियों में हमारे लिए अलग शौचालय तक नहीं होते, पालनाघर तो दूर की बात है। दमघोंटू माहौल में दस-दस, बारह-बारह घण्टे खटने के बाद, हर समय काम से हटा दिये जाने का डर। मैनेजरों, सुपरवाइज़रों, फोरमैनों की गन्दी बातों, गन्दी निगाहों और छेड़छाड़ का भी सामना करना पड़ता है। ग़रीबी से घर में जो नर्क का माहौल बना होता है, उसे भी हम औरतें ही सबसे ज़्यादा भुगतती हैं।

हीरो मोटोकॉर्प लिमिटेड में मज़दूरों के हालात

छह हज़ार वर्कर होने पर भी इस कम्पनी में वर्कर पूरे नहीं पड़ते हैं। बाहर की कम्पनियों को अपने वर्कर इस कम्पनी में भेजने पड़ते हैं ताकि वो स्टाक माल को लाइन पर पहुँचाते रहें। कम्पनी के वर्करों को दो टाइम चाय-नाश्ता और खाना कम्पनी की तरफ से मिलता है। मोटोकार्प के लिए ही काम करने वाले बाहर के वर्करों के लिए चाय-नाश्ते पर पाबन्दी रहती है। यहाँ पर सुरक्षा गार्डों को सख़्त आदेश है कि बाहर के वर्करों को भगाते रहें। ये सुरक्षा गार्ड इन वर्करों को ऐसे भगाते हैं जैसे कुत्तों को भगाया जाता है। खैर, चाय तो कभी-कभार डाँट-डपट और गाली सुनकर मिल भी जाती है, मगर खाने की कैण्टीन में सख़्त पाबन्दी है। बाहर के वर्करों को खाने के लिए तीस रुपये खर्च करने पड़ते हैं और अगर बिना कूपन लिए खाने की लाइन में पकड़े गये, तो 3 घण्टे तक बर्तन साफ़ करने पड़ते हैं। अगर आप दूसरी कम्पनी में काम करते हैं, तो उस कम्पनी से आपका बायोडाटा निकालकर, जब से आप काम कर रहे हैं तब से रोज़ के हिसाब से 30 रुपये काट लेंगे और आप कुछ नहीं कर सकते।

नम्बर एक हरियाणा की असलियत

सुबह 9:30 बजे से शाम 6:15 की ड्यूटी करने पर 8 घण्टे के पैसे मिलते हैं। इसमें से मज़दूर के 45 मिनट लंच के नाम पर कट जाते हैं। पूरे महीने की तनख्‍वाह 10 से 15 तारीख़ के बीच में मिलती है। 4300 रुपये महीना पर काम करने वाले वर्कर को 30 से 15 तारीख़ के बीच में अक्सर रुपयों की ज़रूरत पड़ जाती है। उस समय, ठेकेदार के आगे-पीछे भीख माँगते रहो, तब भी वे एक रुपया तक नहीं देते और ऐसे समय में 10 रुपये सैकड़ा के हिसाब से ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता है क्योंकि खाने-पीने का सामान, किराया-भाड़ा, दवा, सब्जी व किसी अन्य बुनियादी ज़रूरत का सामान उधारी की दुकान पर नहीं मिलता। इतना सब करने के बाद भी मज़दूर के घण्टे काटना व हाजिरी काट लेना जैसी चीज़ें चलती रहती हैं। अगर काम है तो जबरन ओवरटाइम करना पड़ता है, और अगर काम नहीं है तो जबरन भगा भी देते हैं। अगर कम्पनी में ही बने रहो तो हाजिरी ही नहीं चढ़ायेंगे। यहाँ काम करने के बाद हरियाणा के नम्बर एक होने की असलियत पता चली और यह अन्दाजा हुआ कि हरियाणा को असल में किन थैलीशाहों के लिए नम्बर एक कहा जाता होगा!

मजदूर की कलम से कविता : मैंने देखा है… / आनन्‍द

मैंने देखा है…
वो महीने की 20 तारीख़ का आना
और 25 तारीख़ तक अपने ठेकेदार से
एडवांस के एक-एक रुपये के लिए गिड़गिड़ाना
और उस निर्दयी जालिम का कहना कि
‘तुम्हारी समस्या है।
मुझे इससे कोई मतलब नहीं,’ – मैंने देखा है।

मज़दूर वर्ग का एक हिस्सा, जिसे शर्म आती है ख़ुद को मज़दूर कहने में!

रास्ता तो सिर्फ़ एक है कि आज मज़दूर वर्ग को अपने ऊपर गर्व होना चाहिए कि हम मज़दूर हैं, किसी के गुलाम नहीं। दुनिया को हम बनाते हैं। पूरी दुनिया को हम चलाते हैं। पूरी दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसमें हमारा हाथ न लगा हो। मतलब यह है कि हम ही दुनिया के मालिक हैं। हर मज़दूर को यह बात कड़वे सच की तरह समझनी चाहिए और अपनी दुनिया को वापस पाने के लिए हमेशा दिल में तड़प होनी चाहिए क्योंकि हमारी दुनिया पर किसी और का कब्जा है।

एक मजदूर से बातचीत

साम-दाम-दण्ड-भेद जो तरीक़ा चले उन्हें चलाकर ये मालिक कारीगरों को निकालकर हेल्पर भरती कर रहा है। कारीगर महोदय अभी तक किसी एक पेशे के कारीगर हुआ करते थे। अब दर-दर की ठोकर खाकर घूम रहे हैं। अभी तक आराम के 7000 रुपये उठा रहे थे। अब हेल्परी के (3500-4000) रु. पा रहे हैं। मालिक तभी तक खुश रहता है जब तक उसको मुनाफा होता रहता है। तुम्हारी जी-हुजूरी से और बाबूजी-बाबूजी कहने से मालिक नहीं खुश होता है। किसी मजदूर को अगर बैठाकर तनख्वाह देनी पड़ जाये तो ज्यादा से ज्यादा कोई भी मालिक एक महीना तक तनख्वाह देगा उसके बाद भी अगर काम न आया तो फैक्ट्री में ताला डाल देगा। तुम चाहे कितने भी पुराने क्यों न हो। आज के दौर में अगर हमें ज़िन्दा रहना है तो मजदूर वर्ग के रूप में एकजुट होना होगा।

रणवीर की आपबीती

मासू इण्टरनेशनल, बादली में मैं काम करता हूँ। रणवीर शाहजहाँ पुर उ.प्र. का रहने वाला है। आज फैक्ट्री सुपरवाइजर सरदार ढिलन सिंह के तेवर रणवीर के खिलाफ सख़्त थे। बेचारे रणवीर को क्या पता कि आखिर कौन सी क़यामत आई है। रणवीर रोज जितना काम करता था। आज उससे तीन गुना काम उस पर पड़ रहा है। क्या आज सरदार ढिलन सिंह सुबह-सुबह ही 4 पैग ज़्यादा लगाकर आये हैं। नहीं ऐसा नहीं है।
आखिर शाम तक रणवीर जी की हालत खस्ता हो गई। वैसे तो रणवीर रोज ओवरटाइम व नाइट नहीं छोड़ता था। मगर आज 5.30 बजे ही छुट्टी करने का निर्णय लिया है। मगर रणवीर ने यह भी निर्णय किया कि इस क़यामत का राज जानकर ही जाऊँगा।
रणवीर – सर जी, हमसे कोई ग़लती हो गई जो आज आपने हमको टारगेट बना लिया।
ढिलन सिंह – अब आयी तेरी अकल ठिकाने। अब बताता हूँ। ऐसा क्यों किया। कल तूने सी.आई.टी.यू. के कार्यकर्ता त्यागी के सामने कारीगरों के साथ यूनियन लगाने के लिए अपना नाम क्यों लिखाया। अभी तुझे आये दो महीने भी हुए नहीं और चला यूनियन करने।