Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

हमें आज़ाद होना है तो मज़दूरों का राज लाना होगा।

ट्रेन से उतरकर मैं सुस्ताने के लिए प्लेटफ़ार्म पर बैठा ही था कि एक आदमी मुझसे पूछने लगा कि मैं कहाँ जाऊँगा और मेरे जवाब देने पर उसने बताया कि वह मुझे यहीं पास में ही काम पर लगवा देगा। उसके साथ 3 और लोग थे। मैं उस पर विश्वास कर उसके साथ चल दिया, सोचा कमाना ही तो है चाहे वज़ीरपुर या यहाँ और लगा कि जो बात गाँव में सुनी थी वह सही है कि शहर में काम ही काम है। ये आदमी मुझे एक बड़ी बिल्डिंग में पाँचवीं मंज़िल की एक फ़ैक्टरी में ले गया और बोला कि यहाँ जी लगाकर काम करो और महीने के अन्त में मालिक से पैसे ले लेना। फ़ैक्टरी में ताँबे के तार बेले जाते थे। फ़ैक्टरी के अन्दर मेरी उम्र के ही बच्चे काम कर रहे थे। सुपरवाइज़र दिन में जमकर काम करवाता था और होटल का खाना खाने को मिलता था। फ़ैक्टरी से बाहर जाना मना था। एक महीना गुज़र गया पर मालिक ने पैसा नहीं दिया। महीना पूरा होने के 10 दिन बाद मैं मालिक के दफ्तर पैसे माँगने लगा तो उसने कहा कि मुझे तो वह ख़रीद चुका है और मुझे यहाँ ऐसे ही काम करना होगा। यह बात सुनकर मैं घबरा गया। मैं फ़ैक्टरी में गुलामी करने को मजबूर था। मैंने जब और लड़कों से बात की तो पता चला कि वे सब भी बिके हुए थे और मालिक की गुलामी करने को मजबूर हैं। 5-6 महीने मैं गुलामों की तरह काम करता रहा। पर मैं किसी भी तरह आज़ाद होना चाहता था। मैं भागने के उपाय सोचने लगा। पर दिनभर सुपरवाइज़र बन्द फ़ैक्टरी में पहरा देता था। रात को ताला बन्द कर वह सोने चला जाता था। कमरे में दरवाज़े के अलावा एक रोशनदान भी था जिस पर ताँबे के तार बँधे थे।

मुम्बई में 100 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन?

क्या प्रशासन को खतरनाक शराब बनाने वालों के बारे में पता नहीं होता है? झुग्गी बस्तियों में पुलिस की मोटरसाईकिले व गाड़ि‍यां रात-दिन चक्कर लगाती रहती हैं। ये पुलिसवाले यहाँ व्यवस्था बनाने के लिए चक्कर नहीं लगाते हैं बल्कि स्‍थानीय छोटे कारोबारियों और कारखानादारों के लिए गुण्डा फोर्स का काम करते हैं। सारे अपराध, सभी गै़र-कानूनी काम पुलिस की आँखों के सामने होते हैं और सभी काम पुलिसवालों, विधायकों आदि की जेबें गर्म करके उनकी सहमति के बाद ही होते हैं। शक की गुंजाइश के बिना यह कहा जा सकता है कि इस तरह की शराब बनाने के बारे में भी प्रशासन को पूरी जानकारी रहती है। शराब को और अधिक नशीला बनाने के लिए उसमें मेथानोल और यहाँ तक कि पेस्टीसाइड का भी इस्तेमाल होता है। चूंकि यह शराब लैबोरेटरी में टेस्ट करके नहीं बनती और इसकी गुणवत्ता के कोई मानक भी नहीं होते हैं तो ऐसे में जहरीले पदार्थों की मात्रा कम-ज्यादा होती रहती है। इस शराब में अगर जहरीले पदार्थों की मात्रा कम भी रहे तो भी लम्बे सेवन से आँखे खराब होने आदि का खतरा तो बना ही रहता है। जहरीले पदार्थों की मात्रा यदि अधिक हो जाती है तो उसके जो परिणाम होते हैं वो इस घटना के रूप में हमारे सामने हैं।

हमारी ताक़त हमारी एकजुटता में ही है!

मेरी उम्र 30 साल है और 16 साल की उम्र से ही मैंने दिहाड़ी-मज़दूरी का काम शुरू कर दिया था। घर के आर्थिक हालात अच्छे न होने के कारण स्कूल के दिनों में खेत मज़दूरी जैसे कामों में घरवालों का हाथ बँटाना पड़ता था। खेती का काम तो मौसमी होता था और इसमें मेहनत ज़्यादा थी और पैसा कम, इसलिए स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूर के तौर भी मैंने काफ़ी दिन बेलदारी का काम किया। किन्तु यहाँ भी काम में अनिश्चितता बनी रहती थी। उसके बाद मैंने एक आरा मशीन पर काम पकड़ा, यहाँ मैं लगातार आठ साल तक खटता रहा। मालिक कहा-सुनी व गाली-गलौज करता था, पैसा भी बेहद कम मिलता था। अन्त में एक दिन काम के दौरान आरा मशीन में मेरा हाथ आ गया जिसके कारण मुझे अपनी एक उँगली गँवानी पड़ी। न तो मुझे कोई मुआवज़ा मिला और काम भी मुझे छोड़ना पड़ा

देश के मज़दूरों से अलग नहीं है पानीपत के मज़दूरों के हालात!

फ़ैक्टरी रिहाइश से करीब 15 किलोमीटर दूर है, आने-जाने की व्यवस्था ख़ुद ही करनी पड़ती है थोड़ा सा लेट होने पर आधे दिन की तनख़्वाह काट ली जाती है। पिछले दिनों ही अलग-अलग करके करीब सौ मज़दूरों की छुट्टी कर दी गयी थी। बच्चों से भी फ़ैक्टरी में काम करवाया जाता है। जब कभी इंस्पेक्शन होती है प्लाण्ट बन्द दिखाकर बच्चों को हटा दिया जाता है और काम फिर से चालू हो जाता है। यह हाल केवल हमारी फ़ैक्टरी का ही नहीं है बल्कि पानीपत भर के पूरे औद्योगिक इलाक़े के ऐसे ही हालात हैं। कुछ धन्धेबाज़ यूनियनें काम करती हैं लेकिन मज़दूरों की कोई व्यापक एकजुटता नहीं है। मुझे आधी से ज़्यादा उम्र काम करते हो गयी, अभी तक सिर पर अपनी छत नहीं है। किराये के मकान में किसी तरह रहना पड़ता है। मैंने देश के कई हिस्सों में देखा है कि मज़दूर कहीं भी अच्छे हालात में नहीं हैं।

मई दिवस के अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्‍ता, मुम्‍बई द्वारा जारी पर्चा

आज मज़दूरों की 93 फ़ीसदी (लगभग 56 करोड़) आबादी ठेका, दिहाड़ी व पीस रेट पर काम करती है जहाँ 12 से 14 घण्टे काम करना पड़ता है और श्रम क़ानूनों का कोई मतलब नहीं होता। जहाँ आए दिन मालिकों की गाली-गलौज का शिकार होना पड़ता है। इतनी हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी हम अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के सपने नहीं देख सकते। वास्तव में हमारा और हमारे बच्चों का भविष्य इस व्यवस्था में बेहतर हो भी नहीं सकता है। आज ज़रूरत है कि हम मज़दूर जो चाहे किसी भी पेशे में लगे हुए हैं, अपनी एकता बनायें। आज हम ज्यादातर अलग-अलग मालिकों के यहाँ काम करते हैं इसलिए आज ये बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी इलाकाई यूनियनें भी बनायें। अपनी आज़ादी के लिए, अपने बच्चों के भविष्य के लिए, इन्सानों की तरह जीने के लिए और ये दिखाने के लिए कि हम हारे नहीं हैं, हमें एकजुट होने की शुरुआत करनी ही होगी।

हम हार नहीं मानेंगे! हम लड़ना नहीं छोड़ेंगे!

आम आदमी’ की जुमलेबाजी सिर्फ कांग्रेस और भाजपा से लोगों के पूर्ण मोहभंग से पैदा हुए अवसर का लाभ उठाने के लिए थी। चुनावों होने तक यह जुमलेबाजी उपयोगी थी। जैसे ही लोगों ने ‘आप’ के पक्ष में वोट दिया, किसी विकल्प के अभाव में, अरविंद केजरीवाल का असली कुरूप फासिस्ट चेहरा सामने आ गया।

नोएडा की मज़दूर बस्ती में शहीद मेले का आयोजन

वक्‍ताओं ने कहा कि आज भगतसिंह और उनके साथियों को याद करने का एक ही मतलब है कि अन्‍धाधुन्‍ध बढ़ती पूंजीवादी–साम्राज्‍यवादी लूट के खिलाफ़ लड़ाई के लिए उनके सन्‍देश को देश के मेहनतकशों के पास लेकर जाया और उन्‍हें संगठित किया जाये। धार्मिक कट्टरपंथ और संकीर्णता के विरुद्ध आवाज़ उठायी जाये और जनता को आपस में लड़ाने की हर साजिश का डटकर विरोध किया जाये

भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु के 84वें शहादत दिवस पर नरवाना में लगा शहीद मेला!

68 साल की आधी-अधूरी आज़ादी के बाद सफ़रनामा हमारे सामने जिसमें जानलेवा महँगाई , भूख से मरते बच्चे, गुलामों की तरह खटते मज़दूर, करोड़ो बेरोज़गार युवा, ग़रीब किसानों की छिनती ज़मीनें, देशी-विदेशी पूँजीपतियों की लूट की की खुल छूट – साफ़ है शहीदों शोषणविहीन, बराबरी और भाईचारे पर आधारित, ख़ुशहाल भारत का सपना पूरा नहीं हो सका। ऐसे में हमें शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए। वो इंसानों को मार सकते है लेकिन विचारों को नहीं। इसलिए हमें मेहनतकश जनता की सच्ची आज़ादी के लिए शहीदों के विचारों को हर इंसाफ़पसन्द नौजवान तक पहुँचाना होगा।

शहीद मेले में अव्यवस्था फैलाने, लूटपाट और मारपीट करने की धार्मिक कट्टरपंथी फासिस्टों और उनके गुण्डा गिरोहों की हरकतें

इतना तय है कि ऐसे तमाम प्रतिक्रियावादियों से सड़कों पर मोर्चा लेकर ही काम किया जा सकता है। इनसे भिडंत तो होगी ही। जिसमें यह साहस होगा वही भगतसिंह की राजनीतिक परम्परा की बात करने का हक़दार है, वर्ना गोष्ठियों-सेमिनारों में बौद्धिक बतरस तो बहुतेरे कर लेते हैं

‘धर्म की उत्पत्ति व विकास, वर्ग समाज में इसकी भूमिका’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

इस विचार संगोष्ठी में का. कश्मीर ने मुख्य वक्ता के तौर पर बात रखी। उन्होंने विस्तार से बात रखते हुए साबित किया कि समाज के वर्गों में बँटने, यानी शोषकों व शोषितों में बँटने, के साथ ही संगठित धर्म अस्तित्व में आया। उत्पादन शक्तियों के विकास के कारण समाज वर्गों में बँटा, आदिम साम्यवादी समाज की जगह गुलामदारी व्यवस्था ने ली और इसी समय धर्म अस्तित्व में आया।