Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

सरकारी कर्मचारियों को छात्रों-युवाओं-मेहनतकशों से अपनी लड़ाई को जोड़ना होगा

मौजूदा समय सरकार के पास नयी ख़रीदी 950 बसें खड़ी-खड़ी बर्बाद हो रही हैं, लेकिन सरकार कर्मचारियों की कमी दिखाकर अपना पल्ला झाड़ रही है। वहीं रोडवेज कर्मचारी भी निजीकरण के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरकर संघर्ष के लिए तैयारी कर रहा है, लेकिन हम कर्मचारी भी जानते हैं कि ये लड़ाई सिर्फ़ कर्मचारियों की नहीं है बल्कि हर छात्र-युवा से लेकर मेहनतकश जनता की है। इसलिए हम उनकी भागीदारी के लिए उनके बीच जाना होगा। तभी हम सही मायने में सरकार की जनविरोधी नीतियों का प्रतिरोध कर सकते हैं।

शहीद करतार सिंह सराभा के शहादत दिवस पर समाज बदलने के लिए आगे आने का आह्वान

शहीद करतार सिंह सराभा के 100वीं शहादत वर्षगाँठ (16 नवम्बर) के अवसर पर लुधियाना में टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन व कारखाना मज़दूर यूनियन ने नुक्कड़ सभाएँ की और पर्चा बाँटा। वक्ताओं ने कहा कि महान गदरी सूरबीर शहीद करतार सिंह सराभा महज साढे उन्नीस वर्ष की उम्र में अंग्रेज हकूमत द्वारा फाँसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिए गए थे। वे एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए लड़ रहे थे जहाँ इंसान के हाथों इंसान को दबाया न जाए, जहाँ धर्म के नाम पर कत्लेआम ने हो, जहाँ जाति व्यवस्था का कोई नामो-निशां न हो।

महान अक्टू्‍बर क्रान्ति की जयन्ती पर बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा वज़ीरपुर और गुड़गाँव में कार्यक्रम

1917 की अक्टूबर क्रान्ति के बाद किस तरह मज़दूरों ने अपने आप को सोवियतों में संगठित कर एक ऐसे समाज का निर्माण किया जहाँ भुखमरी, कुपोषण, बेरोज़गारी, वेश्यावृत्ति जड़ से ख़त्म कर दी गयी, और सबको बराबरी का दर्जा दिया गया। यह सब केवल मज़दूरों-किसानों-मेहनतकशों के राज में ही सम्भव हो पाया। लोगों ने पूरे नाटक को बहुत रुचि से देखा। बिगुल मज़दूर दस्ता की शिवानी ने कहा कि मज़दूरों को आज फिर अपने हालात को बदलने के लिए अक्टूबर क्रान्ति के नए संस्करण रचने होंगे और मज़दूर संघर्षों के अपने गौरवशाली इतिहास से सबक लेते हुए अपनी लड़ाई की रणनीति तय करनी होगी। मज़दूरों के लिए एक कला प्रदर्शनी भी लगायी गयी जिसमे सोवियत पोस्टरों से लेकर समाजवादी यथार्थवाद से प्रभावित चित्र शामिल थे। वज़ीरपुर के कार्यक्रम में चार्ली चैप्लिन की प्रसिद्ध फ़ि‍ल्म ‘मॉडर्न टाइम्‍स’ भी दिखायी गयी।

मारुति के ठेका मजदूरों द्वारा वेतन बढ़ोत्तरी की माँग पर प्रबन्धन से मिली लाठियाँ!

स्थायी मज़दूरों को कभी नहीं भूलना चाहिए कि कंपनियाँ हमेशा स्थायी मज़दूरों की संख्या कम करने की, अस्थायीकरण की ताक़ में रहती हैं, और अपने फायदे के हिसाब से उनका इस्तेमाल करती है। उन्हें जुलाई 2012 में मारुति की घटना को नहीं भूलना चाहिए जिसके बाद कंपनी ने थोक भाव से स्थायी मज़दूरों को काम से निकाला था। उनका वर्ग हित अपने वर्ग भाइयों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ने में है। पूरे सेक्टर में लगातार बढ़ते ठेकाकरण, छँटनी, नये स्थायी मज़दूरों की बहाली न होना, ठेका मज़दूरों से ज़्यादा उनके लिए खतरे की घंटी है। यह दिखाता है कि स्थायी मज़दूरों का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। पूँजीपतियों के इन “अच्छे दिनों” में जहाँ एक-एक कर मज़दूरों के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं वहाँ यह कोई बड़ी बात नही होगी कि एक ही झटके में स्थायी मज़दूरों का पत्ता काटकर कारखानों-उद्योगों में शत प्रतिशत ठेकाकरण कर दिया जाये। इसीलिए मारुति ही नहीं बल्कि पूरे सेक्टर के स्थायी मज़दूरों के लिए ज़रूरी है कि वे अपने संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर ठेकेदारी प्रथा के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलन्द करें और एक वर्ग के तौर पर एकजुट होकर संघर्ष करें।

मानेसर की ब्रिजस्टोन कम्पनी के मज़दूरों का संघर्ष ज़ि‍न्दाबाद !

प्रबंधन ने चुन चुन कर बीसियों श्रमिकों को काम से बहार का रास्ता दिखाया। इन सब के विरोध में मज़दूरों ने कोर्ट से परमिशन लेकर 17 सितम्बर को टूल डाउन किया। उस दिन उन्हें पुलिस और गुंडों के दम पर कंपनी से बाहर कर दिया गया। मज़दूरों के एक दिन के टूल डाउन के जवाब में अगले दिन कंपनी ने गैर-कानूनी तालाबंदी कर दी। अगले दिन जब श्रमिक सुबह की शिफ्ट में काम पर आये, तब गेट पर पुलिस और बाउंसरों के साथ खड़े मैनेजमेंट ने उन्हें अंदर जाने से रोका। श्रमिकों से कहा गया की उन्हे आधे घंटे बाद बताया जायेगा की उन्हें काम पर लिया जायेगा या नहीं। जब दुबारा श्रमिक गेट पर पहुंचे तब बाउंसरों ने 4 श्रमिकों को अंदर खिंच लिया। उन्हें धमकी दी गयी की या तो वे काम करें या कोरे कागज़ पर दस्तख़त कर निकल जाए। इसके बाद तक़रीबन 400 श्रमिकों ने वहीं कंपनी गेट से थोड़ी दूरी पर टेंट लगाकर हड़ताल शुरू कर दी। श्रमिकों ने मांग की कि बाहर निकाले गए 20 मज़दूरों समेत सभी को काम पर वापिस लिया जाये और यूनियन बनाने दिया जाये। इसके बाद प्रबंधन पुलिस वालों को भेज कर मज़दूरों पर दबाव बनाने का काम कर रही थी।

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने किया विधायक का घेराव

वज़ीरपुर में लगभग एक महीने से पानी की किल्लत झेल रहे वज़ीरपुर के मज़दूरों और झुग्गीवासियों ने 30 सितम्बर की सुबह वज़ीरपुर के विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। वज़ीरपुर के अम्बेडकर भवन के आस पास की झुग्गियों में खुदाई के चलते 12 दिनों से पानी नहीं पहुँच रहा है, इस समस्या को लेकर मज़दूर पहले भी विधायक के दफ्तर गए थे जहाँ उन्हें 2 दिन के भीतर हालात बेहतर करने का वादा करते हुए लौटा दिया गया था मगर इसके बावजूद आम आदमी पार्टी की सरकार के विधायक ने कुछ नहीं किया । 30 सितम्बर की सुबह दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में झुग्गीवासीयों और मज़दूरों ने इकट्ठा होकर राजेश गुप्ता का घेराव किया। चुनाव से पहले 700 लीटर पानी का वादा करने वाली इस सरकार के नुमाइंदे से जब यह पूछा गया कि पिछले 12 दिनों से कनेक्शन कट जाने के बाद पानी की सुविधा के लिए पानी के टैंकर क्यों नहीं मंगवाये गए तो उसपर विधायक जी ने मौन धारण कर लिया।

धागों में उलझी ज़िन्दगियाँ

कई मज़दूर मासिक वेतन के अलावा पीस रेट सिस्टम पर भी काम करते हैं। इस सिस्टम में मज़दूर को पीस के अनुसार तनख्वाह मिलती है न कि समय के अनुसार। एक पूरी कमीज़ के पीस रेट में हुई बढ़त से पता चलता है कि यह बढ़त कितनी कम है। पिछले 14 सालों में पीस रेट ज़्यादा नहीं बढ़े हैं। सन 2000 में, 14 या 15 रुपये प्रति शर्ट से आज ये केवल 20 से 25 रुपये ही हुए हैं और कुछ जगहों पर 30 से 35 रुपये। आज पर-पीस का मतलब पूरी कमीज़ या कपड़ा नहीं, कमीज़ का एक हिस्सा माना जाता है – जैसे कॉलर, बाजू, इत्यादि। तनख्वाह भी कितने कॉलर या बाजू सिले, उसके अनुसार मिलती है। पीस रेट सिस्टम मज़दूरों को बहुत लम्बे समय तक काम करने के लिए मजबूर करता है, ताकि वे ज़्यादा से ज़्यादा पीस बनाकर दिन में ज़्यादा कमा सकें। पीस रेट मज़दूरों में कुछ महिलाएं भी हैं जो घर से ही कई किस्म के महीन काम करती हैं, जैसे बटन या सितारे लगाना।

हालात को बदलने के लिए आगे आना होगा

मैं लुधियाना में प्लाट नं. 97, शिवा डाईंग, फेस-4, फोकल प्वांईट, में काम करता हूँ। जिसमें लगभग 60 मजदूर काम करते हैं, कोई माल ढुलाई, कोई माल सुखाई, कोई ब्यालर तो कोई कपड़ा रंगाई में काम करता है। मैं कपड़ा रंगाई में काम करता हूँ। मेरे साथ 10 मजदूर काम करते हैं, हमारी मशीनों पर गर्मी बहुत ज्यादा होती है। मशीनों के अन्दर 135 डिग्री गर्म रंग वाला पानी भरा होता है। इन जानलेवा हालातों में हम 12-12 घंटे काम करते हैं। यहाँ पर हम लोगों को कोई भी सुरक्षा उपकरण नहीं दिये जाते, ना तो कैमिकल से बचने के लिए जूते दिये जाते हैं और ना ही हाथों में पहनने के लिए दस्ताने दिये जाते हैं। इस काम में कोई भी नया मजदूर जल्दी भर्ती नहीं होता क्योंकि यहाँ पर गर्मी सबसे ज्यादा होती है। ब्यालर पर काम करना सबसे ज्यादा कठिन है, क्योंकि यहाँ तो 12 घंटे आग के सामने खड़े होकर काम करना होता है। हम सभी मजदूरों को बेहद कम वेतन पर 12-12 घंटे काम करना पड़ता है और इस कारखाने में पक्की भर्ती नहीं होती, बहुत ही कम मजदूरों को पक्का भर्ती किया हुआ है।

मज़दूर पंचायत का आयोजन

लुधियाना के पुडा मैदान में 16 अगस्त को टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन द्वारा मज़दूर पंचायत का आयोजन किया गया। पंचायत में टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन की कार्यकारिणी समिती द्वारा प्रस्तावित एक मांग पत्र पर चर्चा की गई। मांग पत्र को अंतिम रूप दिया गया और इसे टेक्सटाइल और हौज़री मालिकों को देने का फैसला किया गया। इस मांग पत्र में 25 प्रतिशत वेतन वृद्धि, ई.एस.आई., पी.एफ., पहचान पत्र, हौज़री, बोनस, छुट्टियां, हादसों और बीमारियों से सुरक्षा के प्रबंध आदि सभी श्रम कानून लागू करने, कारखानों में मज़दूरों से मालिकों द्वारा मारपीट, गालीगलौच, बदसलूकी बंद करने आदि मांगें की गई है। मज़दूर पंचायत ने ऐलान किया कि यह मांगें पूरी करवाने के लिए संघर्ष तेज किया जायेगा।

डिलीवरी मज़दूरों के निर्मम शोषण पर टिका है ई-कॉमर्स का कारोबार

ये डिलीवरी मज़दूर अपनी पीठ पर प्रतिदिन 40 किलोग्राम तक का बोझ बाँधकर माल को ग्राहकों तक डिलीवर करने के लिए दिन भर बाइक से भागते रहते हैं। मध्यवर्ग के कई अपार्टमेंटों में तो इन डिलीवरी मज़दूरों को लिफ्रट इस्तेमाल करने तक की इजाज़त नहीं होती जिसकी वजह से उन्हें भारी-भरकम बोझ लिए सीढ़ियों से ऊपर की मंजिलों पर चढ़ना-उतरना होता है। इस कमरतोड़ मेहनत का नतीजा यह होता है कि वे अमूमन कुछ ही महीनों के भीतर पीठ दर्द, गर्दन दर्द, स्लिप डिस्क, स्पॉन्डिलाइटिस जैसी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल के स्पोर्ट्स इंजरी सेन्टर के डॉक्टर बताते हैं कि उनके पास आने वाले मरीज़ों में रोज़ दो-तीन मरीज़ ऐसे होते हैं जो किसी न किसी ऑनलाइन शॉपिंग कम्पनी के लिए डिलीवरी मज़दूर का काम करते हैं। चूँकि अधिकांश डिलीवरी मज़दूर ठेके पर काम करते हैं इसलिए उन्हें कोई स्वास्थ्य सुविधाएँ भी नहीं मिलती। यही नहीं माल को ग्राहकों तक पहुँचाने की जल्दबाजी में बाइक चलाने से उनके साथ दुर्घटना होने की संभावना भी बढ़ जाती है। दुर्घटना होने की सूरत में भी इन डिलीवरी मज़दूरों को ऑनलाइन शॉपिंग कम्पनियों की ओर से न तो दवा-इलाज का खर्च मिलता है और न ही कोई मुआवजा।