Category Archives: सम्‍पादकीय

मई दिवस को मज़दूर वर्ग के जुझारू संघर्ष की नयी शुरुआत का मौक़ा बनाओ!

मई दिवस का नाम हम सभी जानते हैं। हममें से कुछ हैं जो 1 मई, यानी मज़दूर दिवस या मई दिवस, के पीछे मौजूद गौरवशाली इतिहास से भी परिचित हैं। लेकिन कई ऐसे भी हैं, जो कि इस इतिहास से परिचित नहीं हैं। यह भी एक त्रासदी है कि हम मज़दूर अपने ही तेजस्वी पुरखों के महान संघर्षों और क़ुर्बानियों से नावाकि़फ़ हैं। जो मई दिवस की महान अन्तरराष्ट्रीय विरासत से परिचित हैं, वे भी आज इसे एक रस्मअदायगी क़वायदों में डूबता देख रहे हैं। कहीं न कहीं हमारे जीवन की तकलीफ़ों में हम भी जाने-अनजाने इसे रस्मअदायगी ही मान चुके हैं। यह मज़दूर वर्ग के लिए बहुत ख़तरनाक बात है। क्यों?

मज़दूर और मेहनतकश दोस्तो! फ़ासिस्ट मोदी सरकार की साज़िश से सावधान!

चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के समाप्त होते ही मोदी सरकार ने क़रीब दस दिनों तक हर रोज़ पेट्रोल की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी की। अब हालत यह है कि पेट्रोल की क़ीमत 100 का आँकड़ा पार कर चुकी है और डीज़ल की क़ीमत 100 के आँकड़े को छूने के क़रीब जा रही है। हम मज़दूर-मेहनतकश जानते हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमत बढ़ने का मतलब है हर चीज़ की क़ीमत बढ़ना। इससे न सिर्फ़ पेट्रोल, डीज़ल, सीएनजी और रसोई गैस की क़ीमतों में सीधे बढ़ोत्तरी होती है, बल्कि लगभग हर सामान की क़ीमत में बढ़ोत्तरी होती है।

विधानसभा चुनावों में भाजपा फिर क्यों जीती?

भाजपा को चार राज्यों में हालिया विधानसभा चुनावों में भारी जीत मिली है। यहाँ तक कि जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच काँटे के मुक़ाबले की बात की जा रही थी, उन राज्यों में भी भाजपा ने आराम से कांग्रेस को पीछे छोड़कर बहुमत हासिल किया। देशव्यापी पैमाने पर जिस राज्य के चुनावों का प्रभाव सबसे ज़्यादा पड़ना था वह था उत्तर प्रदेश। वहाँ भाजपा की सीटों में कमी आयी और प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी पार्टी समाजवादी पार्टी की सीटों में अच्छी-ख़ासी बढ़ोत्तरी के बावजूद भाजपा ने आराम से बहुमत हासिल किया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश को फ़ासीवाद की प्रयोगशाला बनाने का सबसे बर्बर क़िस्म का प्रयोग भी अब आगे बढ़ेगा, जिसका सिरमौर योगी आदित्यनाथ है।

बजट : पूँजीपतियों की सेवा में बिछी मोदी सरकार की आम मेहनतकश जनता से फिर ग़द्दारी

जैसा कि अनुमान था, मोदी सरकार का नया बजट भी मज़दूरों और आम मेहनतकश आबादी की पूँजीपतियों और धन्नासेठों द्वारा खुली लूट का इन्तज़ाम करने का दस्तावेज़ है। आज जब कि बेरोज़गारी देश के मज़दूरों, कर्मचारियों और आम घरों से आने वाले नौजवानों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बनी हुई है और उत्तर प्रदेश और बिहार में इस पर युवाओं के स्वत:स्फूर्त आन्दोलन फूट रहे हैं, तो मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बेरोज़गारी शब्द का अपने बजट भाषण में एक बार भी नाम नहीं लिया और ‘नौकरी’ शब्द का केवल एक जगह नाम लिया।

पाँच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र क्रान्तिकारी मज़दूर वर्ग का नारा

पाँच राज्यों, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोआ और मणिपुर में फ़रवरी-मार्च में होने वाले विधानसभा चुनावों के नज़दीक आने के साथ ही संघ परिवार और उसके चुनावी चेहरे भाजपा ने साम्प्रदायिकता की लहर फैलाने का काम शुरू कर दिया है। जहाँ एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मन्दिर राजनीति की नये सिरे से शुरुआत कर काशी विश्वनाथ और मथुरा में मन्दिर निर्माण का मसला उछाल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हरिद्वार में धार्मिक कट्टरपन्थियों द्वारा किये गये कार्यक्रम में सीधे मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करना भी संघ परिवार की रणनीति का ही एक अंग है और धार्मिक कट्टरपन्थ और साम्प्रदायिकता की लहर को उभाड़ने का ही एक उपकरण था।

खेती क़ानूनों की वापसी और मज़दूर वर्ग के लिए इसके मायने

पिछले 23 नवम्बर को मोदी सरकार ने धनी किसान-कुलक आन्दोलन के क़रीब 1 साल बाद धनी किसानों की यूनियनों के संयुक्त मोर्चे की माँगें मानते हुए तीनों खेती क़ानून वापस ले लिये। 29 नवम्बर को संसद में इन तीनों क़ानूनों को रद्द करने वाला बिल पारित हो गया। लेकिन कुलक आन्दोलन अब इस माँग पर अड़ गया है कि उसे लाभकारी मूल्य, यानी एमएसपी की क़ानूनी गारण्टी दी जाये। हम पहले भी ‘मज़दूर बिगुल’ के पन्नों पर विस्तार से लिखते रहे हैं कि एमएसपी की माँग एक प्रतिक्रियावादी और जनविरोधी माँग है, जो कि सरकारी इजारेदारी के मातहत तय इजारेदार क़ीमत द्वारा खेतिहर पूँजीपति वर्ग को एक बेशी मुनाफ़ा देती है, खाद्यान्न की क़ीमतों को भी बढ़ाती है और वहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी बर्बाद करती है।

फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे दुर्गम यात्राओं पर चलने के संकल्प जगाने होंगे

7 नवम्बर 2021 को रूस की महान अक्तूबर समाजवादी क्रान्ति के 104 वर्ष पूरे हो गये। इस क्रान्ति के साथ मानव समाज के इतिहास का एक नया अध्याय शुरू हुआ था और बीसवीं सदी के इतिहास को यदि किसी घटना ने सबसे ज़्यादा परिभाषित किया था, तो वह यह क्रान्ति थी। यह कोई साहित्यिक दावा या मुहावरे के रूप में कही गयी बात नहीं है, बल्कि शब्दश: सच है। इस क्रान्ति ने मानव इतिहास में मज़दूर वर्ग की पहली व्यवस्थित राज्यसत्ता स्थापित की और समाजवाद के पहले महान प्रयोग की शुरुआत की।

लखीमपुर खीरी हत्‍याकाण्‍ड फ़ासिस्ट योगी-मोदी सरकार का बेनक़ाब होता चेहरा!

7 अक्‍तूबर 2021 को लखीमपुर खीरी में राज्‍य गृहमंत्री अजय मित्र टेनी के बेटे द्वारा चार फ़ार्मर प्रदर्शनकारियों को अपनी गाड़ी के नीचे कुचलकर मार दिये जाने की भयंकर घटना घटित हुई। उस दिन उत्तर प्रदेश के उपमुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या किसी स्‍कूल में “सम्‍मानित” होने जा रहे थे। लखीमपुर खीरी के फ़ार्मरों को इस बात की सूचना थी। वह हेलीकॉप्‍टर से एक हेलीपैड पर उतरने वाले थे। लेकिन जब फ़ार्मरों ने हेलीपैड का घेराव किया तो मौर्या ने सड़क से आने का फ़ैसला किया।

मेहनतकश जनता के ख़ून-पसीने से खड़ी हुई सार्वजनिक परिसम्पत्तियों को पूँजीपतियों के हवाले करने में जुटी मोदी सरकार

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की फ़ासीवादी सरकार जनता को लूटने और पूँजीपतियों के हाथों लुटवाने के नित नये कार्यक्रम पेश कर रही है। नोटबन्दी हो या सार्वजनिक उपक्रमों की सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री हो; बढ़ती महँगाई हो या श्रम क़ानूनों की बर्बादी हो, हर मामले में हम यह देख सकते हैं कि “अच्छे दिनों” का नारा देकर सत्ता में आयी भाजपा ने मज़दूरों, ग़रीब किसानों और आम मेहनतकश जनता के जीवन को नारकीय हालात में धकेल दिया है।

75वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न वे मनायें जिन्हें इस लुटेरी व्यवस्था ने सबकुछ दिया है

आने वाले पन्द्रह अगस्त को 75वें स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की तैयारियाँ जारी हैं। सबसे ज़्यादा शोर वे मचा रहे हैं जिन्होंने ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ लड़ाई में कभी एक ढेला तक नहीं चलाया, क्रान्तिकारियों की मुखबिरी तक की और जंगे-आज़ादी को कमज़ोर करने के लिए उस समय भी हिन्दू-मुस्लिम को बाँटने में लगे रहते थे।