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लेनिन – मार्क्‍सवाद और सुधारवाद Lenin – Marxism and Reformism

सुधारवादियों का मजदूरों पर प्रभाव जितना अधिक सशक्त होता है, मजदूर उतने ही निर्बल होते हैं, बुर्जुआ वर्ग पर उनकी निर्भरता उतनी ही ज्यादा होती है, तरह-तरह के दाँव-पेंचों से इन सुधारों को शून्य में परिणत कर देना बुर्जुआ वर्ग के लिए उतना आसान होता है। मजदूर आन्दोलन जितना अधिक स्वावलम्बी तथा गहन होता है,उसके ध्‍येय जितने अधिक विस्तृत होते हैं, सुधारवादी संकीर्णता से वह जितना अधिक मुक्त होता है, मजदूरों के लिए अलग-अलग सुधारों को सुदृढ़ बनाना तथा उनका उपयोग करना उतना ही आसान होता है।

कहानी – कोलुशा / मक्सिम गोर्की Story – Kolusha / Maxim Gorky

आखि़र हम अस्पताल पहुँचे। कोलुशा पलंग पर पड़ा पट्टियों का बण्डल मालूम होता था। वह मेरी ओर मुस्कुराया, और उसके गालों पर आँसू ढुरक आये…. फिर फुसफुसाकर बोला – ‘मुझे माफ़ करना, माँ। पैसा पुलिसमैन के पास है।’ ‘पैसा….कैसा पैसा? यह तुम क्या कह रहे हो?’ मैंने पूछा। ‘वही, जो लोगों ने मुझे सड़क पर दिया था और आनोखिन ने भी’, उसने कहा। ‘किसलिए?’ मैंने पूछा। ‘इसलिए’, उसने कहा और एक हल्की-सी कराह उसके मुँह से निकल गयी। उसकी आँखें फटकर ख़ूब बड़ी हो गयीं, कटोरा जितनी बड़ी। ‘कोलुशा’, मैंने कहा – ‘यह कैसे हुआ? क्या तुम घोड़ों को आता हुआ नहीं देख सके?’ और तब वह बोला, बहुत ही साफ़ और सीधे-सीधे, ‘मैंने उन्हें देखा था, माँ, लेकिन मैं जान-बूझकर रास्ते में से नहीं हटा। मैंने सोचा कि अगर मैं कुचला गया तो लोग मुझे पैसा देंगे। और उन्होंने दिया।’ ठीक यही शब्द उसने कहे। और तब मेरी आँखें खुलीं और मैं समझी कि उसने – मेरे फ़रिश्ते ने – क्या कुछ कर डाला है। लेकिन मौका चूक गया था। अगली सुबह वह मर गया। उसका मस्तिष्क अन्त तक साफ़ था और वह बराबर कहता रहा – ‘दद्दा के लिए यह ख़रीदना, वह ख़रीदना और अपने लिए भी कुछ ले लेना।’ मानो धन का अम्बार लगा हो। वस्तुतः वे कुल सैंतालीस रूबल थे। मैं सौदागर आनोखिन के पास पहुँची, लेकिन उसने मुझे केवल पाँच रूबल दिये, सो भी भुनभुनाते हुए। कहने लगा – ‘लड़का ख़ुद जान-बूझकर घोड़ों के नीचे आ गया। पूरा बाज़ार इसका साक्षी है। सो तुम क्यों रोज़ आ-आकर मेरी जान खाती हो? मैं कुछ नहीं दूँगा।’ मैं फिर कभी उसके पास नहीं गयी। इस प्रकार वह घटना घटी, समझे युवक!

कविता : एक पढ़ सकने वाले कामगार के सवाल / बर्तोल्त ब्रेख्त Poem : Questions From a Worker Who Reads / Bertolt Brecht

किसने बनाया सात द्वारों वाला थीब?
किताबों में लिखे हैं सम्राटों के नाम।
क्‍या सम्राट पत्‍थर ढो-ढोकर लाये?

लघु कथा – अक्‍लमंद, मूर्ख और गुलाम / लू शुन Short story – The Wise Man, The Fool and The Slave / Lu Xun

एक गुलाम हरदम लोगों की बाट जोहता रहता था, ताकि उन्‍हें अपना दुखड़ा सुना सके। वह बस ऐसा ही था और बस इतना ही कर सकता था। एक दिन उसे एक अक्‍लमंद आदमी मिल गया।

कविता – मैं कभी पीछे नहीं लौटूँगी / मीना किश्‍वर कमाल Poem – I will never return / Meena Keshwar Kamal

अब मुझे कमजोर और नाकारा न समझना
अपनी पूरी ताकत के साथ मैं तुम्‍हारे साथ हूँ
अपनी धरती की आजादी की राह पर
मेरी आवाज घुलमिल गयी है हजारों जाग उठी औरतों के साथ

कहानी – गिरगिट / अन्‍तोन चेखव Story – A Chameleon / Anton Chekhov

पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव नया ओवरकोट पहने, हाथ में एक बण्डल थामे बाजार के चौक से गुज़र रहा है। लाल बालों वाला एक सिपाही हाथ में टोकरी लिये उसके पीछे-पीछे चल रहा है। टोकरी जब्त की गयी झड़बेरियों से ऊपर तक भरी हुई है। चारों ओर ख़ामोशी…चौक में एक भी आदमी नहीं…दुकानों व शराबखानों के भूखे जबड़ों की तरह खुले हुए दरवाज़े ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे हैं। यहाँ तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता है।

कहानी – बाज़ का गीत / मक्सिम गोर्की Story – The song of falcon / Maxim Gorky

‘साहस के उन्मादियों की हम गौरव-गाथा गाते हैं! गाते हैं उनके यश का गीत!’
‘साहस का उन्माद-यही है जीवन का मूलमन्त्र ओह, दिलेर बाज! दुश्मन से लड़कर तूने रक्त बहाया…लेकिन वह समय आयेगा जब तेरा यह रक्त जीवन के अन्धकार में चिनगारी बनकर चमकेगा और अनेक साहसी हृदयों को आज़ादी तथा प्रकाश के उन्माद से अनुप्राणित करेगा!’
‘बेशक तू मर गया!…लेकिन दिल के दिलेरों और बहादुरों के गीतों में तू सदा जीवित रहेगा, आज़ादी और प्रकाश के लिए संघर्ष की गर्वीली ललकार बनकर गूँजता रहेगा!’

कहानी – एक पतझड़ / मक्सिम गोर्की Story – One Autumn Night / Maxim Gorky

सांस्कृतिक विकास की इस मंज़िल पर शारीरिक भूख बुझाने के मुक़ाबले आध्यात्मिक भूख बुझाना अधिक आसान है। आप घरों से घिरी हुई सड़कों पर भटकते रहते हैं। घर, जो बाहर से सन्तोषजनक सीमा तक सुन्दर होते हैं और भीतर से – हालाँकि यह लगभग एक अनुमान ही है – सन्तोषजनक सीमा तक आरामदेह होते हैं; ये आपके भीतर वास्तुकला, स्वास्थ्य विज्ञान और बहुतेरे दूसरे उदात्त और बुद्धिमत्तापूर्ण विषयों पर सुखद विचार पैदा कर सकते हैं; सड़कों पर आप गर्म और आरामदेह कपड़े पहने लोगों से मिलते हैं – वे विनम्र होते हैं, अक्सर किनारे हटकर आपके लिए रास्ता छोड़ देते हैं और आपके वजूद के अफ़सोसनाक़ तथ्य पर ध्यान देने से कुशलतापूर्वक इन्कार कर देते हैं। निश्चय ही, एक भूखे आदमी की आत्मा एक भरे पेट वाले की आत्मा की अपेक्षा बेहतर ढंग से और अधिक स्वास्थ्यप्रद ढंग से पोषित होती है – यह एक ऐसा विरोधाभास है जिससे, निस्सन्देह, भरे पेट वालों के पक्ष में कुछ निहायत चालाकी भरे नतीजे निकाल लेना मुमकिन है!…

कविता – असंख्य / नाजिम हिकमत Poem – The Multitudes / Nazim Hikmet

ज्ञानी जो,
और जो बच्चों से,
जो विध्वंसक हैं।
और निर्माता हैं –
उन्हीं की गाथा हमारी पुस्तक में है।

कविता – जनता की रोटी : बर्तोल्त ब्रेख्त Poem – The bread of the people : Bertolt Brecht

इंसाफ की रोटी जब इतनी महत्वपूर्ण है
तब दोस्तों कौन उसे पकाएगा?
दूसरी रोटी कौन पकाता है?
दूसरी रोटी की तरह
इंसाफ की रोटी भी
जनता के हाथों ही पकनी चाहिए
भरपेट, पौष्टिक, रोज-ब-रोज।