आखि़र कब बदलेगी सफ़ाईकर्मियों की ज़िन्दगी?
सफ़ाईकर्मियों को ना तो हादसों से सुरक्षा के इन्तज़ाम ही हासिल हैं और ना ही बीमारियों से बचाव के इन्तज़ाम। हर दिन देश में गटरों में गैस चढ़ने या काम के दौरान और दुर्घटनाओं से सफ़ाईकर्मियों की मौत होती है। सफ़ाईकर्मियों की यूनियन के अनुसार पिछले दो दशकों में हज़ार से भी ज़्यादा कर्मियों की मौत इन हादसों में हो चुकी है। हमेशा कार्बन मोनोआक्साइड, हाइड्रोजन सल्प़फ़ाइड और मीथेन जैसी ज़हरीली गैसों के सीधे सम्पर्क में रहने के कारण कई तरह की साँस की और दिमाग़ी बीमारियाँ होती हैं। इसके अलावा दस्त, टाइफ़ाइड और हेपेटाइटिस-ए जैसी बीमारियाँ आमतौर पर होती हैं। ई. कौली नामक बैक्टीरिया पेट सम्बन्धी बहुत गम्भीर रोगों का जन्मदाता है और क्लोस्ट्रीडम टैटली नामक बैक्टीरिया खुले ज़ख़्मों के सीधे सम्पर्क में आने के साथ ही टिटनेस का कारण बनता है। ये सारे बैक्टीरिया गन्दे पानी में आमतौर पर पाये जाते हैं और चमड़ी के रोग तो इतने होते हैं कि गिनती करना मुश्किल है।