Category Archives: शिक्षा और रोज़गार

दिल्ली में निजी कोचिंग संस्थानों के मुनाफ़े की हवस ने ली छात्रों की जान

दिल्ली का ओल्ड राजेन्द्र नगर देश के कई इलाक़ों की तरह एक केन्द्र है जहाँ देश भर से छात्र आईएएस-आईपीएस बनने का सपना लेकर आते हैं। उनके इसी सपने का सौदा किया जाता है और जो इस सौदे को ख़रीदने की औकात रखता है, उसे ही इसके लिये सोचने का भी मौका दिया जाता है। यह बात दीगर है कि उसमें से एक प्रतिशत लोग भी यह सपना पूरा नहीं कर पाते हैं। आगे आँकड़ों से हम इस बात की पुष्टि भी करेंगे। यहाँ छात्रों के आते ही उन्हें लूटने की होड़ मची होती है। पहले तो यहाँ कोचिंग संस्थानों की फ़ीस लाखों में होती हैं जहाँ सैकड़ों छात्रों के कई बैच चलाये जाते हैं। इसमें भी छात्रों को भ्रमित करने और पैसे ऐंठने के लिये अलग-अलग कई किस्म के कोर्स रखे जाते हैं। इतना ही नही, इनसे वहाँ रहने पर भी इन्हें लूटा जाता है।

बंगलादेश का जनउभार और मेहनतकशों की एक क्रान्तिकारी पार्टी की ज़रूरत

राजनीतिक उथल-पुथल और विकल्पहीनता की इस स्थिति में धार्मिक कट्टरपंथी और साम्प्रदायिक ताक़तें बंगलादेश में मौजूद अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर अपनी नफ़रती राजनीति को हवा देने का काम कर रही हैं हालाँकि आन्दोलनकारी छात्रों-युवाओं-मज़दूरों ने इस साम्प्रदायिक राजनीति का सक्रिय प्रतिकार किया है। उन्होंने अल्पसंख्यक इलाक़ों में अपनी टोलियाँ बनाकर साम्प्रदायिक ताक़तों को खदेड़ने की मुहिम भी चलायी है। यहाँ इस बात को ध्यान में रखना भी ज़रूरी है कि भारत की मोदी सरकार और उसका भोंपू मीडिया यहाँ पर साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने के अपने घिनौने एजेंडे के तहत बंगलादेश में हिन्दुओं पर हमलों की घटनाओं को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है।

एनटीए में पेपर लीक के लिए मोदी सरकार, प्रशासन और शिक्षा माफ़िया का नापाक गठजोड़ ज़िम्मेदार है

एक अनुमान के मुताबिक़ पिछले सात सालों में पर्चा लीक और परीक्षाओं में धाँधली की वजह से 1 करोड़ 80 लाख से ज़्यादा छात्र प्रभावित हुए हैं और कई छात्र अवसाद और निराशा में आत्महत्या तक के क़दम उठा रहे हैं। इतने बड़े पैमाने पर हो रही धाँधली के बाद अब तक मोदी सरकार और इसकी तमाम एजेंसियों ने जाँच के नाम पर केवल लीपापोती ही की है। हर बार ऐसी घटनाओं के बाद बयानबाज़ी और लफ्फाज़ी का दौर शुरू होता है। कुछ छोटे-मोटे कर्मचारियों, कुछ छात्रों को इसका ज़िम्मेदार ठहराकर पूरे मामले को ठिकाने लगा दिया जाता है और बहुत सफ़ाई के साथ असली अपराधियों को बचा लिया जाता है। यही वजह है कि मोदी सरकार के शासनकाल में अब तक इस मामले में न तो कोई बड़ी गिरफ़्तारी हुई है और न ही कोई कार्रवाई हुई है।

मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार का बेशर्म ऐलान : बेरोज़गारी जैसी समस्याओं को हल करने की उम्मीद सरकार से न करें!

जिन लोगों को रोज़गार मिल भी रहा है उनमें पक्का रोज़गार पाने वाले लोगों की संख्या बमुश्किल 10 फ़ीसदी है। यानी 90 फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों को अनौपचारिक क़िस्म का काम मिल रहा है, भले ही वे नियमित प्रकृति के काम कर रहे हों। जिन लोगों की गिनती रोज़गार प्राप्त लोगों में होती है उनमें से करीब दो-तिहाई स्व-रोज़गार की श्रेणी में आते हैं जो रोज़गार के नाम पर धोखा है। ऐसे स्व-रोज़गार प्राप्त लोगों का ही उदाहरण देते हुए हमारे प्रधानमन्त्री महोदय ने अपना 56 इंच का सीना फुलाते हुए पकौड़ा बेचने को भी रोज़गार बताया था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हाल के वर्षों में स्विगी और ज़ोमैटो जैसे प्लेटफ़ॉर्मों पर डिलीवरी का काम करने वाले गिग वर्करों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है लेकिन उनके काम की ख़ून चूस लेने वाली और पीठ तोड़ देने वाली परिस्थितियों व सेवा शर्तों से हम सभी वाक़िफ़ हैं। इसके अलावा रिपोर्ट में इस तथ्य की भी पुष्टि हुई है कि कोविड लॉकडाउन की वजह से कृषि से उद्योग अथवा गाँवों से शहरों की ओर होने वाले पलायन में कमी आयी और इस दौर में जिन लोगों ने पलायन किया उन्हें उद्योग में नहीं बल्कि निर्माण व सेवाक्षेत्रों में ही रोज़गार मिला।  

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा – चलो जन्तर-मन्तर! – 3 मार्च 2024

हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, सबको मार रही महँगाई!
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो!!

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा : फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ बुनियादी सवालों पर मेहनतकश जन समुदाय को जगाने और संगठित करने की मुहिम

आज देश की मेहनतकश जनता को इन माँगों पर अपने जुझारू जनान्दोलन खड़े करने होंगे, मौजूदा जनविरोधी सरकार को सबक सिखाना होगा और अपने जुझारू आन्दोलन के बूते यह सुनिश्चित करना होगा कि 2024 में आने वाली कोई भी सरकार हमारी इन माँगों को नज़रन्दाज़ न कर सके। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि जो सरकार जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखे, उसे उखाड़ फेंकना उसका अधिकार ही नहीं उसका कर्तव्य है। आज शहीदे-आज़म के इस सन्देश पर अमल करने का वक़्त है। आइये, हमारी इस मुहिम में, हमारे इस आन्दोलन में शामिल हों और एक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष का हिस्सा बनें।

बढ़ती बेरोज़गारी के ताज़ा आँकड़े और उसकी वजह

अक्टूबर 2023 के लिए सीएमआईई के आँकड़े बेरोज़गारी की एक भयावह तस्वीर पेश करते हैं। इतनी ख़राब परिभाषा के आधार पर भी अक्टूबर 2023 में भारत में बेरोज़गारी दर 10.05 प्रतिशत थी। इसमें ग्रामीण बेरोज़गारी दर 10.82 प्रतिशत थी, जबकि शहरी बेरोज़गारी दर 8.44 प्रतिशत थी। ज़ाहिर है, अगर बेरोज़गारी की परिभाषा में पक्की नौकरी के सवाल को जोड़ा जाये तो यह संख्या 40 प्रतिशत के पार जा सकती है। लेकिन अभी हम इसी परिभाषा को लेकर चलें तो भी भारत की करीब 53 करोड़ श्रमशक्ति (काम करने योग्य जनसंख्या) में से करीब 5.4 करोड़ के पास किसी प्रकार का रोज़गार नहीं है, न दिहाड़ी, न ठेके वाला, न कोई अपना छोटा-मोटा धन्धा…यानी कुछ भी नहीं! ज़ाहिर है, इसमें अनौपचारिक क्षेत्र के दिहाड़ी, ठेका व कैजुअल मज़दूरों की एक बड़ी संख्या को जोड़ दें, जिनके पास कोई रोज़गार सुरक्षा नहीं है, तो यह आँकड़ा 30 करोड़ के ऊपर चला जायेगा। लेकिन बेहद कमज़ोर परिभाषा के आधार पर भी देखें, तो बेरोज़गारी दर भयंकर है।

निराशा, अवसाद और पस्तहिम्मती छात्रों को आत्महत्या  की तरफ धकेल रही है

सरकार में आने से पहले इन्होने वायदे किए थे कि ‘हर साल दो करोड़ नौकरी देंगे’, मगर फासीवादी मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों को जिस गति से लागू किया है, उसकी आज़ाद भारत के इतिहास में कोई मिसाल नहीं है। रेलवे के निजीकरण, ओएनजीसी के निजीकरण, एयर इण्डिया के निजीकरण, बीएसएनएल के निजीकरण, बैंक व बीमा क्षेत्र में देशी-विदेशी पूँजी को हर प्रकार के विनियमन से छुटकारा, पूंजीपतियों को श्रम कानूनों, पर्यावरणीय कानूनों व अन्‍य सभी विनियमनकारी औद्योगिक कानूनों से छुटकारा, मज़दूर वर्ग के संगठन के अधिकार को एक-एक करके छीनना लगातार जारी है। यह सारी नीतियाँ भी छात्रों- युवाओं में निराशा और अवसाद पैदा करने के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर उतने ही ज़िम्मेदार है।

ग्रामीण आजीविका मिशन : ग्रामीण महिलाओं और बेरोज़गार नौजवानों के श्रम को लूटने का मिशन

केन्द्र सरकार का यह मिशन ग्रामीण महिलाओं और आम बेरोज़गार नौजवानों के शोषण-उत्पीड़न का मिशन है। दरअसल मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था की आन्तरिक गति ही ऐसी है कि अपने उत्तरोत्तर विकास के साथ यह एक बड़ी आबादी को तबाही-बर्बादी की तरफ ढकेलती है। जिसकी वजह से जनाक्रोश फूटने का डर हमेशा बना रहता है। पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा सताये हुये आम लोगों के आक्रोश को ठंडा करने के लिए हुक्मरान बीच-बीच में ऐसी योजनाएँ पेश कर जनता की आँख में धूल झोकने का काम करते हैं।

आपस में नहीं सबके रोज़गार की गारण्टी के लिए लड़ो!

जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय रहेंगे ही नहीं तो क्या सारे बीटीसी वालों को नौकरी दी जा सकती है? या अगर बीएड अभ्यर्थियों को योग्य मान भी लिया जाय तो सभी को रोज़गार दिया जा सकता है? दरअसल आज नौकरियाँ ही तेजी से सिमटती जा रही है। निजीकरण छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर भारी पड़ता जा रहा है। रेलवे, बिजली, कोल, संचार आदि सभी विभागों को तेज़ी से धनपशुओं के हवाले किया जा रहा है। अगर इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई देशव्यापी जुझारू आन्दोलन नहीं खड़ा होगा तो यह स्थिति और ख़राब होने वाली है। इसलिए ज़रूरी है कि आपस में लड़ने की जगह रोज़गार गारण्टी की लड़ाई के लिए कमर कसी जाये।